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किसान से डायरेक्ट गेहूं खरीदने के बाद बेताल !

किसान आन्दोलन के पक्ष और विपक्ष में देखे और सुनने के बावजूद फेसबुक पर लटके वेताल ने हठ न छोड़ा. वह कंधे पर बोरा टांग कर मंडी की ओर निकल पड़ा. तभी झोले में स्थित काग्रेसी जिन्न ने कहा , " हे वेताल , तू मंडी जा कर क्या साबित करना चाहता है कि किसानों को भरपूर दिया जा रहा है , उनका शोषण नहीं हो रहा. अगर तुझमे किसानों के प्रति थोड़ी भी इज्ज़त है तो किसान से सीधे खरीद. यह सोच कर वेताल सुर से हट कर बेताल हो गया. वह अपने बोर को लेकर एक किसान के खेत जा पहंचा. किसान खेत में गेहूं की कटाई कर रहा था. एक तरफ दाने अलग किया हुआ गेहूं भी था. बेताल ने किसान से एक बोरा गेहूं देने के लिए कहा. बाज़ार भाव पर एक बोरा गेंहूं भर कर , कंधे पर लाद कर बेताल घर जा पहुंचा. बेताल परम संतुष्टि भाव से बेतालनी और जूनियर बेतालिनियों से बोला , " देखो मैं बिचौलियों को पीछे छोड़ कर सीधे किसान से गेहूं खरीद लाया  हूँ. अब तुम लोग इसे भलीभांति साफ़ कर आटा बनाने के लिए कनस्तर में रख कर पिसा लाओ. इतना सुनते ही , बेतालनी  और जूनियर बेतालानियों ने झाडुओं की बारिश कर बेताल को आम आदमी पार्टी का चुनाव चिन्ह बना दिया. वह बोली , ...

दीपों की आयु

दीपोत्सव के बाद की सुबह उठ कर बालकनी मे आया जल चुके कई दीप बिखरे हुए थे। मेरे मन मे संतुष्टि भाव था रात तक प्रकाश बिखेरा था इन माटी के दीपों ने तभी शंका उभरी दीपों का मुँह काला पड़ चुका था कदाचित जल जाने की उदासी थी मन दुखी हुआ । तभी दिल ने कहा- यह उदास हैं । तब से सोच रहा हूँ क्योंकि , नहीं बिखेर सके सारी रात प्रकाश !  क्यों कम होती है! दीपों की आयु ?

सरकारी सेवा में ब्राह्मण से प्रताड़ित हुआ एक ब्राह्मण

मैं एक विभाग में फाइनेंस कंट्रोलर था. वर्दी वाला विभाग था वह. एक डीजीपी साहब थे. जाति से ब्राह्मण और बेहद जातिवादी. मैं उनके अधीन काम करने के लिए भेजा गया. मेरा सरनेम कांडपाल है. उससे उन्हें यह गलतफहमी हो गई कि मैं पाल यानि गडरिया जाति या कहिये नीची जाति का हूँ. यहाँ मैं बता दूं कि मैंने अपनी सेवा भर अपना काम बेहद साफ सुथरा और पारदर्शिता वाला रखा है. मुझसे मेरे से सम्बंधित कोई सूचना मांगी जाए मैं तुरंत उपलब्ध करा सकता था. मेरे अधीन किसी कर्मचारी या अधिकारी की फाइल रोकने की हिम्मत नहीं हो सकती थी. इसके बावजूद न जाने क्या बात थी कि वह हमेशा नाराज़ नज़र आते. कनिष्ठ अधिकारियों के सामने गलत तरह से बात करते , डाट फटकार तो वह कहीं भी लगा सकते थे. मुझे नागवार गुजरता था , उनका कनिष्ठ अधिकारियों के सामने बदतमीजी करना. मैं इस विचार का अधिकारी रहा हूँ कि अगर किसी ने गलती की है तो उसे सज़ा जरूर दी जाए. फटकारना है तो उसकी गरिमा का ध्यान ज़रूर रखा जाए. लेकिन , वह ब्राह्मण देवता इसके कायल नहीं थे. चार पांच महीना तो यह चलता रहा. फिर मुझे लगा कि अब इनके द्वारा की जा रही मेरी बेइज्जती मेरे जमीर को ख़त्म कर...

