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सितंबर, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हे राम

                    हे राम !!! हे राम, तुम वन गए सीता को साथ लेकर. सीता ने चौदह बरस तक मिलन और विछोह झेला लेकिन जब तुम अयोध्या वापस आये, तो सीता को फिर से वन क्यूँ भेज दिया. क्या पुरुषोत्तम का उत्तम पौरुष यही है कि वह अपनी स्त्री की इच्छा न जाने? अहिल्या सति थीं, इसलिए राम के चरण का स्पर्श पाकर फिर से पत्थर से नारी बन गयीं लेकिन रावण के बंदीगृह से छूटी सीता राम का स्पर्श पाकर भी पत्नी क्यूँ नहीं बन सकी.

मेरे चार वचन

मेरे चाहने वाले मेरी राहों पर कांटे बिखेरते  है मैं बटोरते चलता हूँ कि कहीं उन्हे चुभे नहीं। २. अगर लंबाई पैमाना है तो लकीर सबसे लंबी है, आदमी जितनी चाहे लंबी लकीर खींच सकता है। ३. मुझे बौना समझ कर हंसों नहीं ऐ दोस्त, मैं वामन बन कर तीनों लोक नाप सकता हूँ। ४. उन्होने पिलाने का ठेका नहीं लिया है, तभी तो लोग पीने को ठेके पर जाते हैं।  

मेरा अंदाज़

        मेरा अंदाज़ मेरी चाहत से कुछ नहीं होता, तुम्हारे चाहने वाले बहुत से हैं। तुम्हें वफाओं से फर्क नहीं पड़ता, पर दुनिया में बेवफा बहुत से हैं। तुम लाख न मानो, मानना पड़ेगा, मेरे जैसे लोग कहाँ बहुत से हैं। बेशक मेरे पास वह अंदाज़ नहीं, पर बेअंदाज राजा यहाँ बहुत से हैं

हाइकु

हँसता सूर्य राक्षस से पहाड़ हिम्मत मेरी   २- नदी की धार गोरी की कमरिया मुग्ध देखूं मैं. ३- बहती हवा ममता का आँचल मेरा सुकून ४- चुभती धूप भीष्म की शर शैया मैं हूँ बेचैन ५- आ गयी रात रो रहे हैं कुत्ते बच्चे सो गए. 6- शीत लहरी पत्ते पीले हो गए बुड्ढा मरेगा. 7-   सूना आकाश उड़ते चील कौव्वे मेरी तमन्ना   ८- काले बादल विधवा रो रही है   जल ही जल ९-   प्रिय  न आये शाम बीत रही है आँखों में रात १०- रात आ गयी जुगनू उड़ रहे दिखती राह १३. दुल्हन आई   आँगन में बौछार बौराया मन .   १४. बौर आ गयी बारात आ रही है खुशी की बात .

समानता

                                       समानता गरीब बच्चे को अमीर बच्चे की आधुनिक माँ में अपनी माँ नज़र आती हैं. क्यूंकि उसकी माँ की तरह अमीर बच्चे की आधुनिक माँ भी अधनंगी नज़र आती है.

बाबा दुल्हन और वह

पतझड़ में याद आते हैं  सूखे खड़खडाते पत्तों की तरह खांसते बाबा .   मेरी खिड़की से झांकता सूरज जैसे झिझकती शर्माती दुल्हन. मैंने उन्हें पहली बार देखा छत पर खड़े हुए दूर कुछ देखते हुए ढलते सूरज की रोशनी में उनके भूरे बाल गोरे चेहरे पर सोना सा बिखेर रहे थे मैं ललचाई आँखों से सोना बटोरता रहा तभी उनकी नज़र मुझ पर पड़ी आँखों में शर्म कौंधी वह ओट में हो गए इसके साथ ही बिखर गया सांझ में सोना.

छह बीज

सुना है मेरे पड़ोस में आंधी बड़ी आई थी. धुल से अटे पड़े हैं, मेरे घर के कमरे भी.          -२- संध्या और श्याम का साथ दोनों अँधेरे में डूबते हैं साथ.         -३- अलसाई हसीना, सुबह की अंगडाई दोनों करेंगी तय गली और फूटपाथ में दिन भर का सफ़र .         -४- मैं तपते सूरज के नीचे कंक्रीट के जंगल में डामर की सड़क के साथ होता हूँ पसीना पसीना.          -५- जब पीछे चलती परछाई आगे  आकर चलने लगती है, मैं घबराकर मुड़ कर देखता हूँ शाम पीछे खडी है.          -६- रात की तरह काली रंगत वाली माँ पर दोनों ही थपक कर सुलाती हैं- ना!  

