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नया साल पुराना साल

              नया साल मैंने साल के हर दिन को गिना है उन्हें हफ़्तों और महीनों में पिरोया है. फिर अनुभवों की तिजोरी में बंद कर बही खाता बनाया है. इस बही खाते में दर्ज है हर सेकंड हर मिनट का हिसाब कि पिछले साल मैंने क्या खोया और क्या पाया. खोने ने मायूसी दी और पाने ने ख़ुशी . आज जब बही खाता पलट रहा हूँ, मायूसी से खुशी को घटा रहा हूँ तो पाता हूँ कि मुझे मायूसी का लाभ हुआ है और खुशियों का घाटा इसीलिए गए साल की ओर पीठ पलटा कर मैं नए साल को हैप्पी न्यू इयर कर रहा हूँ.             पुराना साल मैं व्यस्त था नए साल का स्वागत करने दोस्तों के साथ खुशियाँ मनाने की तैयारी में . कुछ ही मिनट शेष थे नए साल के आने में कि पीछे से कोई फुसफुसाया- सुनो . मैंने पलट कर देखा होंठों पर फीकी मुस्कान लिए उपेक्षित सा खड़ा था पुराना साल. बोला- याद है तीन सौ पैंसठ दिन पहले तुमने इसी तरह मेरा स्वागत किया था अपने दोस्तों के साथ. पर आज मेरी ...

त्रिकट

हमारे शरीर में दो आँखे होती हैं, जो देखती हैं. दो कान होते हैं, जो सुनते हैं. नाक के दो छेद होते हैं, जो सूंघते हैं. दो हाथ होते हैं, जो काम करते हैं. दो पैर होते हैं, जो शरीर को इधर उधर ले जाते हैं. सब पूरी ईमानदारी से अपना काम करते हैं, शरीर को चौकस रखने के लिए. लेकिन मुंह जो केवल एक होता है वह केवल खाना चबाता नहीं. वह आँखों देखी को नकारता है. कान के सुने को अनसुना कर देता है. हाथ पैरों का किया धरा बर्बाद कर देता है. पेट अकेला होता है, जुबान उसकी सहेली होती है. जुबान स्वाद और लालच पैदा करती है पेट ज़रुरत से ज्यादा स्वीकार कर शरीर को बीमार और नकारा बना देते हैं. और मुंह इसमें सहयोग करता ही है. हे भगवान् ! यह तीन त्रिकट अकेले अंग शरीर का कैसा विनाश करते हैं. मानव को बना देते  हैं वासनाओं का दास.

मेरे पाँच हाइकु

   (१) पपीहा बोला विरह भरे नैन पी कहाँ ...कहाँ.   (२) शंकित मन  गरज़ता बादल बिजली गिरी .   (३) घोर अँधेरा निराश मन मांगे आशा- किरण.   (४) पीड़ित मन गरमी में बारिश थोड़ी ठंडक.   (५) रंगीन फूल हंसती युवतियां भौरे यहाँ भी.

बंदी

क्या आप जानते हो कि क़ैद क्या होती है? यही न कि ऊंची ऊंची दीवारें मोटी सलाखों के पीछे बना ठंडी सीमेंट का बिस्तर और ओढ़ने को फटे पुराने कंबल या चादर? पूरी तरह से ड्यूटी पर मुस्तैद मोटे तगड़े बंदी रक्षक बात बेबात उनकी गलियाँ और बेंतों की मार? ठंडा उबकाई पैदा करने वाला भोजन और जली रोटियाँ? मेरी क़ैद इससे अलग भावनाओं की क़ैद है जहां शरीर की कोमल दीवारें हैं, साँसों के बंदी रक्षक है रिश्ते हैं नाते हैं, अपने हैं पराए हैं उनके स्वार्थ हैं और निःस्वार्थ भी। वह मुझे चाहते हैं और नहीं भी वह मेरा जो कुछ भी है पाना चाहते हैं वह मुझसे लड़ते झगड़ते और कोसते भी हैं। इसके बावजूद मैं एक कैदी होते हुए भी खुश हूँ। मोह के बंदी गृह का बंदी हूँ मैं।

बच्चा

बच्चा जब रोता है चुपके चुपके सुबकता सा सबसे छुपता छुपाता क्यूंकि माँ देख लेगी या कोई और देख कर माँ को बताएगा तो माँ डांटेगी- क्यूँ रोता है न मिलने वाली हर चीज़ के लिए जिद्द करते हुए ? बच्चा फिर भी रोता रहता है जानते हुए भी,  कि, उसे वह चीज़ नहीं मिल सकती ऐसे में उसे चीज़ न मिल पाने का दुःख रुलाता है . बड़े हो जाने के बावजूद आज भी वह बच्चा रोता है चुपचाप सुबकता हुआ इसलिए नहीं, कि, उसे मनचाही चीज़ नहीं मिल सकती बल्कि इसलिए कि वह छुपाना चाहता है अपने दुःख को जिसे वह सब को दिखा नहीं सकता इसी व्यक्त न कर पाने की  मजबूरी का दुःख उसे रुलाता है एक बच्चे की तरह.

हारने का दर्द लँगड़ाना

यह कविता मैंने अभिव्यक्ति समूह की वाल पर ११ नवम्बर २०११ को लिखी थी. आज ब्लॉग में अंकित कर रहा हूँ. हारने का दर्द उसे क्या मालूम जो कभी जीता ही नहीं. यह कविता मैंने १९ नवम्बर को लिखी थी कभी कभी लंगड़ाना भी अच्छा होता है. आप इच्छाओं की दौड़ में भाग नहीं ले पाते.

पाँच बचपन

जानते हो बच्चा इस बेफिक्री से हंस कैसे लेता है? क्यूंकि, वह जानता नहीं कि रोना क्या होता है. क्यूंकि रोना तो उसके लिए माँ को पास बुलाने का उसका वात्सल्य पाने का एक मासूम बहाना है. जबकि हम रोने को रोते हैं रोने की तरह कुछ न पाने और कुछ खो देने के कारण . यही तो फर्क है माँ और मान पाने के लिए रोने का !      (२) एक दिन मैंने ज़िंदगी से मनो-विनोद किया  उस दिन मैं  ऑफिस से जल्दी आ गया था।  मेरा नन्हा  सोया न था।        (३) नन्हें से मैंने पूछा- तुम मुझे कितना प्यार करते हो? उसने अपने दोनों हाथ फैला दिये दूसरे पल सारी दुनिया का प्यार मेरी सीने से चिपका था। (४) मैंने  सिसकते बेटे से पूछा- रो क्यूँ रहे हो? बोला- माँ ने मारा। मैंने कृत्रिम क्रोध दिखाया-   अभी मैं उसे मारता हूँ। बेटे ने तुरंत आँसू पोछ लिए बोला- नहीं तुम नहीं मारो। मैंने पूछा- क्यूँ? तो बोला- नहीं, तुम माँ नहीं हो।   (५) बच्चा घुटनों...