रविवार, 15 जुलाई 2012

कल

तीव्र गति से बढ़ती रात को
संसार की बागडोर सौंपने के लिए
शाम बन कर ढलता दिन
संसार के विछोह से म्लान
पीला पड़ गया है
रात समेटना चाहती है
दिन है कि जाना ही नहीं चाहता ।
तब, दिन के कान में
फुसफुसाती है हवा-
मोह छोड़ो आज का और संसार का
रात को समेत लेने दो आज करने
ताकि संसार कर सके
थोड़ा सा विश्राम ।
अगले सूर्योदय के साथ तो 
लोग करेंगे तुम्हें ही प्रणाम
क्योंकि
संसार के मोह से उबरने के बाद दिन
कल तुम्हारा ही होगा  !

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