काले अक्षर

किताबें हमें कुछ सिखा नहीं पाती क्योंकि, सफ़ेद पन्नों पर काली स्याही से लिखे अक्षर हम सिर्फ पढ़ते हैं कुछ सीखते नहीं क्योंकि हमारे लिये भैंस बराबर हैं काले अक्षर। 

शोक

तुम मत करना शोक । दुख किस बात का !  संताप किस बात का !  कौन मरा था तुम्हारा ?  अख़बार की खबर था वह कैमरे कि क्लिक का कमाल फोटो था वह  ख़ून की छोटी नदी के बीच फैला पड़ा था वह । कौन था तुम्हारा? कोई नहीं।  काले अक्षरों से लिखा गया समाचार  निरपेक्ष कैप्शन के ऊपर तना रंगीन फोटो सा वह। तुम्हें किस बात का दुख ! संताप कैसा!  तब शोक क्यों करना?

क्यों नहीं प्रभावित कर सकी ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान?

ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान के निर्देशक विजय कृष्ण आचार्य लेखक ,  निर्देशक ,  संवाद लेखक और गीतकार हैं. उन्होंने धूम और धूम २ को लिखा था. गुरु में उनके लिखे संवाद थे. अक्षय कुमार ,  करीना कपूर और सैफ अली खान की फिल्म टशन से उनका बॉलीवुड फिल्म डेब्यू हुआ. यह फिल्म वितरकों और प्रदर्शकों के साथ विवाद में फंस कर काफी सिनेमाघरों में रिलीज़ नहीं हो सकी. विजय कृष्ण आचार्य की निर्देशक के रूप में दूसरी फिल्म धूम सीरीज की तीसरी फिल्म धूम ३ थी. इस फिल्म के नकारात्मक नायक आमिर खान थे. उनकी नायिका कैटरीना कैफ थी. जैकी श्रॉफ ने पिता की भूमिका की थी. इस फिल्म को जिन लोगों ने देखा है ,  वह समर्थन करेंगे कि यह फिल्म बेहद बेसिरपैर की बेवकूफियों से भरी फिल्म थी. पटकथा में ऐसा कोई लॉजिक नहीं दीया गया था कि आमिर खान के चरित्र ने डकैतियाँ डाली तो कैसे. बस पड़ गई डकैती. फिर भी आमिर खान और हिट गीतों के कारण क्रिसमस वीकेंड २०१३ पर रिलीज़ यह फिल्म सुपरहिट हो गई. इस फिल्म के ५ साल बाद ,  विक्टर आचार्य की तीसरी निर्देशित फिल्म ठग्स ऑफ़ हिंदुस्तान दीवाली वीकेंड पर रिलीज़ हुई थी. विक्टर को इस ...

