सुबह होने को है
एक पंछी जागता है
उसके जगे होने का एहसास कराती है
उसके पंखों की फड़फड़ाहट
जैसे झटक देना चाहता हो
कल की थकान और सुस्ती .
वह आँख खोलता है
घोसले से झाँक कर कुछ देखना चाहता है
धुंधलके के बीच से
फिर दोनों पंजों के बल
खड़ा हो जाता है पेड़ की डाल पर
उसे उड़ना ही होगा
जाना होगा दूर तक
कुछ खाने की खोज में
बरसात से घर बचाने को
तिनकों की तलाश करनी ही होगी
उड़ चलता है वह
जोर की आवाज़ करता
ताकि और साथी भी जग जाएँ
वह भी तलाश कर लें अपने भविष्य की
यह सुन कर
अभी तक बादलों की ओट में
आलस करने की कोशिश करता सूरज
बाहर निकल आता है
जैसे सलाम कर रहा हो
पंछी की भविष्य की कोशिशों को .
और तभी
खिल उठता है आकाश पर
इन्द्रधनुष ।
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