शनिवार, 31 दिसंबर 2022

गिनते रहें दिन!

2022 मे कितने महीने थे? 

12 ।

2022 में कितने सप्ताह थे? 

52 । 

2022 मे कितने दिन थे?

365 । 

प्रत्येक माह मे कितने दिन थे? 

जनवरी,  मार्च, मई,  जुलाई,  अगस्त, अक्टूबर और दिसम्बर में 31। फरवरी मे 28। अप्रैल,  जून, सितंबर और नवंबर मे 30।

और सप्ताह मे कितने दिन ? 

7। 

एक दिन में कितने घंटे होते है। 

24।

हर घंटे मे कितने मिनट? 

60। 

हर मिनट मे कितने सेकंड ? 

60। 

पर जानना क्या चाहते हो तुम? 

भाई मेरे यही कि 

पूरे साल दिन गिनते रहे 

जिए कब तुम। 

मंगलवार, 22 नवंबर 2022

विडंबना

इतिहास में दर्ज हो गया 

वह

जिसे इतिहास न भाया 

कभी !

२ 

गणित का अध्यापक 

कक्षा में पढाता था

तिथियाँ गिनता 

बटुआ खोलता 

घर में !

३ 

डॉक्टर 



रविवार, 20 नवंबर 2022

शिकारी!

पेड़ पर 

शेर की छलांग से परे 

सुरक्षित दूरी पर 

मचान लगा कर 

शेर का शिकार करता हूँ 

बंदूक के सहारे ।

फिर भी 

शेर शिकार है 

और मैं शिकारी। 

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2022

वह लोग

बरसों पहले मिले

कुछ लोग 

अचानक खबर आती है 

नहीं रहे वह लोग 

तब ऐसा क्यों लगता है 

कल ही तो मिले थे 

वह लोग !

शनिवार, 8 अक्टूबर 2022

चिट्ठी

अब चिट्टी नहीं आती 

मैं किसी को नहीं लिखता 

कोई मुझे पोस्टकार्ड नहीं भेजता 

अंतर्देशीय का प्रश्न नहीं 

लिफ़ाफ़े!

जन्मदिन और वैवाहिक शुभकामनाओं तक 

मैं कंप्युटर गाय हूँ 

मेल भेजता हूँ 

उत्तर मिल जाता है 

कुछ मिनट या घण्टों में 

पर ऐसे छूट जाते है 

जो कंप्युटर गायज नहीं 

क्योंकि मैं पत्र नहीं लिखता 

मैं कंप्युटर गाय हूँ. 

महानगर


अभी यह महानगर सोया है 

जागेगा 

भागेगा 

जीवन जीने को होड़ 

इसे दौड़ाएगी

यह क्लांत नहीं होगा 

अशांत नहीं होगा 

रुकेगा नहीं 

ठोकर खा कर भी 

क्योंकि वह जानता है 

एक दिन 

जीवन देगा ठोकर 

घायल होगा जीव 

पर यह महानगर 

रुकेगा नहीं,  थकेगा 

इसी का नाम जीवन 

महानगर अभी सोया है,  बस! 

रविवार, 11 सितंबर 2022

पेन्शन रजिस्टर बनाने से फ़ायदा!

कल मैंने #worldsuicideday पर एक पोस्ट लिखी थी. आज इसका दूसरा हिस्सा लिख रहा हूँ.

 

 

 

दरअसल, मेरी सेवा की विशेषता यह है कि वह कौवा कान ले गया पर इतना विश्वास करती है कि कौवा उसका कान ले गया या किसी और का कान, जानना नहीं चाहती. यह पूछने का सवाल ही नहीं उठता कि कान सचमुच में गया या नहीं. बस दौड़ लगाने लगत्ते थे कौवे की पीछे.

