सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सांता

क्रिसमस पर सजे हुए ऊंचे, सुन्दर मॉल में जा  रहा है सांता इंतज़ार कर रहे है बड़े घरों के टिप टॉप बच्चे सांता आएगा गिफ्ट देगा मॉल में जाते सांता की नज़र पड़ती है मॉल के पीछे की गन्दी बस्ती के बच्चो पर जो ललचाई नज़रो  से देख रहे हैं सांता को क्या सांता पास आएगा ! उन्हें भी देगा गिफ्ट ! सांता की दृष्टि उन पर पड़ती है झटके से घुस जाता है मॉल में बुदबुदाते हुए - गॉड ब्लेस यू।  

रूदन पुकार

मैंने सुना नातिन रो रही थी शायद भूख लगी थी या कोई दूसरी तकलीफ बच्चे सो रहे होंगे जवान नींद गहरी होती है मैं दौड़ कर जाता हूँ नातिन को उठा लेता हूँ काश! ऐसे ही हर कोई सुनता किसी की रूदन पुकार !!!

ऐसे ही स्वप्न देखता

अगर रास्ता  पथरीला नहीं पानी पानी होता  नदी बहती नहीं पत्थर सी ऐंठी रहती ज़मीन सर के ऊपर होती आसमान पाँव तले कुचलता पक्षी तैरते जानवर हवा में कुलांचे भरते मैं जागते हुए भी ऐसे ही स्वप्न देखता।

शब्दरंग में प्रकाशित ५ हाइकू

सर्दी पर ५ हाइकू

१-  सर्दी लगती मास्टर की बेंत सी नन्हे के हाथ। २- हवा तेज़ है ठिठुरता गरीब छप्पर कहाँ। ३- बर्फीली सर्दी अलाव जल गया सभी जमे हैं। ४- सूरज कहाँ फूटपाथ सूना है दुबक गए। ५- नख सी हवा मुन्ने की नाक लाल बह रही है। # राजेंद्र प्रसाद कांडपाल, फ्लैट नंबर ४०२, अशोक अपार्टमेंट्स, ५, वे लेन, जॉपलिंग रोड, हज़रतगंज, लखनऊ- २२६००१ मोबाइल -

एब्सॉल्यूट इंडिया मुंबई में दिनांक १६ नवंबर २०१४ को प्रकाशित सर्दी पर १० हाइकू

शीत पर १० हाइकू

इस जाड़े में आँखें कहाँ खुलती भोर देर से। २- उषा किरण नन्हे की नाक लाल इतनी ठण्ड ! ३- हवा का झोंका नाक बह रही है प्रकृति क्रीड़ा। ४- सूर्य उदय श्रमिक जा रहे हैं रुकता कौन ! ५- बर्फ गिरती सब सोये हुए हैं चादर तनी। ६- शीत का सूर्य बच्चा आँगन खेले अच्छा लगता। ७- सूर्य कहाँ है घूमने कौन जाये दुबके सब। ८- पत्ते पीले हैं  बाबा भी बीमार है क्या बचेंगे ? ९- हो गयी शाम खिल गए चेहरे निशा आ गयी। १०- चन्द्रमा खिला संध्या थक गयी है गुड नाईट ।             

बेटी जैसी खुशी

कभी खोई थी बेटी ढूंढता रहा था बेहाल इधर उधर जब मिली कैसा खिल गया था चेहरा आदमी का ऐसे ही खोजनी पड़ती हैं खुशियां ! 

शेष रास्ता

रास्ता ख़त्म नहीं होता कभी।  दुरूह होता है दुर्गम हो सकता है पर मिलेगा ज़रूर  ढूंढो तो सही ख़त्म होने के लिए नहीं बनते रास्ते लक्ष्य के बाद भी शेष रहते हैं रास्ते आगे जाने वाले मुसाफिर के वास्ते वहीँ ख़त्म होते हैं रास्ते/जहाँ खड़ी कर दी जाती है दीवार। २- पगडण्डी और रास्ते का फर्क पगडण्डी पर नहीं बनायी जा सकती दीवार। 

एब्सॉल्यूट इंडिया, मुंबई में दिनांक २४ अक्टूबर २०१४ को प्रकाशित मेरी रचनाएँ

करुणा

बूँद आसमान से गिरी या आँख से ! दोनों में संभव है करुणा तपती धरती के लिए भूखे बच्चे के रोने पर अंतर है सामर्थ्य का।  आसमान से गिरी बूँद बारिश बन कर धरती तृप्त कर सकती है पर आँखों से गिरी बूँद भूख नहीं मिटा सकती।  

