बुधवार, 24 दिसंबर 2014

सांता

क्रिसमस पर
सजे हुए
ऊंचे, सुन्दर मॉल में
जा  रहा है सांता
इंतज़ार कर रहे है
बड़े घरों के
टिप टॉप बच्चे
सांता आएगा
गिफ्ट देगा
मॉल में जाते सांता की
नज़र पड़ती है
मॉल के पीछे की
गन्दी बस्ती के
बच्चो पर
जो
ललचाई नज़रो  से
देख रहे हैं सांता को
क्या सांता पास आएगा !
उन्हें भी देगा गिफ्ट !
सांता की दृष्टि
उन पर पड़ती है
झटके से घुस जाता है
मॉल में
बुदबुदाते हुए -
गॉड ब्लेस यू।  


गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

रूदन पुकार

मैंने सुना
नातिन रो रही थी
शायद भूख लगी थी
या कोई दूसरी तकलीफ
बच्चे सो रहे होंगे
जवान नींद गहरी होती है
मैं
दौड़ कर जाता हूँ
नातिन को उठा लेता हूँ
काश!
ऐसे ही हर कोई सुनता
किसी की रूदन पुकार !!!

सोमवार, 15 दिसंबर 2014

ऐसे ही स्वप्न देखता

अगर रास्ता 
पथरीला नहीं
पानी पानी होता 
नदी बहती नहीं
पत्थर सी ऐंठी रहती
ज़मीन सर के ऊपर होती
आसमान पाँव तले कुचलता
पक्षी तैरते
जानवर हवा में कुलांचे भरते
मैं जागते हुए भी
ऐसे ही स्वप्न देखता।

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

सर्दी पर ५ हाइकू

१- 
सर्दी लगती
मास्टर की बेंत सी
नन्हे के हाथ।
२-
हवा तेज़ है
ठिठुरता गरीब
छप्पर कहाँ।
३-
बर्फीली सर्दी
अलाव जल गया
सभी जमे हैं।
४-
सूरज कहाँ
फूटपाथ सूना है
दुबक गए।
५-
नख सी हवा
मुन्ने की नाक लाल
बह रही है।
#
राजेंद्र प्रसाद कांडपाल,
फ्लैट नंबर ४०२,
अशोक अपार्टमेंट्स,
५, वे लेन,
जॉपलिंग रोड,
हज़रतगंज,
लखनऊ- २२६००१
मोबाइल -

शनिवार, 15 नवंबर 2014

एब्सॉल्यूट इंडिया मुंबई में दिनांक १६ नवंबर २०१४ को प्रकाशित सर्दी पर १० हाइकू


शीत पर १० हाइकू

इस जाड़े में
आँखें कहाँ खुलती
भोर देर से।
२-
उषा किरण
नन्हे की नाक लाल
इतनी ठण्ड !
३-
हवा का झोंका
नाक बह रही है
प्रकृति क्रीड़ा।
४-
सूर्य उदय
श्रमिक जा रहे हैं
रुकता कौन !
५-
बर्फ गिरती
सब सोये हुए हैं
चादर तनी।
६-
शीत का सूर्य
बच्चा आँगन खेले
अच्छा लगता।
७-
सूर्य कहाँ है
घूमने कौन जाये
दुबके सब।
८-
पत्ते पीले हैं 
बाबा भी बीमार है
क्या बचेंगे ?
९-
हो गयी शाम
खिल गए चेहरे
निशा आ गयी।
१०-
चन्द्रमा खिला
संध्या थक गयी है
गुड नाईट ।             

बुधवार, 12 नवंबर 2014

बेटी जैसी खुशी

कभी
खोई थी बेटी
ढूंढता रहा था
बेहाल
इधर उधर
जब मिली
कैसा खिल गया था
चेहरा आदमी का
ऐसे ही
खोजनी पड़ती हैं
खुशियां ! 