 

 

 

मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. ऐसा लखनऊ कोषागार में हुई एक घटना के कारण हुआ था. उस घटना के बाद, मेरे बैच के ऑफिसर भी कहने लगे थे कि तुम झगडालू हो. अब उनसे कौन कहे कि अकेला ऑफिसर मठाधीशों की भीड़ में मारपीट नहीं कर सकता.  बहरहाल मेरी पहली इमेज अपनी सेवा के अधिकारीयों में यही बनी थी. शायद यही इमेज निदेशक कोषागार के मस्तिष्क में भी थी. इसी से वह मुझसे उचाट थे.

 

 

 

बहरहाल, मैं इस सब से बेपरवाह कर्मण्ये वाधिकारस्ते पर विश्वास करता हुआ अपने कमरे पर रखी पेंशन फाइल्स निबटाने में जुट गया. फाइलों का इतना बड़ा जखीरा दिमाग हिलाए दे रहा था. मैंने सोचा, भाई निर्देशक खुश नहीं है, ट्रान्सफर तो करवा ही देंगे. सो जब तक यहाँ हूँ पेंशनर्स का जितना भला कर सकूं, कर दूं. मैंने फाइल्स को तेजी से निबटाना शुरू कर दिया. तभी मेरे दिमाग में संयुक्त निदेशक बन गए उपनिदेशक घूम गए. मैंने कहा, चलो उनकी जन्मपत्री तो बना दो. उनका भाग्य बांचना तो बाद की बात है. मैंने सभी फाइल्स वापस मंगाई और एक रजिस्टर इशू करवा लिया. अब मैंने निबटाई गई फाइल्स को उनके एम आई नंबर और पेंशनर के नाम के साथ दर्ज करना शुरू कर दिया. इस से मुझे एक बिलकुल नई बात पता चली.

 

 

 

हुआ यह कि एक दिन एक व्यक्ति मेरे पास आया. उसने बताया कि उसकी पेंशन के कागज़ कुछ महीना पहले आये थे, अभी तक पीपीओ जारी नहीं हुआ है. मैने उसका नाम पूछा. उसका नाम सुन कर मैं चौंक गया. मैंने तो पिछले हफ्ते ही उसके पीपीओ हस्ताक्षरित कर दिए थे. मैंने सम्बंधित लेखाकार को बुलाया. मैंने जानकारी की तो मालूम हुआ कि वह पत्रावली डिस्पैच में भेजी ही नहीं है. मैंने उस पत्रावली को माँग कर तुरंत डिस्पैच करवाया और पेंशनर कॉपी उस व्यक्ति को दे दी. मैंने यह भी सुनिश्चित करवा दिया कि पीपीओ कोषागार को डिस्पैच हो जाए.

 

 

 

मैं इस घटना को सोच रहा था कि मुझे कुछ शक हुआ. मैं सेक्शन की तरफ निकल गया. सेक्शन में मिलन समारोह और दावत का माहौल था. मुझे देख कर सभी मेहमान (जो पेंशनर थे तथा सम्बंधित लेखाकारों के रिश्तेदार बन कर आये थे) कमरे से  निकल लिए. मैने सम्बंधित लेखाकारों से रजिस्टर के आधार पर पीपीओ डिस्पैच की जानकारी शुरू कर दी. मालूम हुआ कि मेरे द्वारा एक महीने पहले साइन करे दिए गए पीपीओ और revision के पीपीओ डिस्पैच में भेजे ही नहीं गए थे. मैंने उन्हें फटकार लगाईं और सभी फाइल्स को डिस्पैच में भिजवा दिया.

 

 

 

यहाँ मुझे पहली बार ज्ञान हुआ कि अधिकारी लोग पीपीओ में साइन करने के बाद, इत्मीनान से हो जाते है कि उन्होंने केस निबटा दिया. पर दरअसल वह जानबूझ कर या अनजाने में सम्बन्धित लेखाकार को ब्लेंक चेक दे देते थे. जब सम्बंधित पेंशनर आता तो लेखाकार महोदय बताते कि ऑफिसर बहुत खतरनाक है. कोशिश करते है, या शरीफ डिप्टी के लिए यह कहते कि उन तक पैसा पहुँचाना पड़ता है. और फिर यथोचित रकम लेकर फाइल ले कर बाहर निकल जाते और पीपीओ  डिस्पैच करवा कर उसे कॉपी दे देते.