दोषी चाकू

एक वीराने स्थल पर एक इंसान का मृत शरीर पाया गया उस मृत शरीर को देख कर पहला प्रश्न यही था- उसे किसने मारा- पशु ने या किसी इंसान ने? मृत शरीर पर नाखूनों की खरोंच के, दांतों से चीर फाड़ के कोई निशान नहीं थे इसलिए यह तय हो गया कि उसे किसी पशु ने नहीं मारा. पास में रक्त से भीगा एक बड़ा चाकू पड़ा हुआ था. इसलिए यह तय पाया गया कि चाकू से उस इंसान का क़त्ल  किसी इंसान ने ही किया है. पर कोई साक्ष्य नहीं था कि उसे किसने मारा उस दिन उस क्षेत्र में दो सम्प्रदायों के बीच धार्मिक उन्माद पैदा हुआ था इसलिए वह इंसान  धर्म युद्ध में मारा गया  माना गया  मौक़ा ए वारदात पर मौजूद चाकू को पहला कातिल माना गया.

पिता और माँ

         पिता   मैंने दर्पण में अपना चेहरा देखा. बूढा, क्लांत, शिथिल और निराश. सहसा मुझे याद आ गए अपने पिता.        माँ उस भिखारिन ने कई दिनों से खाना नहीं खाया था. दयाद्र हो कर मैंने उसे दो रोटियां और बासी दाल दे दी. अभी वह बासी दाल के साथ रोटी खाती कि उसके मैले कुचैले दो बच्चे आ गए. आते ही वह बोले- माँ भूख लगी है. भिखारिन ने दोनों रोटियां बच्चों में बाँट दी. बच्चे रोटी खा रहे थे. भिखारिन अपने फटे आँचल से हवा कर रही थी, उन्हें देखते हुए उसके चहरे पर ममतामयी मुस्कान थी. मुझे सहसा याद आ गयी अपनी माँ.           

इच्छा

     इच्छा मनुष्य जीना क्यूँ चाहता है? क्या इसलिए कि वह मरना नहीं चाहता है? नहीं खोना नहीं, केवल पाना चाहता है.

तुम्हारा पन्ना फिर भी

          तुम्हारा पन्ना उस दिन मैं यादों की किताब के पन्ने पलट रहा था. उसमे एक पृष्ठ तुम्हारा भी था. बेहद घिसा हुआ अक्षर धुंधले पड़ गए थे. पन्ना लगभग फटने को था. मगर इससे तुम यह मत समझना कि मैंने तुम्हारे पृष्ठ की उपेक्षा की. नहीं भाई, बल्कि मैंने तुम्हे बार बार खोला है और पढ़ा है.       फिर भी मैंने पाया कि जीवन के केवल दो सत्य हैं- जीना और मरना. मैंने यह भी पाया कि लोग मरना नहीं चाहते,   जीना चाहते हैं . पर जीते हैं मर मर के.

माँ की याद

                                                           माँ की याद कल मुझे यकायक अपनी माँ की याद आ गयी. मुझे ही नहीं घर में सभी को यानि पत्नी और बेटी को भी याद आई. वजह कुछ खास नहीं. हम लोग घूमने निकल रहे थे. .. ठहरिये, आप यह मत सोचना कि हम उन्हें अपने साथ ले जाना चाहते थे. नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं था. क्यूंकि वह अब इस दुनिया में नहीं रहीं. अगर होती भी तो भी हम साथ नहीं ले जाते. कभी ले भी नहीं गए थे. बड़ी चिढ पैदा करने वाली माँ थी वह. दिन भर बोलती रहती. यह ना करो, वह न करो. बेटी को रोकती कि अकेली मत जा, ज़माना बड़ा ख़राब है. बेटी चिढ जाती. नए जमाने की आधुनिक, ग्रेजुएट लड़की थी वह.  उसे टोका  टाकी बिलकुल पसंद नहीं थी. चिढ जाती. भुनभुनाते हुए उनके सामने से हट जाती. माँ खाने में भी मीन मेख नि...

पीठ

वह मुझे जानते थे, अच्छी तरह पहचानते  थे उस दिन उन्होने मुझे देखा पहचाना भी, फिर मुंह फेर कर दूसरों से बात करने लगे। फिर भी मैं खुश था। क्यूंकि, मतलबी यारों की पीठ ही अच्छी लगती है।

दस्तक

देखो, सामने वाला दरवाज़ा बंद है. तुम उसे खटखटाओ. आम तौर पर लोग बंद दरवाज़े नहीं खटखटाते क्यूंकि, अजनबी दरवाज़े नहीं खटखटाए जाते. इसलिए कि पता नहीं कैसे लोग हों बुरा मान जाएँ. लेकिन इस वज़ह से कहीं ज्यादा कि, हम अजनबियों से बात करना पसंद नहीं करते. लेकिन मैं, बंद दरवाज़े खटखटाता हूँ, पता नहीं, बंद दरवाज़े के पीछे के लोगों को मेरी ज़रुरत हो. मगर इससे कहीं ज्यादा, मैं नए लोगों को जान जाता हूँ. मैं उन्हें जितना दे सकता हूँ. उससे कहीं ज्यादा पाता हूँ. इसी लिए, बंद दरवाज़े खटखटाता हूँ.