मैं चला

जब रास्ते तुम्हे अज़नबी लगें समझ लो राह भटक गए हो। २. जश्न मनाने में मैं भूल गया कि, आतिशबाजियां जला सकती हैं किसी का घर .  ३.  मैं चलना चाहता था निर्बाध/ चला भी राह के काँटों ने मुझे रोक लिया मैं रुका/थोड़ा झुका कांटे बटोरे एक किनारे कर दिए फिर मैं आगे बढ़ लिया अब पीछे आने वालों के भी रास्ता साफ़ था . 

पांच दीपक और चाँद उदास

१- आस्था का दीपक जलेगा आवश्यकता क्या है तीली सुलगाने  की भावनाओं की २- माँ जब दीपक जला चुकी तब कुलदीपक के नैनों के दीप जल उठे अब फुलझड़ी जलेगी. ३- पूजा की शीघ्रता विघ्नहर्ता गणेश को नहीं लक्ष्मी माता को भी नहीं मूषक राज को चढ़ावा कुतरेंगे। ४- संग संग जलते इठलाते बतियाते दीपक मानों कह रहे हों- अब ठण्ड पड़ने लगी. ५- नन्हा कहीं खो गया क्या ! सबने खोज इधर उधर नन्हा मिला दीपक के पास पूछ रहा था- अकेले उदास तो नहीं।   चाँद उदास चाँद उदास था क्रमशः क्षय को रहा था शरीर तारों ने पूछा- उदास क्यों ! बोला- मैं देख नहीं पाऊंगा पृथ्वी पर टिमटिमाते नन्हे नन्हे दीपों के अंधकार भगाने के कौशल को,  अंधकार के भयभीत चेहरे को जो प्रतीक्षा करता है मेरे क्षय की ताकि, फैला सके पूरी दुनिया में अपना साम्राज्य।  तब तारों ने कहा- हाँ, हम सौभाग्यशाली है देखते हैं नन्हे दीपों का अन्धकार से सफल युद्ध परन्तु, इसे तुम देख सकते हो हमारी विजयी झिलमिलाहट में।

करवा चौथ

बेटा  तब तक नहीं समझ सका कि  माँ  क्यों करवा चौथ में पूरा दिन व्रत रहती है चाँद का इंतज़ार करती है और पिता है कि आते ही ऑफिस से खाना खा लेते हैं जब तक कि वह करवा चौथ के दिन ऑफिस से आया और पत्नी से खाना परोसवा कर खा  गया।  

थकान

कभी तेज़ भागो इतना तेज़, कि सब पीछे रह जाएँ साथी पीछे छूट जाएँ तब देखना कैसे थक जाते हो पीड़ा से भरे पैर उठने से इंकार कर देते हैं तब तुम पीछे रह जाते हो अपने साथियों से भी पीछे ऎसी होती है भागने से पैदा थकान !

वह आदमी

लोगों की भीड़ के बीच किसी से छोटा किसी से लम्बा किसी से मोटा किसी से दुबला एक आदमी सड़क पर तेज़ भागती रंग-बिरंगी छोटी छोटी, बड़ी बड़ी गाड़ियों से सहमा हुआ एक आदमी ऊंची, बहुत ऊंची और कम ऊंची इमरताओं को अचरज से देखता हुआ एक आदमी खुली आँखों में भी पाले हुए है लम्बे कद के  लोगों के बराबर होना चाहता है इनमे से किसी भागती गाडी में बैठना चाहता है  सबसे ऊंची इमारत की सबसे ऊंची मंज़िल में रहना चाहता है आदमी।  एक दिन, गायब हो जाता है वह आदमी कहाँ गया होगा ? निराश हो कर गाँव लौट गया होगा, किसी भागती गाडी के नीचे आकर पिस  गया होगा,  या सबसे ऊंची इमारत की सबसे ऊंची मंज़िल पर रहने लगा होगा आदमी !!! लेकिन, किसी भी दशा में सड़क पर पैदल चलता नज़र नहीं आएगा वह आदमी.