आज बहुत याद आती है PAC

लॉकडाउन तोड़ कर कोरोना वायरस फैलाने के लिए बेचैन और मस्जिद में नमाज़ पढ़ने के लिए आमादा लोगों के पुलिस पर हमलों के बाद , अब उत्तर प्रदेश पुलिस थोड़ी सक्रिय नज़र आती है. लेकिन , अभी कुछ कमी लगती है. मुझे याद आ जाती है सत्तर के दशक तक सक्रिय पीएसी की. मुल्लाओं के भूत भागते थे इस कांस्टेबुलरी से. इस फाॅर्स की खाकी वर्दी को देखते ही मुल्ला , ठुल्ला और कठमुल्ला की लुंगी , पेंट , जांघिया , आदि सब गीली हो जाती थी. छात्र आन्दोलन के दौरान प्रोविंशियल आर्म्स कांस्टेबुलरी का ख़ूब उपयोग किया जाता था. छात्र इन्हें मामा कह कर चिढाते थे. ऐसे में जब भांजे इनके हत्थे चढ़ जाते थे , मामा इनकी मामा की तरह नहीं धुनकी की तरह धुनाई करते थे. अब फिर आता हूँ आज के परिदृश्य पर. देख रहा हूँ भाई लोग लॉक डाउन का पालन कराने आई पुलिस पर बेहिचक , बेधड़क , बेरहम हमला करते हैं. पुलिस अधिकारीं को खूनम खून कर देते हैं. दिल्ली में तो इन लोगों के कारण कितने पुलिस अधिकार चोटिल हुए , कोमा तक पहुँच गए. ऐसे में सोचता हूँ अगर उत्तर प्रदेश की पुलिस आर्म्स कांस्टेबुलरी यानी पीएसी होती तो क्या यह पत्थरबाज़ सडकों पर भागते हुए पुलिस वै...

मजीठिया की निराशा नरेन्द्र मोदी पर निकालता पत्रकार !

एक बार , स्कूल की अध्यापिकाओं के छोटे बच्चों की पिटाई किये जाने पर एक सर्वेक्षण किया गया था. उसमे यह बात निकल कर सामने आई थी कि स्कूल मालिक अध्यापिकाओं को कम वेतन देते हैं और पढ़ाने के साथ साथ स्कूल के दूसरे काम भी लेते है. यह अध्यापिकाएं घर में अपने पतियों से भी हैरान परेशान रहा करती थी. स्कूल और घर का सम्मिलित निराशा उन्हें बच्चों को पीटने के लिए मज़बूर करती थी. मैं आपसे शर्त लगा सकता हूँ. ऐसा ही सर्वेक्षण पत्रकारों पर भी कीजिये.  इनकी पोस्ट , इनके नैराश्य का प्रमाण है. यह प्रधान मंत्री पर , उनके किसी काम पर , बेसिर पैर की , तथ्यहीन टिप्पणियां करते हैं. अपने अख़बार में मजीठिया वेज बोर्ड न लागू होने लिए मोदी को दोषी बताते हैं. उनकी कोई भी पोस्ट आपको ज्ञान नहीं दे सकती. जो भी परोसते हैं , वह निराशा और नकारात्मकता से भरपूर. आप इन्हें पढ़ पढ़ कर आत्महत्या करने को मज़बूर हो सकते हैं. अगर आप प्रतिवाद में कुछ लिख दें तो तुरंत आपको भक्त की उपाधि देकर खुद राक्षस की तरह बन जाते हैं. सर्वे होगा तो यह मालूम हो जाएगा कि यह बेचारे भी कम वेतन के मारे हैं. यह बेचारे भी घर में लताड़े जाते है...

निराशा से आशा की ओर ले जाता है मोदी सन्देश

मैं अपने ढेरों मित्रों की तरह अति विद्वान नहीं. बहुत मामूली बुद्धि वाला हूँ. लेकिन प्रधान मंत्री के आज के सन्देश से मैंने यह अर्थ निकाला है कि उन्होंने लॉक डाउन की वजह से १० दिनों से घरों में बंद , अपने ईष्ट-मित्रों से न मिल पाने के लिए मज़बूर , करोड़ों लोगों के एकाकीपन को महसूस करते हुए ; उन गरीबों को , जो दुर्भाग्य के अँधेरे में डूबे हुए है , संबल देने के लिए अन्धकार में दिया जलाने का सन्देश दिया है. यानि अगर आपके आसपास के घरों की बालकनी में ऐसा कोई दृश्य नज़र आएगा तो आप महसूस कर सकेंगे कि हम अकेले नहीं. आसपास कुछ दूसरे लोग भी हैं. जैसा प्रधान मंत्री के २१ मार्च के संबोधन के बाद महसूस किया गया था .इससे स्वाभाविक अकेलापन दूर होगा. कोरोना वायरस की बीमारी के भय से दो चार हो रहा देश इस सन्देश से आशा की किरण देख सकता है. देश एक है का सन्देश भी है इसमे. बेशक आपको ऐसा नहीं लग रहा होगा. मैंने कहा न , आप अतिरिक्त जीनियस हैं. मैं कम बुद्धि हूँ. मैंने जो समझा उसे लिखा. आपको बताने के लिए नहीं. आप तो काफी खेले खाए और समझे है. मैंने यह अपने जैसे कम बुद्धि मित्रों के लिये लिखा है. इसलिए हाथ जोड़...