 

 

 

इसके बाद, मैने रजिस्टर में लगातार एंट्री शुरू कर दी. जब तक पीपीओ निदेशालय से बाहंर नहीं चले जाते, तब तक जानकारी मांगनी शुरू कर दी. उस समय के निर्देशक ने ऐसा सॉफ्टवेर तैयार करवा दिया था कि डायरी से लेकर डिस्पैच तक की स्थिति मालूम हो सकती थी. मैंने इसे निकलवाना शुरू कर दिया. इससे पेंशन मामलों के निस्तारण में वास्तविक तेजी आने लगी.

 

फल की चिंता किये बिना किये गए इस काम का नतीजा मुझे अच्छा मिला. जो निदेशक यह समझ रहे थे कि मैं लड़ाकू और बावलिया हूँ, वह पेंशन मामलों के प्रभावी रूप से निबट जाने के कारण प्रसन्न रहने लगे. मेरे लिए इतना ही पर्याप्त था कि उन्होने मेरे काम को वास्तव में अप्प्रेसिएट किया. शायद मेरे प्रति उनकी गलतफहमी दूर हो चुकी थी. इसके बाद ही मेरे करियर में आमूलचूल परिवर्तन हो  गया. क्या और कैसे हुआ ! यह फिर कभी.

 

#worldsuicideday 1

शनिवार, 10 सितंबर 2022

मैंने भी चाहा था आत्महत्या करना! #WorldSuicideDay

आज, १० सितम्बर को, पूरा विश्व वर्ल्ड सुसाइड डे मना रहा है. इस अवसर पर अपना एक  अनुभव.

 

यह बात, उस समय की है, जब मेरी तैनाती पेंशन निदेशालय में संयुक्त निर्देशक के पद पर हुई थी. ट्रान्सफर का मारा, जिसे प्रमोशन के लिए उत्कृष्ट यानि आउटस्टैंडिंग पृविष्टि की जरूरत रहा करती थी. कितना परेशान हैरान विभागाध्यक्ष चाह कर भी बैड नहीं लिख पाता था. इसलिए अधिकतर ने प्रविष्टि लिखी ही नहीं. एक आध ने लिखी तो श्रेणी दी अच्छा. यह अच्छा क्या होता है. उस समय के लिहाज से मेरे प्रमोशन के लिए बैड से भी खराब.

 

हमारे एक अधिकारी का कहना था कि कांडपाल जी, आप लोगों को बैड लिखो ही नहीं. सामान्य लिख दो. प्रमोशन होगा नहीं. बैड लिखो तो जवाब देना पड़ेगा. विभागाध्यक्षों की इस नीचता के कारण मेरा प्रमोशन लगातार रुक रहा था. डीपीसी होती. पता चलता कि प्रमोशन नहीं हुआ है. दिल धक् से कर जाता. निराशा का गहरा कुहासा छा जाता. उस पर ट्रान्सफर पर ट्रान्सफर.

 

हाँ. तो बात कर रहा था संयुक्त निर्देशक पेंशन निदेशालय में तैनाती की. उस समय के निर्देशक बड़े सुलझे हुए व्यक्ति थे. मैं सोचता था कि कुछ दिन ट्रान्सफर नहीं होगा. ठीकठाक समय कट जाएगा. सो चला गया पेंशन निदेशालय ज्वाइन करने.

 

वहां पहला झटका लगा मुझे. जैसे ही मैंने निदेशक के सामने जोइनिंग लैटर रखा. वह सन्नाटे में आ गए. उनका चेहरा बुझ गया. कुछ मिनट ख़ामोशी की गहरी चादर छाई रही. उसके बाद उन्होंने पूछा, 'विल यू ज्वाइन?' मैंने कहा, 'मैं आया ही इसीलिए हूँ सर'. उन्होंने सम्बंधित बाबू को बुलाया. कहा, 'ये कांडपाल जी हैं, नए जॉइंट डायरेक्टर. इन्हें ज्वाइन करा दो.उनके इस रुख से मैं बेहद निराश हो गया. जब वह खुश नहीं नजर आ रहे तो होगा क्या!

