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संदेश

न्याय

ग़रीब  की झोपड़ी में इतने और ऐसे छेद ! कि उनसे झाँकने में झिझकती हैं सूरज की किरणें चाँदनी भी असफल रहती है अपनी चमक फैलाने में झोपड़ी के अंदर गर्मी को कम करने अंदर नहीं आ पाती ठंडी बयार । ऐसा क्यूँ होता है सिर्फ ग़रीब की झोपड़ी के साथ कि बारिश का पानी चू चू कर ताल बना देता है टूटी चारपाई के नीचे सर्द हवाएँ तीर की तरह चुभती हैं आंधी तूफान में सबसे पहले झोपड़ी ही ढहती है। क्यों नहीं करती पृकृति भी गरीब की झोपड़ी के साथ न्याय ?

कल

तीव्र गति से बढ़ती रात को संसार की बागडोर सौंपने के लिए शाम बन कर ढलता दिन संसार के विछोह से म्लान पीला पड़ गया है रात समेटना चाहती है दिन है कि जाना ही नहीं चाहता । तब, दिन के कान में फुसफुसाती है हवा- मोह छोड़ो आज का और संसार का रात को समेत लेने दो आज करने ताकि संसार कर सके थोड़ा सा विश्राम । अगले सूर्योदय के साथ तो  लोग करेंगे तुम्हें ही प्रणाम क्योंकि संसार के मोह से उबरने के बाद दिन कल तुम्हारा ही होगा  !

तुक्का फिट

भागता हुआ पहुंचा उठाने को चिलमन उनकी मालूम न था कि वो कफन ओढ़े लेते हैं। रहते हैं वह मेरे हमराह तब तक रास्ता जब तलक नहीं मुड़ता। मेरे आँगन में शाम बाद होती है पहले उनके घर अंधेरा उतरता है। देखा मैं रास्ते पे गिरा रुपया उठा लाया हूँ। पर वहाँ इक बच्चा अभी भी पड़ा होगा। मेरे आसमान पर चाँद है तारे हैं, पंछी नहीं। सुना है ज़मीन पर आदमी भी भूखा है।

खुशी के आँसू

पिता जी मर रहे थे घर में अफरा तफरी मच गयी जल्दी से गंगाजल लाओ पंडितजी के मुंह में डालो सीधे स्वर्ग जाएंगे। रोना पीटना शुरू हो गया लेकिन माँ की आंखो में एक बूंद आँसू नहीं थे बुजुर्गों ने कहा- बहू सदमे में है उसे रुलाओं । सहेलियों ने झकझोरा- कमला, तू रोती क्यूँ नहीं, रो ? माँ ने कुछ सुना नहीं वह तो उधेड़बुन में थीं। कैसे होगा दाह संस्कार और बाद के काम काज घर में इतने पैसे कहाँ। इनकी तनख्वाह तो रोजमर्रा की जरूरतों के लिए काफी नहीं थी, बचत क्या खाक होती। पिता शायद मर गए थे आवाज़ें आने लगी भाई कफन दाह संस्कार के इंतज़ाम करो शव को घर में ज़्यादा देर रखना ठीक नहीं। माँ की परेशानी ज़्यादा बढ़ गयी कि तभी कुछ लोग अंदर आए पिता के ऑफिस के लोग थे उनमे से एक बुजुर्ग ने बेटे के हाथ में ऑफिस में एकत्र हुए कुछ रुपये रख दिये। वह बोला- बेटा अभी यह रखो पिताजी का काम करवाओ हम जीपीएफ़ आदि के पैसे जल्द भेज देंगे। सदमे में जाती लग रही माँ सब देख और सुन रही थी। यह सुनते ही माँ दहाड़ मार कर रोने लगी। सब कहने लगे- चलो रोई तो अब सदमे में नहीं जाएगी। पर म...

