कुत्ते तो कुत्ते होते हैं। कुत्ते चाहे अडानी को हों या अम्बानी के। उनके नाम चाहे हप्पू हो, पप्पू हों या टप्पू, वह होते कुत्ते ही हैं।
एक दुम, चार टांगों वाले कुत्ते। किसी की दुम लम्बी या छोटी हो सकती है। किन्तु, टाँगे चार से पांच नहीं हो सकती। यह संभव है कि किसी कुत्ते की दुर्घटना में एक टांग टूट गई हो। तो भी वह तीन टांग वाला नहीं, साढ़े तीन टांगों वाला कुत्ता कहलाता है।
किन्तु, ऐसे कुत्ते की कीमत बढती नहीं कि वह अपवाद है। चार टांगों के बीच साढ़े तीन टांगों वाला अपवाद। ऐसे कुत्ते को हिकारत से देखा जाता है। साला लंगड़ा कहीं का! उसे लंगड़ा कह कर दुत्कारा जायेगा, ठीक इंसान की तरह।
हाँ, टांगों को लेकर एक ख़ास बात। कुत्ते की टाँगें लम्बी छोटी हो सकती है। लम्बी टांगो वाला कुत्ता तेज दौड़ सकता है। छोटी टांग वाला नहीं। किन्तु, छोटी टांगों वाले कुत्ते को उनकी मम्मियां, मेरा कहने के मतलब उनकी मेम साहब बहुत अच्छा मानती है। उठाये उठाये घूमती हैं हाथों में। बड़े घर के लोग इन कुत्तों को अपना बच्चा कहते हैं। तो ऐसे में मेमसाब लोग मम्मियां ही तो हुई!
जो हो, कुत्तों को प्यार बहुत मिलता है। अब देख लीजिये। सुप्रीम कोर्ट ने कुत्तों को दिल्ली और एनसीआर से आवारा कुत्तों को सड़क से हटा देने के आदेश दे दिया। उनकी वैध और अवैध मम्मिया और उनके वैध चंदा जुटाने वाले एनजीओ सक्रीय हो गए। विधवा विलाप शुरू हो गया। कितने तो अच्छे होते हैं कुत्ते। किसी को काट लेते हैं तो क्या हुआ। रात में रखवाली भी तो करते है। सबसे बड़ी बात, इनका भी तो मानवाधिकार है। इतनी दलीलें दीं, इन आवारा कुत्तों की मम्मियों ने, सड़क पर तख्ती लेकर उतर आई कि सुप्रीम कोर्ट भी घबड़ा गया। सम्भव हैं कि जजों के घरों में भी ऐसी दयालुओ मम्मियां हो।
संभव बहुत कुछ हो सकता है। सड़क पर घूमते कुत्ते, घरों में मम्मियों के कुत्तों के सहोदर न सही, एक कुल के तो हैं ही। कुत्ता कुल। सब बदल सकता है। फ्लैटों -बंगलों में रहने वाले बड़े लोग इन्हे चाहे जो नाम दे। अपना बेटा माने। बेटे से भी अधिक प्यार दें। मेमसाब इन्हे सब से अधिक प्यार देती है। पुचकारती तो हैं ही। पति को चाहे कभी कभार चूमे, किन्तु कुत्ते को जब तब, घर बाहर चूमती रहती है। उनके साथ रात दिन सोती रहती है। कुछ मेमसाब तो पति वाले काम बीच करवा लेती है। किन्तु, कुत्ते तो कुत्ते होते है।