मुनव्वर राणा पर पड़े जूते २०, जब कहा कोरोना मुसलमान हुआ जाता है

मुनव्वर राणा ट्विटर एक शेर के ज़रिये अपनी ज़हालियत का प्रदर्शन किया . शेर था- जो भी ये सुनता है हैरान हुआ जाता है , अब कोरोना भी मुसलमान हुआ जाता है। जवाब में मुनव्वर राणा को बेभाव में इतने शेर पड़े - १- जब भी मुश्किल में मेरा देश कभी आता है , ये ‘ मुनव्वर ’ भी ‘ मुसलमान ’ ही हो जाता है। २ - तबलीगी मुसलमान सच्चा मुसलमान कहाता है , क़ुरान भी फैलाता है और कोरोना भी फैलाता है। ३- # तबलीगी _ जमात के बारे में जो भी ये सुनता है , हैरान हुआ जाता है... कोरोना से मिलकर और भी ज्यादा खतरनाक , अब मुसलमान हुआ जाता है ४-  मैंने जब ये सुना तो हैरान ना हुआ चिंता तो हुई थोड़ी पर परेशान ना हुआ दिमाग मे जेहाद भरा होना जिनकी निशानी है मासूमों का कत्ल करना जिनकी कहानी है जब मजहब के चलते कोई शैतान हुआ जाता है तब कोरोना भी मुसलमान हुआ जाता है ५- अगर चिढ़ते हैं तो चिढ़ने दो , मेहमान थोड़ी है ये सब हैं जाहिल , अब्दुल कलाम थोड़ी है फैलेगा कोरोना तो आएंगे घर कई ज़द्द में यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है मैं जानता हूँ देश उनका भी है लेकिन हमारी तरह हथेली प...

कोरोना वायरस के बहाने भूखों की अपने प्रदेश वापसी ?

कभी आप मुंबई , दिल्ली या अहमदाबाद में किसी अपने प्रदेश के व्यक्ति से बात कीजिये. वह आपको अपने संघर्ष के दिनों की याद दिलाएगा कि कैसे उसने संघर्ष किया. भूख झेली. इसके बाद यह मुकाम पाया. उसकी यह तकरीर आपको एक नामाकूल व्यक्ति साबित कर देगी , जो बिना संघर्ष किये कुछ बनना चाहता है , पाना चाहता है. लेकिन , उस समय तकरीर करता व्यक्ति यह भूल जाता है कि ऐसा कहते समय वह यह भी बता रहा था कि वह अपने प्रदेश में भूखा मर रहा था , कोई काम नहीं था. या फिर वह अपनी निजी आकांक्षाओं यथा एक्टर , फिल्म राइटर , डायरेक्टर बनने की , पूरी करने के लिये यह संघर्ष कर रहा था. इसमे समाज या देश सेवा की कोई भवना नहीं थी. खालिस निजी स्वार्थ। यह व्यक्ति जब सफल हो जाता है , उसमे वह सब बुराइयां आ जाती है , जो बॉलीवुड में है. काला पैसा , ज्यादा पैदा लेकर कम आय दिखाना , कर बचाने के लिए फर्जी बिलिंग करना , आदि आदि. ऐसे ही कुछ कथित संघर्षशील लोग ,पिछले दो-तीन दिनों से वापस हो रहे हैं अपने प्रदेश कि वह मुंबई , दिल्ली या अहमदाबाद रह कर भूखें मारें क्या ? सरकार को कोस रहे हैं कि वह कुछ नहीं कर रही उनके लिए. चैनल इसका ढिंढोरा...