गांधी …न राम

कल गांधी जयंती थी क्या देश स्वच्छ हुआ ! आज विजयादशमी है आज रावण जलेगा क्या देश राम-मय हो जायेगा ! नहीं, न देश स्वच्छ हुआ  न आज के बाद राम-मय होगा क्योंकि, हम गांधी नहीं तो हम में राम कैसे होगा . इसीलिए  देश को गन्दा होना चाहिए हम में रावण को ज़िंदा होना चाहिए .

लड़की डरती है

बोल्ड लड़की घर से निकलती है तन कर चलती बिना सर झुकाये फिर भी डरती है कनखियों से देखती है घूरती/ लेखा-जोखा रखती निगाहें जिनको शिकायत है उसके घर से निकलने तन कर चलने से वह जानती है उसकी मुसीबत में साथ नहीं देंगी यह निरीक्षण करती निगाहें क्योंकि, उन्हें अच्छा लगेगा लड़की का छेड़ा जाना क्योंकि, वह घर से निकलती है और तन कर चलती है लड़की डरती है।

रास्ते : अलग अलग

अलग अलग रास्ते भी एक हो जाते हैं जब अपने मुहाने पर बंद पाये जाते हैं. २- रास्तों को नहीं बाँट सकते चलने का तरीका गलत हो सकता है . ३- वह गिरे मैंने सम्हाला मैं लड़खड़ाया दोनों गिरे लोग हँसे कि दोनों अनाड़ी . ४- मंज़िल आसान लगती अगर रास्तों पर कांटे न होते . ५- जूता पहन कर कांटे नहीं चुभे पर जूतों ने पैर काट लिया.

सपने देखेगा

सबसे  ऊपर की मंज़िल पर कुछ कर रहा आदमी कभी रुकता इधर उधर नीचे देखता आसमान को घूरता कुछ खोजता सा वह आदमी अगर गिरेगा तो मुआवज़ा मिलेगा उसकी बीवी और बच्चों को फिर उसकी बीवी भी काम पर लग जाएगी उसकी तरह शायद ढोयेगी ईंट अगर वह, ठीक से नीचे उतर  आया तो मज़दूरी लेकर इमारत के एक कोने में अपनी पत्नी के साथ मिलकर खाना बनाएगा साथियों के साथ भोजपुरी फिल्म का अश्लील सा गीत गा कर अपनी थकान मिटाएगा फिर सो जायेगा सपने देखेगा सबसे ऊपर की मंज़िल पर अपने परिवार के साथ रहने के।

खबर औरत

खबर बन जाती है एक औरत जब आँख भर देखती है किसी को. २- खबर लिखने के लिए शब्द जानना नहीं आना चाहिए शब्द जड़ना . ३- टीवी पर सामान तब बिकता है जब औरत अर्धनग्न होती है अख़बार के लिए ज़रूरी है नंगा होना.

मुंबई से प्रकाशित हिंदी दैनिक एब्सॉल्यूट इंडिया में आज प्रकाशित मेरी कवितायेँ.

एब्सॉल्यूट इंडिया मुंबई १७ अगस्त २०१४

संपर्क - सेतु

नदी पर बना पुल दोनों ओर बसी आबादी को जोड़ता लोग पुल  पार कर रोज ही मिलते हाल चाल जानते गीले शिक़वे करते और सुनते फिर गले मिल कर वापस लौट जाते हर दिन जमता मेला कभी इस ओर कभी उस ओर  खूब खुशियां मनतीं एक दिन पुल को बहा ले गया सैलाब टूट गया संपर्क सूत्र बढ़ने लगी दूरियां बढ़ने लगे मतभेद जुटने लगी उग्र भीड़ उछलने लगे कठोर जुमले अब तो पहुंचती है एक दूसरे की बात नुकीले पत्थरों से संपर्क सेतु टूटेगा तो, और क्या होगा !!!

तस्वीर

चित्रकार ने बनायी थी एक सुन्दर तस्वीर लम्बी उँगलियों से खींची थी रेखाएं भावनाओं, उमंगों और उम्मीदों के भरे थे रंग  बड़ी खिलखिलाती भविष्य में झांकती आँखों वाली तस्वीर कई आँखों ने देखा चित्रकार की कला को सराहा कुछ गंदी आँखों ने देखा भद्दी मुस्कराहट फेंकी कामुक हांथों से छुआ पहले धब्बे पड़े फिर दागदार हुई अंत में गंदी हो गयी गैलरी के कोने में खडी कर दी गयी सुन्दर तस्वीर।  