गुरुवार, 6 नवंबर 2014

शेष रास्ता

रास्ता
ख़त्म नहीं होता
कभी। 
दुरूह होता है
दुर्गम हो सकता है
पर मिलेगा
ज़रूर 
ढूंढो तो सही
ख़त्म होने के लिए
नहीं बनते
रास्ते

लक्ष्य के बाद भी
शेष रहते हैं
रास्ते


आगे जाने वाले
मुसाफिर के
वास्ते
वहीँ ख़त्म होते हैं
रास्ते/जहाँ
खड़ी कर दी जाती है
दीवार।
२-
पगडण्डी
और
रास्ते का फर्क
पगडण्डी पर
नहीं बनायी जा सकती
दीवार। 


सोमवार, 27 अक्टूबर 2014

पहाड़ दरकता है

पहाड़ के ऊपर
आसमान
पहाड़
तना हुआ
आसमान
झुका हुआ
तभी तो
जब बादल बरसता है
पहाड़ दरकता है .

सोमवार, 20 अक्टूबर 2014

करुणा

बूँद
आसमान से गिरी
या आँख से !
दोनों में संभव है
करुणा
तपती धरती के लिए
भूखे बच्चे के रोने पर
अंतर है
सामर्थ्य का। 
आसमान से गिरी बूँद
बारिश बन कर
धरती तृप्त कर सकती है
पर आँखों से गिरी बूँद
भूख नहीं मिटा सकती।  

मैं चला

जब
रास्ते तुम्हे
अज़नबी लगें
समझ लो
राह भटक गए हो।
२.
जश्न मनाने में
मैं भूल गया
कि,
आतिशबाजियां
जला सकती हैं
किसी का घर . 

३. 
मैं चलना चाहता था
निर्बाध/ चला भी
राह के काँटों ने मुझे रोक लिया
मैं रुका/थोड़ा झुका
कांटे बटोरे
एक किनारे कर दिए
फिर मैं
आगे बढ़ लिया
अब पीछे आने वालों के भी
रास्ता साफ़ था . 

रविवार, 19 अक्टूबर 2014

पांच दीपक और चाँद उदास

१-
आस्था का दीपक
जलेगा
आवश्यकता क्या है
तीली सुलगाने  की
भावनाओं की
२-
माँ जब
दीपक जला चुकी
तब
कुलदीपक के नैनों के
दीप जल उठे
अब फुलझड़ी जलेगी.
३-
पूजा की शीघ्रता
विघ्नहर्ता गणेश को नहीं
लक्ष्मी माता को भी नहीं
मूषक राज को
चढ़ावा कुतरेंगे।
४-
संग संग जलते
इठलाते बतियाते
दीपक
मानों कह रहे हों-
अब ठण्ड पड़ने लगी.
५-
नन्हा
कहीं खो गया क्या !
सबने खोज
इधर उधर
नन्हा मिला
दीपक के पास
पूछ रहा था-
अकेले उदास तो नहीं।  
चाँद उदास
चाँद
उदास था
क्रमशः क्षय को रहा था
शरीर
तारों ने पूछा-
उदास क्यों !
बोला-
मैं देख नहीं पाऊंगा
पृथ्वी पर टिमटिमाते
नन्हे नन्हे दीपों के
अंधकार भगाने के
कौशल को, 
अंधकार के भयभीत चेहरे को
जो प्रतीक्षा करता है
मेरे क्षय की
ताकि,
फैला सके
पूरी दुनिया में
अपना साम्राज्य। 
तब तारों ने कहा-
हाँ, हम सौभाग्यशाली है
देखते हैं
नन्हे दीपों का
अन्धकार से सफल युद्ध
परन्तु, इसे
तुम देख सकते हो
हमारी विजयी झिलमिलाहट में।

गुरुवार, 9 अक्टूबर 2014

करवा चौथ

बेटा 
तब तक नहीं समझ सका
कि  माँ  क्यों
करवा चौथ में
पूरा दिन व्रत रहती है
चाँद का इंतज़ार करती है
और पिता है कि
आते ही ऑफिस से
खाना खा लेते हैं
जब तक कि
वह करवा चौथ के दिन
ऑफिस से आया
और पत्नी से
खाना परोसवा कर खा  गया।  

सोमवार, 6 अक्टूबर 2014

थकान

कभी तेज़ भागो
इतना तेज़, कि
सब पीछे रह जाएँ
साथी पीछे छूट जाएँ
तब देखना
कैसे थक जाते हो
पीड़ा से भरे पैर
उठने से
इंकार कर देते हैं
तब तुम
पीछे रह जाते हो
अपने साथियों से भी पीछे
ऎसी होती है
भागने से पैदा थकान !