क्या माँ बाप गलत अपेक्षाएं रखते हैं बच्चों से ?

इक्का दुक्का अपवाद हो सकते हैं. लेकिन, ज्यादातर माँ-पिता बच्चों से गलत अपेक्षाएं नहीं रखते. यहाँ तक कि उनकी अपेक्षाएं भी गलत नहीं होती, जिन्हें हम गलत समझते हैं. मुझे ऐसा लग रहा है कि आप उन अपेक्षाओं को गलत बता रहे हैं, जिन्हें बच्चे गलत समझते हैं. इसमे कोई शक नहीं कि नई पीढ़ी का एक्स्पोजर ज्यादा है. लेकिन, अनुभव के सामने यह कहीं नहीं टिकती. अच्छा-बुरा की समझ समय करता है, अनुभवों से यह समझ आती है. एक उदाहरण देना चाहूंगा. इधर लिव-इन रिलेशनशिप का चलन हो गया है. कोर्ट ने इसे मान्यता भी दे दी है. बिना शादी के एक साथ रहना पश्चिम से प्रभावित अपने आप में नया कांसेप्ट है. इसमे थ्रिल भी काफी है. एक लड़की के साथ अकेले रात दिन रहना और सब कुछ करना. लेकिन, क्या इससे यह पता चल जाता है कि लिव-इन का अनुभव कर चुके लड़का लड़की अब अच्छे पति-पत्नी बन सकते हैं. शायद शतप्रतिशत नहीं. ऐसे काफी मामले प्रकाश में आये है, जिनमे लड़की ने शादी करने का झांसा देकर बलात्कार करने का आरोप लगा दिया. सबसे बड़ी बात तो यह है कि कुछ महीने थ्रिल के नशे में गुजारने के बाद यह कैसा पता चल जाता है कि नशा सही चढ़ा है! जब यह नशा उतर...

मुसलमानों को सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ भड़काने में बुरे फंसे हर्ष मंधेर

एक हैं हर्ष मंधेर ! उन्हें जानने के लिए इतना बताना काफी होगा कि फेसबुक/ट्विटर पर आपको कुछ साम्यवादी सोच वाले , पेंट के अन्दर लंगोट पहनने के बावजूद खुद को नंगा दिखाने वाले , पढ़े लिखे आग उगलने वाले ड्रैगन जैसे ढेरों फेसबूकियों/ट्विटरातियो की तरह ही है हर्ष मंदर. विदेशी NGO से इन लोगों को भारी-भरकम मदद मिलती रहती है. कांग्रेस मुख्यालय पर तो इनके लिए खजाना खुला रहता है. उन्होंने एक एंटी CAA रैली में मुसलमानों को भड़काने के लिये धुंआधार भाषण करते हुए ऐलान कर दिया कि हमें सुप्रीम कोर्ट पर विश्वास नहीं है. लेकिन हमें जाना इनके पास ही होगा. ऐसे न जाने कितनी तकरीरे की हैं इन महाशय ने. यह महाशय अभी एक अपील लेकर सुको पहुँच गए कि बीजेपी वाले दिल्ली में दंगा करवा रहे हैं. इसके नेताओं के खिलाफ कार्यावाही के लिए पुलिस पुलिस को निर्देशित करें. इसे देखते हुए कुछ लोगों ने हर्ष मंधेर की इसी स्पीच का टेप लगाते हुए , उनके खिलाफ सुको की अवमानना की कार्यवाही के लिए रिट दाखिल कर दी. यह सुन कर सुको के तेवर चढ़ गए. CJI ने कहा कि पहले यह तय हो जाए कि आपको सुको पर विश्वास क्यों नहीं है. इस पर मंधेर के वकील ने ...

क्या ठीक होगा कि हाईकोर्ट का कोई जस्टिस १४ साल तक अपनी कुर्सी पर जमे रहे ?