बारिश १, २,३, ४, ५

बरसात में हम तुम मिले क्या ही अच्छा हो रोटी मिले. २- गरीब को बारिश से डर नहीं लगता उसे डर लगता है टपके से . ३- बारिश में गरीब भीगता ज़रूर है पर भीगता नहीं क्योंकि, बरस जाती है झोपड़ी गीला हो जाता है आटा. ४- बाढ़ से डरा हुआ आदमी और सांप एक साथ सांप ने कहा- डरो नहीं काटूँगा नहीं इस मुसीबत में . आदमी ने मार दिया सांप को कम हो गयी एक मुसीबत . ५- बारिश में मुन्ना भीगता नहीं कहीं कोई नंगा भीगता है!

चीखें

अंधे अंधकार में डूबे घोर वीराने में चीख रही है एक लड़की जज़्ब हो रहे हैं उसके बचाओ बचाओ के शब्द खामोश सीनों में। कल सुबह तक खामोश हो जाएंगी उसकी चीखें तब ढूंढें जायेंगे सबूत कि उसके साथ यह हुआ था वह नहीं हुआ ऐसे में कौन चाहेगा लड़की हो।  

प्यार (कविता) नेशनल दुनिया ०१ जुलाई २०१४ अंक में प्रकाशित

दांत, बच्चे और कोख

मैं बबूल हूँ मेरे नज़दीक रहो कांटे चुभेंगे स्वाद में कड़वा हूँ फिर भी सलामत रहेंगे तुम्हारे दांत ! २- जीत रहा था मैं फिर भी हार गया  क्योंकि, उन्हें हारना पसंद नहीं बच्चे ऐसे ही होते हैं. ३-  कोख किराये की नहीं होती कोख माँ की होती है.

दर्द

उफ्फ! सांप काटता है तड़पता है कुछ तो बात है आदमी में. २- जो उतारता है ज़हर   कितना होगा उसमे ज़हर ! ३- नींद सपना और आँखें पहले कौन! ४- धूमकेतु राजनीति के हैं बहुतेरे  पूंछ हिलाते हुए . ५- माँ का दर्द महंगाई नहीं भ्रष्टाचार है जेब भर लाता है रोज बेटा .

बेटे तो बेटे होते हैं

बेटे तो बेटे होते हैं एक माँ सुबह उठ जाती बेटे के लिए नाश्ता बनाती उसे जगाती नहलाती धुलाती बस्ते में टिफ़िन रख कर स्कूल बस तक छोड़ आती एक दूसरी माँ बेटे को अलार्म घडी से जगवाती उसका नाश्ता रात में सैंडविच बना कर रख देती बेटे को अलार्म घड़ी उठाती बेटा नहा कर स्कूल चला जाता बेटे तो बेटे होते हैं बेटे पढ़ लिख गए बड़े आदमी बन गए पर माँ के लिए ' बेटे तो बेटे होते हैं इसलिए, दोनों बेटो ने अपनी अपनी  माँ को घर से निकाल दिया क्योंकि, बेटे तो बेटे होते हैं.

पिता की उंगली

आज पहली बार मुझे एहसास हुआ पिता के न होने का ठोकर लगी मैं लड़खड़ाया घुटनों के बल गिर पड़ा क्योंकि, थामने को नहीं थी पिता की उंगली .

अपनत्व

दुःख ईर्षालु होता है वह हमें सताता है क्योंकि, हम सुख को प्यार करते हैं . दुःख को अपना लो सुख आपका होगा ही दुःख भी आपको सताएगा नहीं.   

दुश्मन जुबान

दोस्त, पहचानो अपने अंदर छुपे दुश्मन को उसे नियंत्रित करो मुंह के अंदर छिपी जुबान जब जब अनियंत्रित हो कर बाहर निकलती है दुश्मन ही पैदा करती है. 

प्रधानमंत्री जी

कल जब प्रधानमंत्री अपना सामान पैक कर रहे होंगे तब उनके साथ प्रतिभा ताई की तरह ट्रकों सामान का बोझ नहीं होगा. निश्चय ही बहुत थोड़ा सामान होगा पर बहुत बड़ा बोझ होगा उस अपमान और असम्मान का जो इस पद पर रहते हुए मिला पर इससे भी ज़्यादा भारी होगा दस साल लम्बी चुप्पियों का बोझ. 