वह आदमी

लोगों की भीड़ के बीच
किसी से छोटा
किसी से लम्बा
किसी से मोटा
किसी से दुबला
एक आदमी
सड़क पर तेज़ भागती
रंग-बिरंगी
छोटी छोटी, बड़ी बड़ी
गाड़ियों से सहमा हुआ
एक आदमी
ऊंची, बहुत ऊंची और कम ऊंची
इमरताओं को
अचरज से देखता हुआ
एक आदमी
खुली आँखों में भी
पाले हुए है
लम्बे कद के 
लोगों के बराबर
होना चाहता है
इनमे से किसी भागती गाडी में
बैठना चाहता है 
सबसे ऊंची इमारत की
सबसे ऊंची मंज़िल में
रहना चाहता है
आदमी। 
एक दिन,
गायब हो जाता है
वह आदमी
कहाँ गया होगा ?
निराश हो कर
गाँव लौट गया होगा,
किसी भागती गाडी के नीचे आकर
पिस  गया होगा, 
या सबसे ऊंची इमारत की
सबसे ऊंची मंज़िल पर
रहने लगा होगा
आदमी !!!
लेकिन,
किसी भी दशा में
सड़क पर
पैदल चलता
नज़र नहीं आएगा
वह आदमी.

गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014

गांधी …न राम

कल गांधी जयंती थी
क्या देश स्वच्छ हुआ !
आज विजयादशमी है
आज रावण जलेगा
क्या देश राम-मय हो जायेगा !
नहीं,
न देश स्वच्छ हुआ 
न आज के बाद राम-मय होगा
क्योंकि,
हम गांधी नहीं
तो हम में राम कैसे होगा .
इसीलिए 
देश को गन्दा होना चाहिए
हम में रावण को ज़िंदा होना चाहिए .

रविवार, 28 सितंबर 2014

लड़की डरती है

बोल्ड लड़की
घर से निकलती है
तन कर चलती
बिना सर झुकाये
फिर भी डरती है
कनखियों से देखती है
घूरती/ लेखा-जोखा रखती
निगाहें
जिनको शिकायत है
उसके घर से निकलने
तन कर चलने से
वह जानती है
उसकी मुसीबत में
साथ नहीं देंगी
यह निरीक्षण करती निगाहें
क्योंकि,
उन्हें अच्छा लगेगा
लड़की का छेड़ा जाना
क्योंकि,
वह घर से निकलती है
और तन कर चलती है
लड़की डरती है।

शनिवार, 13 सितंबर 2014

रास्ते : अलग अलग


अलग अलग रास्ते भी
एक हो जाते हैं
जब
अपने मुहाने पर
बंद पाये जाते हैं.
२-
रास्तों को
नहीं बाँट सकते
चलने का तरीका
गलत हो सकता है .
३-
वह गिरे
मैंने सम्हाला
मैं लड़खड़ाया
दोनों गिरे
लोग हँसे
कि
दोनों अनाड़ी .
४-
मंज़िल आसान लगती
अगर
रास्तों पर
कांटे न होते .
५-
जूता पहन कर
कांटे नहीं चुभे
पर
जूतों ने
पैर काट लिया.

सोमवार, 18 अगस्त 2014

सपने देखेगा

सबसे  ऊपर की
मंज़िल पर
कुछ कर रहा आदमी
कभी रुकता
इधर उधर नीचे देखता
आसमान को घूरता
कुछ खोजता सा वह आदमी
अगर गिरेगा
तो मुआवज़ा मिलेगा
उसकी बीवी और बच्चों को
फिर उसकी बीवी भी
काम पर लग जाएगी उसकी तरह
शायद ढोयेगी ईंट
अगर वह,
ठीक से नीचे उतर  आया तो
मज़दूरी लेकर
इमारत के एक कोने में
अपनी पत्नी के साथ मिलकर
खाना बनाएगा
साथियों के साथ भोजपुरी फिल्म का
अश्लील सा गीत गा कर
अपनी थकान मिटाएगा
फिर सो जायेगा
सपने देखेगा
सबसे ऊपर की मंज़िल पर
अपने परिवार के साथ
रहने के।

खबर औरत


खबर
बन जाती है
एक औरत
जब आँख भर देखती है
किसी को.
२-
खबर
लिखने के लिए
शब्द जानना नहीं
आना चाहिए
शब्द जड़ना .
३-
टीवी पर
सामान तब बिकता है
जब औरत अर्धनग्न होती है
अख़बार के लिए
ज़रूरी है
नंगा होना.

