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2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गिनते रहें दिन!

2022 मे कितने महीने थे?  12 । 2022 में कितने सप्ताह थे?  52 ।  2022 मे कितने दिन थे? 365 ।  प्रत्येक माह मे कितने दिन थे?  जनवरी,  मार्च, मई,  जुलाई,  अगस्त, अक्टूबर और दिसम्बर में 31। फरवरी मे 28। अप्रैल,  जून, सितंबर और नवंबर मे 30। और सप्ताह मे कितने दिन ?  7।  एक दिन में कितने घंटे होते है।  24। हर घंटे मे कितने मिनट?  60।  हर मिनट मे कितने सेकंड ?  60।  पर जानना क्या चाहते हो तुम?  भाई मेरे यही कि  पूरे साल दिन गिनते रहे  जिए कब तुम। 

विडंबना

इतिहास में दर्ज हो गया  वह जिसे इतिहास न भाया  कभी ! २  गणित का अध्यापक  कक्षा में पढाता था तिथियाँ गिनता  बटुआ खोलता  घर में ! ३  डॉक्टर 

शिकारी!

पेड़ पर  शेर की छलांग से परे  सुरक्षित दूरी पर  मचान लगा कर  शेर का शिकार करता हूँ  बंदूक के सहारे । फिर भी  शेर शिकार है  और मैं शिकारी। 

चिट्ठी

अब चिट्टी नहीं आती  मैं किसी को नहीं लिखता  कोई मुझे पोस्टकार्ड नहीं भेजता  अंतर्देशीय का प्रश्न नहीं  लिफ़ाफ़े! जन्मदिन और वैवाहिक शुभकामनाओं तक  मैं कंप्युटर गाय हूँ  मेल भेजता हूँ  उत्तर मिल जाता है  कुछ मिनट या घण्टों में  पर ऐसे छूट जाते है  जो कंप्युटर गायज नहीं  क्योंकि मैं पत्र नहीं लिखता  मैं कंप्युटर गाय हूँ. 

महानगर

अभी यह महानगर सोया है  जागेगा  भागेगा  जीवन जीने को होड़  इसे दौड़ाएगी यह क्लांत नहीं होगा  अशांत नहीं होगा  रुकेगा नहीं  ठोकर खा कर भी  क्योंकि वह जानता है  एक दिन  जीवन देगा ठोकर  घायल होगा जीव  पर यह महानगर  रुकेगा नहीं,  थकेगा  इसी का नाम जीवन  महानगर अभी सोया है,  बस! 

पेन्शन रजिस्टर बनाने से फ़ायदा!

कल मैंने #worldsuicideday पर एक पोस्ट लिखी थी. आज इसका दूसरा हिस्सा लिख रहा हूँ.       दरअसल , मेरी सेवा की विशेषता यह है कि वह कौवा कान ले गया पर इतना विश्वास करती है कि कौवा उसका कान ले गया या किसी और का कान , जानना नहीं चाहती. यह पूछने का सवाल ही नहीं उठता कि कान सचमुच में गया या नहीं. बस दौड़ लगाने लगत्ते थे कौवे की पीछे.       मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. ऐसा लखनऊ कोषागार में हुई एक घटना के कारण हुआ था. उस घटना के बाद , मेरे बैच के ऑफिसर भी कहने लगे थे कि तुम झगडालू हो. अब उनसे कौन कहे कि अकेला ऑफिसर मठाधीशों की भीड़ में मारपीट नहीं कर सकता.   बहरहाल मेरी पहली इमेज अपनी सेवा के अधिकारीयों में यही बनी थी. शायद यही इमेज निदेशक कोषागार के मस्तिष्क में भी थी. इसी से वह मुझसे उचाट थे.       बहरहाल , मैं इस सब से बेपरवाह कर्मण्ये वाधिकारस्ते पर विश्वास करता हुआ अपने कमरे पर रखी पेंशन फाइल्स निबटाने में जुट गया. फाइलों का इतना बड़ा जखीरा दिमाग हिलाए दे रहा था. मैंने सोचा , भाई निर्देशक खुश नहीं है , ट्रान्सफर तो करवा...

मैंने भी चाहा था आत्महत्या करना! #WorldSuicideDay

आज , १० सितम्बर को , पूरा विश्व वर्ल्ड सुसाइड डे मना रहा है. इस अवसर पर अपना एक   अनुभव.   यह बात , उस समय की है , जब मेरी तैनाती पेंशन निदेशालय में संयुक्त निर्देशक के पद पर हुई थी. ट्रान्सफर का मारा , जिसे प्रमोशन के लिए उत्कृष्ट यानि आउटस्टैंडिंग पृविष्टि की जरूरत रहा करती थी. कितना परेशान हैरान विभागाध्यक्ष चाह कर भी बैड नहीं लिख पाता था. इसलिए अधिकतर ने प्रविष्टि लिखी ही नहीं. एक आध ने लिखी तो श्रेणी दी अच्छा. यह अच्छा क्या होता है. उस समय के लिहाज से मेरे प्रमोशन के लिए बैड से भी खराब.   हमारे एक अधिकारी का कहना था कि कांडपाल जी , आप लोगों को बैड लिखो ही नहीं. सामान्य लिख दो. प्रमोशन होगा नहीं. बैड लिखो तो जवाब देना पड़ेगा. विभागाध्यक्षों की इस नीचता के कारण मेरा प्रमोशन लगातार रुक रहा था. डीपीसी होती. पता चलता कि प्रमोशन नहीं हुआ है. दिल धक् से कर जाता. निराशा का गहरा कुहासा छा जाता. उस पर ट्रान्सफर पर ट्रान्सफर.   हाँ. तो बात कर रहा था संयुक्त निर्देशक पेंशन निदेशालय में तैनाती की. उस समय के निर्देशक बड़े सुलझे हुए व्यक्ति थे. मैं सोचता था कि कुछ दि...