ठंडा चूल्हा पेट की आग

मेरे घर चूल्हा खूब आग उगलता है भदेली गर्म  कर देता है भदेली की खिचडी खदबदाने लगती है इसके साथ ही खदबदाने लगते हैं मुन्नू की आँखों में, सौंधी खिचड़ी के सपने।  थोड़ी देर में मुन्नू के पेट की आग बुझा देती है खिचड़ी फिर बुझा दिया जाता है चुल्हा पर गरीब के घर कभी बुझाया जाता नहीं कभी न जलने वाला चूल्हा कभी नहीं खदबदाती भदेली में खिचड़ी  पर चुन्नू की आँखों में खदबदाते हैँ खिचड़ी के सपने क्यूंकि, पेट की आग नहीं बुझा पाता ठंडा पड़ा चूल्हा ।  

बाढ़ बन जाती है नदी

किनारे कभी नदी को नहीं रोकते अबाध बहने  देते हैं।  किनारे मदमस्त होने से रोकते हैं नदी को सीमा लांघने के प्रयासों को हौले से असफल करे देते  है निस्संदेह, कभी नदी किनारों का नियंत्रण नहीं मानती किनारे बह जाते हैं बिखर जाता है सब कुछ इसके बावजूद नदी को फिर किनारों की शरण में आना पड़ता है नदी सीखती है सबक कि अनियंत्रित हो कर  अपनी पहचान खो बैठती है, बाढ़ बन जाती है नदी।

चुनाव

सुनो थम गया है प्रचार का शोर अब हम चुनेंगे ख़ामोशी से चोर।  २- जो बे-उम्मीद करे वह उम्मीदवार।  ३- चुनाव का इशारा है तर्जनी दागदार। ४- नेता जो चुनाव के बाद उलटी ताने। ५- हम अपनी सरकार चुनते हैं उसके बाद पांच साल तक अपना सर धुनते हैं.

सत्यकाम

आकाश से अवतार नहीं लेता सत्य जीवन में अनियंत्रित अश्व की तरह होता है सत्य निरंतर परिश्रम, साधना और संयम से साधन पड़ता है सत्य तब नियंत्रण में आता है सत्य और मनुष्य बन जाता है सत्यकाम। 

तभी

मन उल्टा न सोच हो जायेगा  नम ! २- जान निकल जाती है तभी हम कहते हैं- न जा ! ३- रोते हैं नयन ख़ुशी में भी और दुःख में भी क्योंकि, किसी भी दशा में वह है नयन ! ४- हम लाख कहें झुक ना हमें कभी पड़ता है झुकना।

झुकना

कभी चढ़ाई पर  चढ़ते हुए ख्याल  किया है ! आगे झुक जाते है लोग पार कर ले जाते हैं पूरी चढ़ाई बिना ऊंचाई नापे हुए क्या ही अच्छा हो  अगर समतल रास्तों पर भी ऐसे ही चलो आराम से ।   

प्यार

माँ/ हमेशा कहती बेटा ! मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ मैं कंधे उचका देता/ध्यान न देता एक दिन माँ ने कहा- बेटा, गला सूना लगता है पतली सोने की चेन ला दे माँ विधवा थी मैंने कह दिया- क्या करोगी पहन कर ! माँ कुछ नहीं बोली गले में हाथ फेर कर चुप बैठ गयी अगले दिन माँ ने फिर कहा- मैं तुझे प्यार करती हूँ. मैंने फिर कंधे उचका दिए कौन नहीं करता अपने बच्चे से प्यार मैंने बहुत दिनों बाद जाना कि माँ  मुझे सचमुच बहुत प्यार करती थी पत्नी ने एक दिन कहा- इस बर्थडे पर मुझे सोने का मंगलसूत्र बनवा दो पत्नी के पास मंगलसूत्र पहले ही थे फिर भी मैंने उसे आश्वस्त किया पर हुआ ऐसा कि तंगी के कारण मैं मंगलसूत्र नहीं बना सका पत्नी नाराज़ हो गयी कई दिन नहीं बोली बात बात पर उलाहने देती रही मैंने किसी प्रकार फण्ड से पैसे उधार ले कर पत्नी को मंगलसूत्र ला दिया पत्नी बेहद खुश हुई मुझसे लिपट कर बोली मैं तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ पत्नी के गले में मंगलसूत्र जगमगा रहा था मुझे माँ का सूना गला याद आ रहा था.