गुरुवार, 7 अगस्त 2014

संपर्क - सेतु

नदी पर बना पुल
दोनों ओर बसी
आबादी को जोड़ता
लोग पुल  पार कर
रोज ही मिलते
हाल चाल जानते
गीले शिक़वे करते और सुनते
फिर गले मिल कर
वापस लौट जाते
हर दिन जमता मेला
कभी इस ओर
कभी उस ओर 
खूब खुशियां मनतीं
एक दिन पुल को
बहा ले गया सैलाब
टूट गया संपर्क सूत्र
बढ़ने लगी दूरियां
बढ़ने लगे मतभेद
जुटने लगी उग्र भीड़
उछलने लगे कठोर जुमले
अब तो पहुंचती है
एक दूसरे की बात
नुकीले पत्थरों से
संपर्क सेतु टूटेगा
तो,
और क्या होगा !!!

सोमवार, 21 जुलाई 2014

तस्वीर

चित्रकार ने बनायी थी
एक सुन्दर तस्वीर
लम्बी उँगलियों से खींची थी
रेखाएं
भावनाओं, उमंगों और उम्मीदों के भरे थे
रंग 
बड़ी खिलखिलाती
भविष्य में झांकती आँखों वाली
तस्वीर
कई आँखों ने देखा
चित्रकार की कला को सराहा
कुछ गंदी आँखों ने देखा
भद्दी मुस्कराहट फेंकी
कामुक हांथों से छुआ
पहले धब्बे पड़े
फिर दागदार हुई
अंत में गंदी हो गयी
गैलरी के कोने में
खडी कर दी गयी
सुन्दर तस्वीर।  

बारिश १, २,३, ४, ५

बरसात में
हम तुम मिले
क्या ही अच्छा हो
रोटी मिले.
२-
गरीब को
बारिश से डर नहीं लगता
उसे डर लगता है
टपके से .
३-
बारिश में गरीब
भीगता ज़रूर है
पर भीगता नहीं
क्योंकि,
बरस जाती है झोपड़ी
गीला हो जाता है
आटा.
४-
बाढ़ से डरा हुआ
आदमी और सांप
एक साथ
सांप ने कहा-
डरो नहीं
काटूँगा नहीं
इस मुसीबत में .
आदमी ने
मार दिया सांप को
कम हो गयी
एक मुसीबत .
५-
बारिश में
मुन्ना भीगता नहीं
कहीं कोई
नंगा भीगता है!

रविवार, 20 जुलाई 2014

चीखें

अंधे अंधकार में डूबे
घोर वीराने में
चीख रही है
एक लड़की
जज़्ब हो रहे हैं
उसके
बचाओ बचाओ के शब्द
खामोश सीनों में।
कल सुबह तक
खामोश हो जाएंगी उसकी चीखें
तब ढूंढें जायेंगे सबूत
कि उसके साथ
यह हुआ था
वह नहीं हुआ
ऐसे में
कौन चाहेगा
लड़की हो।  

गुरुवार, 17 जुलाई 2014

हथेली की रेखा

हथेली की रेखाओं ने
मेरी
साथ न दिया
जब भी उन्हें फैलाया
लज्जित ही हुआ.

रविवार, 29 जून 2014

दांत, बच्चे और कोख

मैं बबूल हूँ
मेरे नज़दीक रहो
कांटे चुभेंगे
स्वाद में कड़वा हूँ
फिर भी
सलामत रहेंगे
तुम्हारे दांत !
२-
जीत रहा था मैं
फिर भी हार गया 
क्योंकि, उन्हें
हारना पसंद नहीं
बच्चे ऐसे ही होते हैं.
३-
 कोख
किराये की नहीं होती
कोख
माँ की होती है.

दर्द

उफ्फ!
सांप काटता है
तड़पता है
कुछ तो बात है
आदमी में.
२-
जो
उतारता है ज़हर  
कितना होगा
उसमे ज़हर !
३-
नींद
सपना
और आँखें
पहले कौन!
४-
धूमकेतु
राजनीति के
हैं बहुतेरे 
पूंछ
हिलाते हुए .
५-
माँ का दर्द
महंगाई नहीं
भ्रष्टाचार है
जेब भर लाता है
रोज बेटा .