जीवन !

कभी लगता है डोर छूट रही है हाथों से साँसों की अगले ही पल लपक लेता हूँ क्षण बाँध लेता हूँ श्वांस छोड़ता नहीं आस यह क्या है ? इच्छा अगली श्वांस की लालच जीने का यहीं तो जीवन है कदाचित !

मन तोता

मन तोता होता है हरी मिर्ची सा लोहे के पिंजरे में ' मिट्ठू बेटा राम राम बोलो ' कहता पिंजरा खोल दो तो क्या कहाँ जाएगा ! लौट कर फिर वापस आएगा पंख है पर शक्ति कहाँ फड़फड़ाता सिर्फ मन  तोते सा।

दर्पण-पुरूष

 क्या  मनुष्य दो प्रकार के होते हैं?  सज्जन और दुर्जन पुरुष  पर तीसरा भी होता है पुरुष दर्पण में  जिसे हम देखते हैं दर्पण- पुरुष. 

काल- चित्र

काल  एक चित्र बनाता है  लकीरों  से भरा  श्वेत श्याम रंगों का मिश्रण कभी धुंधला सा भी  अतीत में खोजता- विचरता  काल चक्र से जूझता  काल-चित्र .

समझ, समझ का फ़ेर!

 मैं लिखता हूँ तुम पढ़ते नहीं मैं पढ़ता हूँ पर समझता नहीं यह सब क्या है?  समझ का फ़ेर  या न समझने की चेष्टा!  चाहे जो समझो  समझ, समझ का फ़ेर 

जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड बनाम राम नवमी जलूस पर पत्थरबाजी

आज जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड को 103 साल हो गये.  इस हत्याकाण्ड को याद रखने की जरूरत केवल इसलिए नहीं कि इसमें 1500 से ज्यादा निर्दोष लोग मारे गए थे,बल्कि इसलिए भी याद करने की जरूरत है कि इन लोगों पर गोली चलाने के आदेश एक अंग्रेज अधिकारी ने दिए थे,  पर गोली चलाने वाले हाथ भारतीय थे. जनरल डायर ने सिख रेजिमेंट और गोरखा रेजिमेंट के लोहे से भारतीयों का लोहा काटा था. यह बंदूकें डायर की तरफ घूम जाती तो भारत का स्वतंत्रता का इतिहास कुछ अलग होता.  पर पूरी दुनिया मे ब्रिटिश साम्राज्य को बदनामी दिलाने वाले इस हत्याकांड के बाद पंजाब में विद्रोह नहीं हुआ था. हालात आज भी वही हैं. हिन्दुओं के आराध्य राम अवतार दिवस पर निकाले जा रहे रामनवमी के जुलूस पर शहर शहर पत्थर बरसाने वाले मुसलमानों की एक मस्जिद पर कुछ अराजक चढ़ क्या गए नपुंसक हिन्दुओ की कथित सहिष्णुता जार जार आँसू बहाने लगी. जबकि पत्थरबाजों की कौम के किसी सेकुलर ने साँस तक नहीं ली थी. हो सकता है कि उस समय अगर आज के यह हिन्दू अंग्रेजो ने वजीफे पर रखे होते तो यह कहते कि हम आज्ञाकारी है.  साहब बहादुर ने मना किया था तो इस भीड़ को जु...

सोशल मीडिया के विदेश मंत्रियों की बजबजाती गली

सोशल मीडिया के विदेश मंत्रियों की दशा देखनी हो उनकी गली चले जाइए. गली की नाली बज- बजा रही है.  गंदा पानी भरा हुआ है. यह विदेश मंत्री घर का दरवाजा खोलते हैं. पानी भरा देख कर दो काम कर सकते है यहलोग.  या तो सफाई कर्मचारी को बुदबुदाहट में (ध्यान रखियेगा कि यह समस्या इनके सोशल मीडिया पेज पर नहीं आयेगी. सफ़ाई कर्मचारी पर चिल्लाने की औकात नहीं. पैंट की सीयन जो उधडी हुई है) कोसते हुए घर मे दुबक जाएंगे या फिर दूसरों द्वारा लगाई गई ईंटों पर डिस्को करते हुए गुजर जाएंगे. भारत सरकार को विदेश नीति समझाने वाले नाली मे फंसी ईंट या कचरा को डंडे से धकेल कर बाहर नहीं कर सकते ताकि नाली खुल जाये और गली में भरा पानी निकल जाये. इनके कलेजे मे इतनी जान ही नहीं कि बीवी या मोहल्ले वालों या गली के शरारती बच्चों से कह सकें कि कूड़ा नाली मे मत फेंका करो, बच्चों से कह सके कि खेलते हुए ईंट नाली मे मत डालो. हिम्मत ही नहीं है इन सोशल मीडिया वाले विदेश मंत्रियों की.

दर्द

जब घुटनों में दर्द होता है  मैं बाम नहीं लगाता न लगाने देता हूं किसी को  तब याद आती है माँ  उसके घुटने भी दर्द करते थे  किसी से मलवाती नहीं थी अपने कमजोर हाथों से घुटने सहलाती  बाम लगा लेती इसीलिए बाम नहीं लगाता  मैं महसूस करना चाहता हूं  माँ का दर्द.

अदृश्य सत्य

मैंने सत्य से पूछा-  सत्य क्या है? सत्य मुस्कुराया, बोला-  मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूँ, यह सत्य है.   तब असत्य क्या है ? मेरे प्रश्न पूछते ही  सत्य अदृश्य हो गया.