काश

आसमान पर  ऊंचे, ऊंचे और बहुत  ऊंचे उड़ते हुए पंछियों को कोई कुछ नहीं कहता. मगर लोग मुझसे कहते हैं-  बहुत उड़ रहे हो, इतना ऊंचा न उड़ो  नहीं तो गिर जाओगे. जंगल में स्वछन्द विचरते कूदते फांदते पशुओं को कोई मना नहीं करता  पर लोग मुझसे क्यूँ कहते हैं इतना स्वछन्द क्यूँ विचरते हो अपनी ज़िम्मेदारी समझो, इतनी लापरवाही ठीक नहीं . ऐसे में  मैं सोचता हूँ- काश मैं खुले आसमान के नीचे जंगल में होता.

यह बड़े

               एक पार्क में छोटे बच्चे पार्क में खेलते हैं. उनके बड़े उनसे दूर बैठ कर, गपियाया करते हैं .  कभी कभी चिल्ला देते हैं- यह न करो, लड़ों नहीं, यह गन्दी बात है, मिटटी में क्यूँ लोट रहे हो ? आदि आदि, न जाने क्या क्या .  मुझे समझ में नहीं आता, यह बड़े दूर बैठ कर बच्चो को उपदेश क्यूँ देते हैं? उनकी तरह लड़ते हुए, मिटटी में लोटते और सब कुछ करते हुए खेलते क्यूँ नहीं ?

मेम और फादर

                मैम और फादर ओ मेरे मास्टर जी, हम छात्र तुम्हे मास्टर जी कहते थे, टीचर जी नहीं. इसके बावजूद तुमने हमें टीच भी किया.  इसी टीच यानि शिक्षा का परिणाम है कि मैं ईमानदारी से नौकरी कर सका, निष्ठा से अपना काम कर सका मेहनत करके जन सेवा की. पर अब कोई,  मास्टर या मास्टरनी नहीं . अब फादर या मैम हैं, जो सिखाते हैं- बच्चों आपसे कोई बड़ा नहीं, आप सभी के फादर यानि बाप हो, कोई हम नहीं  सभी 'मैं' हैं जिनके आगे 'मैं' लगा हो, वह मैम और क्या सिखाएंगी. इसीलिए, आज मैं की संख्या ज्यादा है, जनता के सेवक कम बाप ज्यादा हैं .

बादल का श्राप

              बादल का श्राप एक बार बेहद सूखा पड़ा, अनाज पैदा होना बंद हो गया . पानी के बिना धरती का सीना तक फट गया लोग दुआ करने लगे, आसमान की ओर हाथ उठा कर,  जार जार रोने लगे . यह देख, आसमान द्रवित हो उठा. उसने बादल को बुलाया धरती पर बरसने की आज्ञा दी.  बादल पानी बरसाने लगा, पानी इतना बरसा, इतना बरसा की बाढ़ आ गयी.  धरती  जलमग्न हो गयी. मवेशी मरने लगे पहले घर डूबे, फिर लोग डूबने लगे प्रकृति का प्रकोप देख कर लोग बिलखने लगे, आसमान को कोसने लगे मनुष्य का ऐसा चरित्र देख कर आसमान ग्लानी से भर गया उसकी आँखों में, सतरंगी आंसूं झिलमिला रहे थे.  यह देख कर बादल  फूट फूट कर रोने लगा .

आंसुओं का खिलखिलाना

                      आंसुओं का खिलखिलाना मुझे रोते रोते खिलखिलाना अच्छा लगता है. तुम भी देखो ऐसा करके, सामने के तमाम दृश्य तुम्हारे आंसुओं के बीच से होते हुए, तुम्हारी खिलखिलाहट के साथ, झिलमिलाने लगते हैं.

गंदे बच्चे

                 गंदे बच्चे मैंने देखा, वह मैले कुचैले बच्चे गालियाँ बकते हैं, एक दूसरे की माँ बहन से नाता जोड़ते हैं . बिना यह जाने कि उस सामने वाले बच्चे की माँ भी उतनी ही ग़रीब और असहाय है, जितनी उसकी अपनी माँ. इसके बावजूद  वह बच्चे एक दूसरे की माँ बहन को बेईज्ज़त करते रहते हैं . क्यूंकि वह इतना तो अच्छी तरह से जानते हैं कि जिसकी माँ बहन की वह बेईज्ज़ती कर रहे हैं वह उतना ही कमज़ोर और असहाय है,  जितने वह खुद हैं.