गुरुवार, 19 जून 2014

बेटे तो बेटे होते हैं

बेटे तो बेटे होते हैं
एक माँ
सुबह उठ जाती
बेटे के लिए नाश्ता बनाती
उसे जगाती
नहलाती धुलाती
बस्ते में टिफ़िन रख कर
स्कूल बस तक छोड़ आती
एक दूसरी माँ
बेटे को अलार्म घडी से जगवाती
उसका नाश्ता
रात में सैंडविच बना कर रख देती
बेटे को अलार्म घड़ी उठाती
बेटा नहा कर स्कूल चला जाता
बेटे तो बेटे होते हैं
बेटे पढ़ लिख गए
बड़े आदमी बन गए
पर माँ के लिए '
बेटे तो बेटे होते हैं
इसलिए, दोनों बेटो ने
अपनी अपनी  माँ को
घर से निकाल दिया
क्योंकि,
बेटे तो बेटे होते हैं.


रविवार, 15 जून 2014

पिता की उंगली

आज पहली बार
मुझे एहसास हुआ
पिता के न होने का
ठोकर लगी
मैं लड़खड़ाया
घुटनों के बल गिर पड़ा
क्योंकि,
थामने को नहीं थी
पिता की उंगली .

शुक्रवार, 13 जून 2014

गुरुवार, 12 जून 2014

अपनत्व

दुःख
ईर्षालु होता है
वह हमें सताता है
क्योंकि, हम
सुख को
प्यार करते हैं .
दुःख को अपना लो
सुख आपका होगा ही
दुःख भी आपको
सताएगा नहीं.   

रविवार, 8 जून 2014

दुश्मन जुबान

दोस्त,
पहचानो
अपने अंदर छुपे दुश्मन को
उसे नियंत्रित करो
मुंह के अंदर छिपी जुबान
जब जब
अनियंत्रित हो कर बाहर निकलती है
दुश्मन ही पैदा करती है. 

शनिवार, 10 मई 2014

प्रधानमंत्री जी

कल जब प्रधानमंत्री
अपना सामान पैक कर रहे होंगे
तब उनके साथ
प्रतिभा ताई की तरह
ट्रकों सामान का बोझ नहीं होगा.
निश्चय ही
बहुत थोड़ा सामान होगा
पर
बहुत बड़ा बोझ होगा
उस अपमान और असम्मान का
जो इस पद पर रहते हुए मिला
पर इससे भी ज़्यादा भारी होगा
दस साल लम्बी
चुप्पियों का बोझ. 

ठंडा चूल्हा पेट की आग

मेरे घर चूल्हा
खूब आग उगलता है
भदेली गर्म  कर देता है

भदेली की खिचडी
खदबदाने लगती है
इसके साथ ही
खदबदाने लगते हैं
मुन्नू की आँखों में,
सौंधी खिचड़ी के सपने। 
थोड़ी देर में
मुन्नू के पेट की आग
बुझा देती है खिचड़ी
फिर बुझा दिया जाता है चुल्हा
पर गरीब के घर
कभी बुझाया जाता नहीं
कभी न जलने वाला चूल्हा
कभी नहीं खदबदाती
भदेली में खिचड़ी 
पर चुन्नू की आँखों में
खदबदाते हैँ
खिचड़ी के सपने
क्यूंकि,
पेट की आग नहीं बुझा पाता
ठंडा पड़ा चूल्हा ।  


शनिवार, 3 मई 2014

खाली हाथ .

बटोरने/समेटने में
सालों गुजार दिये
जब वक़्त आया
मैं 
चला आया    
खाली हाथ।  

बाढ़ बन जाती है नदी

किनारे कभी
नदी को नहीं रोकते
अबाध बहने  देते हैं। 
किनारे
मदमस्त होने से रोकते हैं
नदी को
सीमा लांघने के प्रयासों को
हौले से
असफल करे देते  है
निस्संदेह, कभी
नदी किनारों का नियंत्रण नहीं मानती
किनारे बह जाते हैं
बिखर जाता है सब कुछ
इसके बावजूद
नदी को फिर
किनारों की शरण में आना पड़ता है
नदी सीखती है सबक
कि
अनियंत्रित हो कर 
अपनी पहचान खो बैठती है,
बाढ़ बन जाती है
नदी।