 

तभी निर्देशक महोदय की आवाज कान में पड़ी, 'कांडपाल जी, (डिप्टी डायरेक्टर की तरफ इशारा करते हुए) यह उपनिदेशक है. प्रशासन इन्ही के पास है. अच्छा काम कर रहे है.'

 

मैं इशारा समझ गया. मैंने कहा, 'सर कोई बात नहीं. मुझे जो काम देना चाहे दे दें.' निर्देशक महोदय ने उसी समय ट्रान्सफर हुए एक अन्य उपनिदेशक का कार्य और पेंशन अदालत का काम मुझे सौंप दिया.

 

चार्ज सर्टिफिकेट भर कर अपने निर्धारित कमरे में गया तो हैरान रह गया. सामने रखी कुर्सियां और उपनिदेशक के आराम के लिए रखा गया दीवान पेंशन पत्रावलियों से भरा हुआ था. बैठने तक की जगह नहीं थी. यहाँ तक कि जमीन पर भी फाइल्स रखी थी. यह सभी फाइल्स नई पेंशन और रिवाइज्ड पेंशन की थी. मैं हैरान सा सब देखता रह गया. अल्लाह अल्लाह खैरसल्ला कह कर फाइल्स देखनी शुरू कर दी.

 

दूसरे दिन, स्थानांतरित हो चुके उपनिदेशक महोदय आये. उस समय तक वह भी संयुक्त निर्देशक हो चुके थे. मुझसे नौ साल जूनियर बैच के, मेरे बराबर के पद पर पहुँच गए थे.

 

ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे, मुस्कुराते हुए बोले, 'सर मैं  भी आपके बराबर आ गया. मैं भी संयुक्त निर्देशक हो गया.' उनका यह तीर सीने में धंस गया. हजारों की संख्या में पेंशन फाइल पेंडिंग रख गया अधिकारी मुझे अपनी बराबरी दिखा रहा था.

 

मैंने तल्ख़ टिप्पणी की, 'महाराज, यह फाइल्स देख रहे हो. तुम्ही छोड़ गये हो.' वह बोले, 'सर क्या करता ! शासन सही पोस्टिंग नहीं कर रहा था. ट्रान्सफर हो गया था. इसलिए फाइल्स करना बंद कर दिया.' मैंने कहा, ' पर इसमें इन बेचारे पेंशनरस का क्या दोष. तुमने तो इन्हें मोहताज कर दिया.' फिर मैंने उनको हडकाया. 'इतना तुम समझ लो कि मैं १९७५ बैच का अधिकारी हूँ, तुम १९८४ बैच के. तुम मेरे बराबर तो इस जन्म मे क्या कभी भी नहीं आ सकते. अगले जन्म में भी हम दोनों सेलेक्ट हुए तो या तुम बैच में ऊपर होगे या मैं. बराबर तो हो ही नहीं सकते. रही मेरे बराबर प्रमोशन पाने की बात तो तुम्हारी तरह मैं भी प्रमोशन पा गया था. पर अब उत्कृष्ट चाहिए. तुम जो धंधा पानी कर गए हो, अगर मैंने इन सब की लिस्ट बना कर निर्देशक और शासन को भेज दी तो इतनी तगड़ी एंट्री घुसेगी कि अगले जन्म में ही निकल पाएगी.' वह घबरा गए. सॉरी सॉरी बोल कर बाहर निकल गए.