साथ मेरे

अँधेरे में साथ छोड़  जाता था साया भी मेरा चलता था लड़खड़ाता मैं अँधेरे में फिर मैंने थामा साथ एक दीपक का आज साया न सही हज़ारों चलते हैं साथ मेरे।  

मैं भी !

बचपन में जब घुटनों से उठ कर लड़खड़ाते कदमों से चलना शुरू किया था सीढ़ी पर तेज़ चढ़ गए पिता की तरह मैं भी चढ़ना चाहता था पिता को सबसे ऊपर/ सीढ़ी पर खड़ा देख कर मैं हाथ फेंकता हुआ कहता- मैं भी ! पिता हंसते हुए आते मुझे बाँहों में उठा कर तेज़ तेज़ सीढ़ियां चढ़ जाते मैं पुलकित हो उठता खुद के इतनी तेज़ी से ऊपर पहुँच जाने पर अब मैं अकेला ही चढ़ जाता हूँ सीढ़ियां पर  खुश नहीं हो पाता उतना क्योंकि, पिता नहीं हैं मैं खड़ा हूँ अकेला बेटे अब कहाँ कहते हैं पिता से - मैं भी !  

दिल्ली

दिल्ली कभी  न बदली आज भी कहाँ बदली दिल्ली आज भी यहाँ  पांडवों का इंद्रप्रस्थ है मुगलों का शाहजहांबाद है अंग्रेज़ों की जमायी नयी दिल्ली आज  देश की राजधानी है दो सरकार हैं, आप हैं प्राचीन में जीती हैं आज भी दिल्ली तभी तो गजनवी के योद्धा आक्रमण करते रहते है  (नॉर्थ ईस्ट  के छात्रों पर ) और दुस्शासन खींचते रहते हैं चीर द्रोपदी की इज्जत लूटती है आज भी दिल्ली . ( निदो तानियम की  हत्या  पर )

शरीर

आप थकने लगते हैं जब आपके पैरों को लगता है कि  वह आपका शरीर ढो रहे हैं. २- जो जीवन भर किसी को कुछ नहीं देते वह बंद मुट्ठी के साथ चले जाते हैं दुनिया से. ३. आंसू इसलिए नहीं बहते कि आँखों को दर्द होता है आंसू इसलिए बहते हैं कि अब दिल में दर्द नहीं होता। ४. अब लोग दिल से काम नहीं लेते क्यूंकि, दिमाग के काम के लिए टीवी ले लिया है. ५. अगर मेरी मदद जीभ और खाल न करती तो मैं ज़हर खा लेता आग लगा लेता।   ६. बरसात में नज़र आएगा आम आदमी सर पर आम  ढोता हुआ.

गणतंत्र की रस्सी

इस गणतंत्र दिवस पर कभी फहराते झंडे, उसे उठाये डंडे और लिपटी रस्सी को देखो डंडा घमंड से इतराता है कि उसने गणतंत्र का प्रतीक उठा रखा है मगर भूल जाता है अपने से  लिपटी उस रस्सी को जो उसे नियंत्रित करती है तथा उसकी मदद करती है ऊंचा उठाने में गणतंत्र के झंडे को. अगर रस्सी का नियंत्रण न होता तो डंडा ख़ाक फहरा पाता आसमान में झंडा तार तार कर रहा होता गणतंत्र के झंडे को और खुद मुंह तुड़वा लेता अपना।

चौराहा : दो चित्र

चौराहे से गुज़रते हैं ढेरों लोग हर रोज . चौराहा वहीँ ठहरा रहता है किसी के साथ जाता नहीं इसलिए नहीं कि नहीं जाना चाहता चौराहा बल्कि, पहचान बन गया है इतने लोगों के गुजरने के बाद चौराहा. २- चौराहे पर लेटे हुए कुत्ते के लात मार दी थी मैंने साला, रास्ता छेंके लेटा था दर्द से कराहता दुम अन्दर कर पीछे मुड़ मुड़ कर मुझे देखता भाग गया था कुत्ता उस दिन रात लौट रहा था मैं सुनसान चौराहे पर घेर लिया मुझे लुटेरों ने घड़ी, पर्स और चेन सभी लूट लेते कि तभी वही कुत्ता भौंकता हुआ टूट पडा था उन पर भाग निकले थे वह लुटेरे और मैं चौराहा पार कर पीछे मुड़ मुड़ कर देख रहा था कुत्ते को जो सोया पडा था ठीक दिन की तरह बीच चौराहे पर.