सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

घड़ी

रुक जाओ ! कहा समय ने  घड़ी की सेकंड, मिनट और घंटे की सुइयां रुक गयीं  समय ने  सेकंड की सुई को डपटा- कितना तेज़ चलती हो  क्या सबसे आगे निकल जाना चाहती हो? कम से कम मिनट के साथ तो चलो  फिर मिनट को डपटा- तुम घंटे से लम्बी हो  इसका मतलब यह नहीं कि  उसे परास्त करने की कोशिश करो  तुम्हारी प्रतिस्पर्द्धा सेकंड से नहीं  फिर घंटे से कहा- ओह, सेकंड एक चक्कर लगा चुकी है  तुम साठवां भाग ही हिले हो  तुम मिनट के साठ डगों को  अपने एक डग  से नापना चाहते हो  इतनी सुस्ती भी ठीक नहीं  थोडा तेज़...

पंछी

सुबह होने को है  एक पंछी जागता है  उसके जगे होने का एहसास कराती  है  उसके पंखों की फड़फड़ाहट  जैसे झटक देना चाहता हो  कल की थकान और सुस्ती . वह आँख खोलता है  घोसले से झाँक कर कुछ देखना चाहता है  धुंधलके के बीच से  फिर दोनों पंजों के बल  खड़ा हो जाता है पेड़ की डाल पर  उसे उड़ना ही होगा  जाना होगा दूर तक  कुछ खाने की खोज में  बरसात से घर बचाने को  तिनकों की तलाश करनी ही होगी  उड़ चलता है वह  जोर की आवाज़ करता  ताकि और साथी भी जग जाएँ  वह भी तलाश कर लें अपने...

खेल

रोशनदान के नीचे बना घोंसला  छोटी चिड़िया झांकती, इधर उधर देखती उड़ कर कहीं जाती, लौट कर आती  चोच में दाना या तिनका लिए  रख कर फिर उड़ जाती या थोडा फुदकती इधर उधर  नन्हा देख रहा है ध्यान से  नन्ही चिड़िया के करतब और खुश हो रहा है  रोशनदान की झिरी से  धूप  का एक छोटा टुकड़ा झांकता है, फिर बैठ जाता है घोंसले पर  चिड़िया चीं चीं करने लगती है  मानो कह रही हो हटो मेरे घोंसले से  टुकड़ा नहीं मानता तो समझौता कर लेती  खेलने लगती है उससे . नन्हा देख रहा है सब  वह भी खेलना चाहता है चिड़िया ...

बेटी

जब बेटी पिता के काम से वापस आने पर उसकी गोद में बैठ जाती है तो बेटी जैसी लगती है। जब वह अपनी नन्ही उंगलियों से हाथ सहलाती है तब स्नेहमयी माँ जैसी लगती है। 2- क्यूँ फिक्र होती है कि बेटी जल्दी बड़ी हो गयी यह  क्यूँ नहीं सोचते कि कितनी जल्दी सहारा बन गयी। 3- बेटी कविता है जिसे पढ़ा भी जा सकता है और गुनगुनाया भी जा सकता है। 4- खुद को बेटी समझने वाली जब माँ बन जाती है तब बेटी को माँ की तरह क्यूँ देखती है बेटी की तरह क्यूँ नहीं देखती जो माँ बनना चाहती थी। 5- भ्रूण में मारी जा रही बेटी ने कहा- तुम कैसी माँ हो तुमने मुझे अपना बचपन समझने के बजाय भ्रूण समझ लिया।

माँ की चिंता

एक माँ  दरवाज़े पर बैठी बाट जोह रही है  अपने बेटे की . ऑफिस से अभी तक वापस नहीं आया है  क्यूँ देर हो गयी ? क्या बात हो गयी ? फ़ोन भी नहीं किया ? दसियों अनर्थ  मस्तिष्क में विचर जाते  चिंता की लकीरें ज्यादा गहरी हो जाती  माँ के माथे पर . माँ बहु से पूछती- लल्ला क्यूँ नहीं आया अभी तक? सास बहु के टीवी सीरियल देखती बहु  व्यंग्य करती- माजी अब वह आपके लल्ला नहीं रहे  बड़े हो गए हैं,   ऑफिस में नौकरी करते है, ज़िम्मेदार है, फंस गए होंगे किसी काम से । बहु टीवी का वोल्यूम कुछ ज्यादा तेज़ कर देती...

गंगा- हाइकु

सूखती गंगा  पाप बढ़ रहे हैं  धोता कौन है . 2- गंगा निकली  शिव की जटाओं से  भटक गयी। 3- गंगा नदी है  माँ का नाम गंगा  दोनों उपेक्षित . 4- गंगा का पानी  बिसलेरी बोतल  बेचते हम . 5- बहती गंगा  कूदी गंगा  नदी में  दोनों ही ख़त्म .

बेचारी भिखारन

मैं बहुत दयालु हूँ  मेरी दयाद्रता के बारे में जानना हो तो  मेरे मोहल्लें में आने वाली  एक भिखारन से पूछो  वह बताएगी कि मैं कितना दयालु हूँ  मैं उसे अपने घर के दरवाज़े पर बुलाता हूँ निकट बिठालता  हूँ   बेशक उस समय मेरी पत्नी घर नहीं होती  इन औरतों का क्या कहिये  बेहद शक्की होती हैं  भिखारिन को ही क्या कह दें, क्या न कह दें  मैं भिखारिन को कुछ खाने को देता हूँ  पानी पिलाता हूँ  कुछ न कुछ ले जाने के लिए भी देता हूँ  कभी नकदी भी  मैं उसका पैनी दृष्टि से निरीक्षण करता हूँ  मुझे उसकी...