 

यह पल मेरे लिए अवसाद का क्षण था. मैं सोचता रहा. मैंने ऐसा क्या कर दिया था कि बैड एंट्री नहीं पा कर भी प्रमोशन नहीं पा सका था. एक तरफ शासन ईमानदारी से काम की बात करता है, अपने विभागाध्यक्ष के गलत कामों की रिपोर्ट भेजने का नियम बना कर रखता है. उस पर वार्षिक पृविष्टि का दायित्व ही उन्हें भ्रष्ट हाथों में है. मैंने सोचा तब तो हो गया प्रमोशन.

 

निर्देशक पेंशन की बेरुखी और उपनिदेशक की बदतमीजी ने मुझे अवसाद के गहरे सागर में धकेल दिया. उसी समय मेरे मन में विचार आया, खिड़की से नीचे छलांग लगा दूं. लगातार इस तरह अपमानित होने से क्या फायदा. एक पल में जीवन ख़त्म हो जाएगा.

 

मेरे मन में यह विचार कुछ सेकंड के लिए ही रहा. यह मेरे लिए भारी था. उस समय में शून्य विचार हो गया था. कुछ भी कर सकता था. आत्महत्या भी.

 

अगले पल मैं इससे बाहर निकला. अपने चेहरे पर चार थप्पड़ मारे. साले चूतिये. धार के विरुद्ध बहना चाहता है. बेईमानों के बीच ईमानदारी की गंगा में नहाना चाहता है तो इसका फल मिलेगा ही. तो इसमें निराश क्यों होना. जैसा करम, वैसा फल.

 

दूसरे पल मैंने सोचा, जब तक हूँ पेंशनर्स का ही भला करू. उनका क्या दोष अगर मेरा प्रमोशन नहीं हो रहा. अगले ही पल में निराशा के सागर से उबर कर, पेंडिंग फाइल्स के ढेर में जा घुसा था.

 

सो मित्रों हर परिस्थिति में खुद पर काबू रखिए. आपने जो किया है, उस पर विश्वास कीजिये. श्रीकृष्ण भगवान ने भी कहा, 'तुम कर्म करो, फल की चिंता मत करो.'

 

मैंने चिंता भगवान् पर छोड़ दी थी.

बुधवार, 10 अगस्त 2022

जीवन !

कभी लगता है

डोर छूट रही है

हाथों से

साँसों की

अगले ही पल

लपक लेता हूँ क्षण

बाँध लेता हूँ श्वांस

छोड़ता नहीं आस

यह क्या है ?

इच्छा अगली श्वांस की

लालच जीने का

यहीं तो जीवन है कदाचित !

सोमवार, 18 जुलाई 2022

मन तोता


मन तोता होता है

हरी मिर्ची सा

लोहे के पिंजरे में

'मिट्ठू बेटा

राम राम बोलो' कहता

पिंजरा खोल दो

तो क्या

कहाँ जाएगा !

लौट कर फिर वापस आएगा

पंख है

पर शक्ति कहाँ

फड़फड़ाता सिर्फ

मन  तोते सा।

गुरुवार, 14 जुलाई 2022

दर्पण-पुरूष

 क्या 

मनुष्य दो प्रकार के होते हैं? 

सज्जन और दुर्जन पुरुष 

पर तीसरा भी होता है पुरुष

दर्पण में 

जिसे हम देखते हैं

दर्पण- पुरुष. 

काल- चित्र

काल  एक चित्र बनाता है 
लकीरों  से भरा 
श्वेत श्याम रंगों का मिश्रण
कभी धुंधला सा भी 
अतीत में खोजता- विचरता 
काल चक्र से जूझता
 काल-चित्र .


बुधवार, 13 अप्रैल 2022

समझ, समझ का फ़ेर!

 मैं लिखता हूँ

तुम पढ़ते नहीं

मैं पढ़ता हूँ

पर समझता नहीं

यह सब क्या है? 

समझ का फ़ेर 

या न समझने की चेष्टा! 

