एक माँ
दरवाज़े पर बैठी बाट जोह रही है
अपने बेटे की .
ऑफिस से अभी तक वापस नहीं आया है
क्यूँ देर हो गयी ?
क्या बात हो गयी ?
फ़ोन भी नहीं किया ?
दसियों अनर्थ
मस्तिष्क में विचर जाते
चिंता की लकीरें ज्यादा गहरी हो जाती
माँ के माथे पर .
माँ बहु से पूछती-
लल्ला क्यूँ नहीं आया अभी तक?
सास बहु के टीवी सीरियल देखती बहु
व्यंग्य करती-
माजी अब वह आपके लल्ला नहीं रहे
बड़े हो गए हैं,
ऑफिस में नौकरी करते है,
ज़िम्मेदार है, फंस गए होंगे किसी काम से ।
बहु टीवी का वोल्यूम कुछ ज्यादा तेज़ कर देती
ताकि कानों तक न पहुंचे माँ की चिंता .
माँ मन मसोस कर दरवाज़े पर आ बैठती
बहु अभी नादान है
वह क्या जाने माँ की चिंता
जब बच्चे होंगे तब मालूम पड़ेगा .
थोड़ी देर बाद लल्ला पहुंचता है घर
माँ पूछती है-
बेटा आज बहुत देर हो गयी ?
लल्ला को माँ की चिंता तक से सरोकार नहीं
वह सीधा घुस जाता है अपने कमरे में
बहु भड़ाक से दरवाज़ा बंद कर लेती है
माँ की चिंता बाहर रह जाती हैं
माँ के साथ।
बहुत सुन्दर रचना!!!
जवाब देंहटाएं