यह कविता मैंने अभिव्यक्ति समूह की वाल पर ११ नवम्बर २०११ को लिखी थी. आज ब्लॉग में अंकित कर रहा हूँ.
हारने का दर्द
उसे क्या मालूम
जो कभी
जीता ही नहीं.
यह कविता मैंने १९ नवम्बर को लिखी थी
कभी कभी
लंगड़ाना भी
अच्छा होता है.
आप इच्छाओं की दौड़ में
भाग नहीं ले पाते.
हारने का दर्द
उसे क्या मालूम
जो कभी
जीता ही नहीं.
यह कविता मैंने १९ नवम्बर को लिखी थी
कभी कभी
लंगड़ाना भी
अच्छा होता है.
आप इच्छाओं की दौड़ में
भाग नहीं ले पाते.
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