शनिवार, 12 अप्रैल 2014

चुनाव

सुनो
थम गया है
प्रचार का शोर
अब हम चुनेंगे
ख़ामोशी से
चोर। 
२-
जो
बे-उम्मीद करे
वह
उम्मीदवार। 
३-
चुनाव का
इशारा है
तर्जनी दागदार।
४-
नेता
जो चुनाव के बाद
उलटी ताने।
५-
हम
अपनी सरकार चुनते हैं
उसके बाद
पांच साल तक
अपना सर
धुनते हैं.

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

सत्यकाम

आकाश से
अवतार नहीं लेता
सत्य
जीवन में
अनियंत्रित अश्व की तरह
होता है
सत्य
निरंतर
परिश्रम, साधना और संयम से
साधन पड़ता है
सत्य
तब
नियंत्रण में आता है
सत्य
और
मनुष्य बन जाता है
सत्यकाम। 

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

तभी

मन
उल्टा न सोच
हो जायेगा 
नम !
२-
जान
निकल जाती है
तभी हम
कहते हैं-
न जा !
३-
रोते हैं
नयन
ख़ुशी में भी
और दुःख में भी
क्योंकि,
किसी भी दशा में
वह है
नयन !
४-
हम
लाख कहें
झुक ना
हमें कभी
पड़ता है
झुकना।


झुकना

कभी
चढ़ाई पर  चढ़ते हुए
ख्याल  किया है !
आगे झुक जाते है लोग
पार कर ले जाते हैं
पूरी चढ़ाई
बिना ऊंचाई नापे हुए
क्या ही अच्छा हो 
अगर
समतल रास्तों पर भी
ऐसे ही चलो
आराम से ।   

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

प्यार

माँ/ हमेशा कहती
बेटा ! मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ
मैं कंधे उचका देता/ध्यान न देता
एक दिन माँ ने कहा-
बेटा, गला सूना लगता है
पतली सोने की चेन ला दे
माँ विधवा थी
मैंने कह दिया- क्या करोगी पहन कर !
माँ कुछ नहीं बोली
गले में हाथ फेर कर चुप बैठ गयी
अगले दिन
माँ ने फिर कहा-
मैं तुझे प्यार करती हूँ.
मैंने फिर कंधे उचका दिए
कौन नहीं करता अपने बच्चे से प्यार
मैंने बहुत दिनों बाद जाना
कि माँ  मुझे सचमुच बहुत प्यार करती थी
पत्नी ने एक दिन कहा-
इस बर्थडे पर
मुझे सोने का मंगलसूत्र बनवा दो
पत्नी के पास मंगलसूत्र पहले ही थे
फिर भी मैंने उसे आश्वस्त किया
पर हुआ ऐसा कि
तंगी के कारण मैं
मंगलसूत्र नहीं बना सका
पत्नी नाराज़ हो गयी
कई दिन नहीं बोली
बात बात पर उलाहने देती रही
मैंने किसी प्रकार
फण्ड से पैसे उधार ले कर
पत्नी को
मंगलसूत्र ला दिया
पत्नी बेहद खुश हुई
मुझसे लिपट कर बोली
मैं तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ
पत्नी के गले में
मंगलसूत्र जगमगा रहा था
मुझे
माँ का सूना गला
याद आ रहा था.

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

साथ मेरे

अँधेरे में
साथ छोड़  जाता था
साया भी मेरा
चलता था
लड़खड़ाता मैं
अँधेरे में
फिर मैंने
थामा साथ
एक दीपक का
आज
साया न सही

हज़ारों चलते हैं
साथ मेरे।  

जान जाते

मुझसे
दुश्मनी कर देखते
जान जाते
कि दूसरा कोई
मुझसे अच्छा
दोस्त नहीं।


मैं भी !

