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संदेश

विडंबना

इतिहास में दर्ज हो गया  वह जिसे इतिहास न भाया  कभी ! २  गणित का अध्यापक  कक्षा में पढाता था तिथियाँ गिनता  बटुआ खोलता  घर में ! ३  डॉक्टर 

शिकारी!

पेड़ पर  शेर की छलांग से परे  सुरक्षित दूरी पर  मचान लगा कर  शेर का शिकार करता हूँ  बंदूक के सहारे । फिर भी  शेर शिकार है  और मैं शिकारी। 

चिट्ठी

अब चिट्टी नहीं आती  मैं किसी को नहीं लिखता  कोई मुझे पोस्टकार्ड नहीं भेजता  अंतर्देशीय का प्रश्न नहीं  लिफ़ाफ़े! जन्मदिन और वैवाहिक शुभकामनाओं तक  मैं कंप्युटर गाय हूँ  मेल भेजता हूँ  उत्तर मिल जाता है  कुछ मिनट या घण्टों में  पर ऐसे छूट जाते है  जो कंप्युटर गायज नहीं  क्योंकि मैं पत्र नहीं लिखता  मैं कंप्युटर गाय हूँ. 

महानगर

अभी यह महानगर सोया है  जागेगा  भागेगा  जीवन जीने को होड़  इसे दौड़ाएगी यह क्लांत नहीं होगा  अशांत नहीं होगा  रुकेगा नहीं  ठोकर खा कर भी  क्योंकि वह जानता है  एक दिन  जीवन देगा ठोकर  घायल होगा जीव  पर यह महानगर  रुकेगा नहीं,  थकेगा  इसी का नाम जीवन  महानगर अभी सोया है,  बस! 

पेन्शन रजिस्टर बनाने से फ़ायदा!

कल मैंने #worldsuicideday पर एक पोस्ट लिखी थी. आज इसका दूसरा हिस्सा लिख रहा हूँ.       दरअसल , मेरी सेवा की विशेषता यह है कि वह कौवा कान ले गया पर इतना विश्वास करती है कि कौवा उसका कान ले गया या किसी और का कान , जानना नहीं चाहती. यह पूछने का सवाल ही नहीं उठता कि कान सचमुच में गया या नहीं. बस दौड़ लगाने लगत्ते थे कौवे की पीछे.       मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. ऐसा लखनऊ कोषागार में हुई एक घटना के कारण हुआ था. उस घटना के बाद , मेरे बैच के ऑफिसर भी कहने लगे थे कि तुम झगडालू हो. अब उनसे कौन कहे कि अकेला ऑफिसर मठाधीशों की भीड़ में मारपीट नहीं कर सकता.   बहरहाल मेरी पहली इमेज अपनी सेवा के अधिकारीयों में यही बनी थी. शायद यही इमेज निदेशक कोषागार के मस्तिष्क में भी थी. इसी से वह मुझसे उचाट थे.       बहरहाल , मैं इस सब से बेपरवाह कर्मण्ये वाधिकारस्ते पर विश्वास करता हुआ अपने कमरे पर रखी पेंशन फाइल्स निबटाने में जुट गया. फाइलों का इतना बड़ा जखीरा दिमाग हिलाए दे रहा था. मैंने सोचा , भाई निर्देशक खुश नहीं है , ट्रान्सफर तो करवा...

मैंने भी चाहा था आत्महत्या करना! #WorldSuicideDay

आज , १० सितम्बर को , पूरा विश्व वर्ल्ड सुसाइड डे मना रहा है. इस अवसर पर अपना एक   अनुभव.   यह बात , उस समय की है , जब मेरी तैनाती पेंशन निदेशालय में संयुक्त निर्देशक के पद पर हुई थी. ट्रान्सफर का मारा , जिसे प्रमोशन के लिए उत्कृष्ट यानि आउटस्टैंडिंग पृविष्टि की जरूरत रहा करती थी. कितना परेशान हैरान विभागाध्यक्ष चाह कर भी बैड नहीं लिख पाता था. इसलिए अधिकतर ने प्रविष्टि लिखी ही नहीं. एक आध ने लिखी तो श्रेणी दी अच्छा. यह अच्छा क्या होता है. उस समय के लिहाज से मेरे प्रमोशन के लिए बैड से भी खराब.   हमारे एक अधिकारी का कहना था कि कांडपाल जी , आप लोगों को बैड लिखो ही नहीं. सामान्य लिख दो. प्रमोशन होगा नहीं. बैड लिखो तो जवाब देना पड़ेगा. विभागाध्यक्षों की इस नीचता के कारण मेरा प्रमोशन लगातार रुक रहा था. डीपीसी होती. पता चलता कि प्रमोशन नहीं हुआ है. दिल धक् से कर जाता. निराशा का गहरा कुहासा छा जाता. उस पर ट्रान्सफर पर ट्रान्सफर.   हाँ. तो बात कर रहा था संयुक्त निर्देशक पेंशन निदेशालय में तैनाती की. उस समय के निर्देशक बड़े सुलझे हुए व्यक्ति थे. मैं सोचता था कि कुछ दि...