गब्बर सिंह

भूख से बिलबिला रहे बेटे से माँ ने कहा- बेटा सो जा! नहीं तो गब्बर आ जाएगा। बेटे ने माँ के चेहरे को निहारा फिर बोला- माँ, यह गब्बर कौन है? यह कहाँ रहता है? इसका नाम लेते समय तुम इतनी उदास और चिंतित क्यूँ हो? बेटे को थपकते हुए माँ बोली- बेटा यह गब्बर सिंह पचास पचास कोस दूर नहीं हर कहीं आस पास रहता है यह भूख का दैत्य है जो महंगाई के शेर पर सवार रहता है इसे देख कर तेरे बाबा और चाचा भी काँप जाते हैं दूर देश मजूरी करते है फिर भी इस गब्बर को भगा नहीं पाये हैं महंगाई पर सवार गब्बर ज़्यादा भयानक लगता है तुझे जागा देखेगा तो तुरंत पकड़ लेगा। बेटे ने कहा- माँ अगर मैं सो गया तो क्या गब्बर सिंह नहीं आएगा? तू मुझे लोरी गा कर भी तो सुला सकती थी गब्बर का डर क्यूँ दिखा रही है ? माँ बोली- बेटा लोरी में दूध की कटोरी और बताशे का जिक्र होता है इसे सुन कर गब्बर भागता हुआ आ जाता है। तुझे उठा ले गया तो मैं क्या करूंगी। तू ठीक कहता है कि गब्बर कल भी आएगा लेकिन, अगर तू आज सो गया तो यह आज तेरे पास नहीं आएगा। कल तो मैं इस गब्बर को भगाने का कोई उपाय ढूंढ लूँगी। चल अब स...

ईमानदारी की पोटली

भागता आ रहा एक आदमी बदहवास, निराश और भयभीत कुछ लोग पीछे भाग रहे हैं उसके कृशकाय शरीर वाला वह व्यक्ति भाग नहीं पाता, गिर पड़ता है भीड़ उसे घेर लेती है । वह गिड़गिड़ाता है- छोड़ दो मुझे जीने दो क्या बिगाड़ लूँगा मैं तुम सबका अकेले ! लोग चीखने लगते हैं- मारो नहीं छीन लो इससे पोटली । कृशकाया थरथराने लगती है- नहीं, मुझसे इसे मत छीनो मैंने इसे परिश्रम से तिनका तिनका करके बटोरा है बरसों सँजो कर रखा है यही तो मेरी पूंजी है । उस कमजोर पड़ चुकी काया के बगल से दबी हुई थी ईमानदारी की पोटली, जो थी उसकी प्रतिष्ठा, मान सम्मान और संपत्ति । कैसे यूं ले जाने देता उन्हे । भीड़ आरोप लगाती है- इसने धीरे धीरे चुरा ली है जमाने की ईमानदारी और बना ली है अपनी पोटली कैसे रख सकता है यह हम सभी बेईमानों के बीच सहेज कर अपनी ईमानदारी की पोटली ?

नहा रहा बच्चा

नहलाने जा रही है बच्चे को माँ नन्हें बदन से नन्हें कपड़े बड़े दुलार से एक एक कर उतारती फिर थोड़ा तेल मल देती सिर पर और चुपड़ देती बदन पर बच्चा कौतुक से निहार रहा है माँ को क्या कर रही है माँ! फिर माँ बच्चे को पानी के टब में बैठा देती है बच्चा चीख उठता है हालांकि पानी गरम नहीं, गुनगुना है शरीर की थकान उतारने वाला फिर भी नन्हा ऐसे बिलखता है जैसे पानी बहुत गरम या ठंडा है पर माँ बाहर नहीं निकालती बच्चा बिलख बिलख कर रोने लगता है मानो ज़िद कर रहा हो कि मुझे बाहर निकालो लेकिन क्यूँ निकाले  माँ बच्चे के भले और स्वास्थ्य के लिए रोज़ नहाना ज़रूरी है, माँ जानती है बच्चा गला फाड़ कर रोना शुरू कर देता है माँ साबुन लगाती जाती  है हौले हौले शरीर मलती जाती है बच्चा छाती का पूरा ज़ोर लगा कर रोता है क्यूँ करती है माँ इतनी ज़िद ? माँ को इत्मीनान हो जाता है कि वह अब ठीक से नहा चुका है  उसे टब से बाहर निकाल लेती है मुलायम मोटे तौलिये पर लिटा देती है बच्चा थोड़ा संतुष्ट है कि अब पानी में नहीं पर रोना बंद नहीं करता कहीं माँ फिर से टब में न डाल दे। माँ...