चाहे जो समझो 

समझ, समझ का फ़ेर 


जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड बनाम राम नवमी जलूस पर पत्थरबाजी

आज जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड को 103 साल हो गये.  इस हत्याकाण्ड को याद रखने की जरूरत केवल इसलिए नहीं कि इसमें 1500 से ज्यादा निर्दोष लोग मारे गए थे,बल्कि इसलिए भी याद करने की जरूरत है कि इन लोगों पर गोली चलाने के आदेश एक अंग्रेज अधिकारी ने दिए थे,  पर गोली चलाने वाले हाथ भारतीय थे. जनरल डायर ने सिख रेजिमेंट और गोरखा रेजिमेंट के लोहे से भारतीयों का लोहा काटा था. यह बंदूकें डायर की तरफ घूम जाती तो भारत का स्वतंत्रता का इतिहास कुछ अलग होता.  पर पूरी दुनिया मे ब्रिटिश साम्राज्य को बदनामी दिलाने वाले इस हत्याकांड के बाद पंजाब में विद्रोह नहीं हुआ था.



हालात आज भी वही हैं. हिन्दुओं के आराध्य राम अवतार दिवस पर निकाले जा रहे रामनवमी के जुलूस पर शहर शहर पत्थर बरसाने वाले मुसलमानों की एक मस्जिद पर कुछ अराजक चढ़ क्या गए नपुंसक हिन्दुओ की कथित सहिष्णुता जार जार आँसू बहाने लगी. जबकि पत्थरबाजों की कौम के किसी सेकुलर ने साँस तक नहीं ली थी.



हो सकता है कि उस समय अगर आज के यह हिन्दू अंग्रेजो ने वजीफे पर रखे होते तो यह कहते कि हम आज्ञाकारी है.  साहब बहादुर ने मना किया था तो इस भीड़ को जुटना नही चाहिए था. 

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

सोशल मीडिया के विदेश मंत्रियों की बजबजाती गली

सोशल मीडिया के विदेश मंत्रियों की दशा देखनी हो उनकी गली चले जाइए. गली की नाली बज- बजा रही है.  गंदा पानी भरा हुआ है. यह विदेश मंत्री घर का दरवाजा खोलते हैं. पानी भरा देख कर दो काम कर सकते है यहलोग.  या तो सफाई कर्मचारी को बुदबुदाहट में (ध्यान रखियेगा कि यह समस्या इनके सोशल मीडिया पेज पर नहीं आयेगी. सफ़ाई कर्मचारी पर चिल्लाने की औकात नहीं. पैंट की सीयन जो उधडी हुई है) कोसते हुए घर मे दुबक जाएंगे या फिर दूसरों द्वारा लगाई गई ईंटों पर डिस्को करते हुए गुजर जाएंगे. भारत सरकार को विदेश नीति समझाने वाले नाली मे फंसी ईंट या कचरा को डंडे से धकेल कर बाहर नहीं कर सकते ताकि नाली खुल जाये और गली में भरा पानी निकल जाये. इनके कलेजे मे इतनी जान ही नहीं कि बीवी या मोहल्ले वालों या गली के शरारती बच्चों से कह सकें कि कूड़ा नाली मे मत फेंका करो, बच्चों से कह सके कि खेलते हुए ईंट नाली मे मत डालो. हिम्मत ही नहीं है इन सोशल मीडिया वाले विदेश मंत्रियों की.

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

दर्द

जब घुटनों में दर्द होता है 

मैं बाम नहीं लगाता
न लगाने देता हूं किसी को 
तब याद आती है माँ 
उसके घुटने भी दर्द करते थे 
किसी से मलवाती नहीं थी
अपने कमजोर हाथों से घुटने सहलाती 
बाम लगा लेती
इसीलिए बाम नहीं लगाता 
मैं महसूस करना चाहता हूं 
माँ का दर्द.

अदृश्य सत्य

मैंने सत्य से पूछा- 
सत्य क्या है?
सत्य मुस्कुराया, बोला- 
मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूँ, यह सत्य है.  
तब असत्य क्या है ?
मेरे प्रश्न पूछते ही 
सत्य अदृश्य हो गया.