बचपन में
जब घुटनों से उठ कर
लड़खड़ाते कदमों से
चलना शुरू किया था
सीढ़ी पर
तेज़ चढ़ गए पिता की तरह
मैं भी चढ़ना चाहता था
पिता को
सबसे ऊपर/ सीढ़ी पर खड़ा देख कर
मैं
हाथ फेंकता हुआ कहता-
मैं भी !
पिता हंसते हुए आते
मुझे बाँहों में उठा कर
तेज़ तेज़ सीढ़ियां चढ़ जाते
मैं
पुलकित हो उठता
खुद के
इतनी तेज़ी से ऊपर पहुँच जाने पर
अब मैं
अकेला ही चढ़ जाता हूँ
सीढ़ियां
पर  खुश नहीं हो पाता उतना
क्योंकि,
पिता नहीं हैं
मैं खड़ा हूँ अकेला
बेटे अब कहाँ कहते हैं पिता से -
मैं भी !  

रविवार, 2 फ़रवरी 2014

दिल्ली

दिल्ली
कभी  न बदली
आज भी कहाँ बदली
दिल्ली
आज भी यहाँ 
पांडवों का इंद्रप्रस्थ है
मुगलों का
शाहजहांबाद है
अंग्रेज़ों की जमायी नयी दिल्ली

आज 
देश की राजधानी है
दो सरकार हैं, आप हैं
प्राचीन में जीती हैं
आज भी दिल्ली
तभी तो
गजनवी के योद्धा
आक्रमण करते रहते है
 (नॉर्थ ईस्ट  के छात्रों पर )
और दुस्शासन
खींचते रहते हैं
चीर द्रोपदी की

इज्जत लूटती है
आज भी दिल्ली .

( निदो तानियम की  हत्या  पर )

शनिवार, 25 जनवरी 2014

शरीर

आप
थकने लगते हैं
जब
आपके पैरों को
लगता है
कि  वह
आपका शरीर ढो रहे हैं.
२-
जो
जीवन भर
किसी को कुछ नहीं देते
वह
बंद मुट्ठी के साथ
चले जाते हैं
दुनिया से.
३.
आंसू
इसलिए नहीं बहते
कि आँखों को दर्द होता है
आंसू
इसलिए बहते हैं
कि अब दिल में
दर्द नहीं होता।
४.
अब लोग
दिल से काम नहीं लेते
क्यूंकि,
दिमाग के काम के लिए
टीवी ले लिया है.
५.
अगर मेरी मदद
जीभ और खाल न करती
तो मैं
ज़हर खा लेता
आग लगा लेता। 
 ६.
बरसात में
नज़र आएगा
आम आदमी
सर पर
आम  ढोता हुआ.


गणतंत्र की रस्सी

इस गणतंत्र दिवस पर
कभी फहराते झंडे,
उसे उठाये डंडे और लिपटी रस्सी को देखो
डंडा घमंड से इतराता है
कि उसने गणतंत्र का प्रतीक उठा रखा है
मगर भूल जाता है
अपने से  लिपटी उस रस्सी को
जो उसे नियंत्रित करती है
तथा उसकी मदद करती है
ऊंचा उठाने में

गणतंत्र के झंडे को.
अगर
रस्सी का नियंत्रण न होता

तो डंडा
ख़ाक फहरा पाता आसमान में झंडा
तार तार कर रहा होता
गणतंत्र के झंडे को
और खुद
मुंह तुड़वा लेता अपना।

रविवार, 5 जनवरी 2014

चौराहा : दो चित्र

चौराहे से
गुज़रते हैं ढेरों लोग
हर रोज .
चौराहा
वहीँ ठहरा रहता है
किसी के साथ जाता नहीं
इसलिए नहीं
कि
नहीं जाना चाहता
चौराहा
बल्कि,
पहचान बन गया है
इतने लोगों के गुजरने के बाद
चौराहा.
२-
चौराहे पर
लेटे हुए कुत्ते के
लात मार दी थी मैंने
साला, रास्ता छेंके लेटा था
दर्द से कराहता
दुम अन्दर कर
पीछे मुड़ मुड़ कर
मुझे देखता
भाग गया था कुत्ता
उस दिन रात
लौट रहा था मैं
सुनसान चौराहे पर
घेर लिया मुझे
लुटेरों ने
घड़ी, पर्स और चेन
सभी लूट लेते
कि तभी वही कुत्ता
भौंकता हुआ
टूट पडा था उन पर
भाग निकले थे वह लुटेरे
और मैं
चौराहा पार कर
पीछे मुड़ मुड़ कर
देख रहा था कुत्ते को
जो सोया पडा था
ठीक दिन की तरह
बीच चौराहे पर.