जी हाँ, कुत्ते तो कुत्ते होते है। यह कितने भी बड़े घरों में पले बढे हो, घर के कमोड में नहीं हग सकते। मेमसाब और साब कितना गोद में बैठा लें, बिस्तर में सुला ले। उसे कमोड में नहीं बैठाएंगे। उसे तमीज से इंग्लिश स्टाइल में हगना नहीं सिखाएंगे। पता नहीं क्यों ? जब आप अपनी इंग्लिश इसे समझा सकते हैं तो इंग्लिश लैट्रिन पर बैठना और आगे के दो पैर उठा कर हगना क्यों नहीं सिखा सकते! किसी भी अमीर के पास केजरीवाल के टाइप की टट्टियाँ क्यों न हो, वह इनमे खुद ही बैठेगा। अपनी चार टांगों वाले बेटे को नहीं बैठायेगा।
इस कुत्ते को, इस हेतु रखे गए नौकर को सौंप देगा। जी हाँ, कुत्ते तो कुत्ते होते है। कुत्ता चाहे साब या मेमसाब का हो, हगने घर के बाहर ही जायेगा या भेजा जायेगा। अफोर्ड कर् सकने वाले, इसके लिए अतिरिक्त आदमी रखते है। अन्यथा खुद ले जायेंगे।
आप कभी घर के बाहर निकले तो देखें। एक कुत्ता, आदमी को खींचते हुए आगे आगे चलता है। यह इकलौता ऐसा उदाहरण है, जिसमे अपनी पत्नी के आगे आगे चलने वाल आदमी भी कुत्ते के पीछे पीछे चलता है। मुझे तो कभी ऐसा लगता है, जैसे आदमी कुत्ते को टहलाने- हगाने नहीं लाया है, बल्कि कुत्ता उसे टहलाने लाया है।
कुत्ता चाहे आवारा हो या फाइव स्टार घर का। कुत्ता ही होता है। आवारा कुत्ता सड़क पर भूख मिटाने के लिए घूमता कुछ भी खा लेता है। उसे खाना देता कौन है ! वह करेगा क्या ? किन्तु, फाइव स्टार कुत्ते को फाइव स्टार विशिष्ट भोजन मिलता है। वह घर में ऎसी वैसी चीज खा ही नहीं सकता।
किन्तु, कुत्ता तो कुत्ता होता है। जैसे ही मेम साहब का कुत्ता घर से बाहर निकलता है, लहराता हुआ, इधर उधर देखता, पास से गुजर रहे लोगों को दुत्कारता चलता है। उसे कोई हिस्स नहीं कर सकता। फिर वह कुत्ता किसी कार या दोपहिया को देखते ही सूंघना शुरू कर देता है। कुछ देर सूंघ का मजा लेने के बाद, वह अपनी छोटी या बड़ी, जैसी भी टांग हो, उठा कर मूत्र विसर्जन कर देता है। थोड़ा आगे चल कर वह कहीं भी पिछली टांगें फैला कर हग मारता है।
इस पूरे घटनाक्रम से यह पूरी तरह से साबित नहीं होता कि कुत्ते तो कुत्ते होते है। यह तो हगने और मूतने की प्रक्रिया है। इंसान कोई थोड़े ही टाँग उठा कर मूतेगा। निस्संदेह टांग फैला कर गई हगेगा। ईश्वर ने यह एक ऎसी प्रक्रिया है, जो हर जीव में बिना किसी जाति धर्म और स्थान के एक जैसी बनाई है।
इससे साबित होता है कि कुत्ते तो कुत्ते होते हैं । आप देखिएगा। बढ़िया नस्ल का, मेमसाब का कुत्ता नित्य क्रिया के लिए बाहर आता है और कर्म पूरा करता है। इसके बाद.... इसके बाद, भरा पेट होने के बावजूद, बढ़िया खाना नित्य खाने के बावजूद, कूड़ा देखते ही, उसे सूंघना शुरू कर देता है। कूड़े के चारों तरफ या इधर उधर किसी तलाश में मुंह मारता है। पता नहीं यह सार्वभौमिक तलाश होती है ! किन्तु, एक बात तय है कि किसी भी नस्ल और किस्म का कुत्ता सड़क पर आने के बाद कुत्ता बन जाता है, कूड़े पर मुंह मारता है।