अँधेरे में
साथ छोड़ जाता था
साया भी मेरा
चलता था
लड़खड़ाता मैं
अँधेरे में
फिर मैंने
थामा साथ
एक दीपक का
आज
साया न सही
हज़ारों चलते हैं
साथ मेरे।
साथ छोड़ जाता था
साया भी मेरा
चलता था
लड़खड़ाता मैं
अँधेरे में
फिर मैंने
थामा साथ
एक दीपक का
आज
साया न सही
हज़ारों चलते हैं
साथ मेरे।
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