जस्टिस मुरलीधर , दिल्ली हाईकोर्ट में पिछले १४ सालों से जमे हुए थे. अमूमन एक सरकारी नौकर को किसी एक जगह पर ५ साल से ज्यादा नहीं रखा जाता. आईएएस/आईपीएस अधिकारियों को भी इस प्रकार के स्थानान्तरणों को झेलना पड़ता है. ऐसे में जस्टिस मुरलीधर में ऎसी क्या खासियत थी कि उन्हें १४ सालों तक दिल्ली हाईकोर्ट में ही बनाए रखा गया , जबकि दूसरे उच्च न्यायालय भी देश में हैं ? यह जांच का विषय बनता है कि जस्टिस के ट्रान्सफर पर दिल्ली के वकील क्यों आंदोलित थे ? जैसा कि माहौल बनाया जा रहा है कि उन्हें दिल्ली रायट के मामले में उनके निर्णय पर ट्रान्सफर किया गया , यह जांच का विषय है कि किस व्यक्ति या संस्था को जस्टिस के दिल्ली में भी बने रहने में दिलचस्पी थी. खुद cji को इसकी जांच करानी चाहिए ताकि न्यायालय की गरिमा को इस प्रकार के किसी ट्रान्सफर से आगे आंच न आये.

अंडर ट्रान्सफर जस्टिस मुरलीधरन का अंडर ट्रायल जस्टिस

जस्टिस मुरलीधरन अंडर ट्रांसफ़र थे। उन्होंने क्यों इतने महत्वपूर्ण मामले को सुना। उन्होंने इतना ही नहीं किया , पुलिस व्यवस्था को हतोत्साहित करने की कोशिश भी की । आप कैसे अदालत मे वीडियो चला कर आरोप लगा सकते हो और फैसला सुना सकते हैं ? आरोप लगाना जजों का काम नही है। अच्छा होता कि आप अदालत में सिनेमाघर लगाने के बजाय पुलिस कमिश्नर से कहते कि निष्पक्ष जॉंच की जाये। मान लेते हैं कि आप दिल्ली की हिंसा से बहुत आहत थे तो आपने यह क्यों नही कहा कि सुको को दो महीना पहले शाहीनबाग पर निर्णय सुना देना चाहिये था ? क्यों नही कहा कि सुप्रीम कोर्ट सीएए की वैधानिकता पर तुरंत निर्णय लेने में असफल रहा ? क्यों नही कहा कि कॉंग्रेस की नेता सोनिया गॉंधी ने मुसलमानों को सड़क पर उतर कर हिंसा करने के लिये उकसाया ? क्यों नही कहा कि राहुल गॉंधी और प्रियंकावाड्रा भी समान रूप से दोषी है ? क्यों नही इनकी स्पीच के वीडियो चलवाये ? क्यों नहीं कहा कि सलमान ख़ुर्शीद और मणिशंकर अय्यर के जामिया और शाहीनबाग के भाषण मुसलमानों को उकसाने के लिये थे , जिनमें प्रधान मंत्री को गालियाँ दी गयी ? क्यों नही कहा कि अकबरुद्दीन ओवैस...

पश्चिम बंगाल में ममतादी का सॉफ्ट हिंदुत्व वाया फरहद हाकिम

पश्चिम बंगाल में एक फरहाद हाकिम नाम का एक शख्स है. वह तृणमूल कांग्रेस का सब कुछ है. वह वर्तमान में कलकत्ता का मेयर है. इस पार्टी में उसकी स्थिति ममता बनर्जी और उनके भतीजे के बाद तीसरे नंबर की है.वह कभी , बांग्लादेश की सीमा से सटी मुस्लिम बस्तियों को घमंड से दिखाते हुए कहता था- यह है मिनी पाकिस्तान. मैंने ऐसे बहुत से पाकिस्तान बना दिए हैं. ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति ने बंगाल को आंदोलित करना शुरू कर दिया. ममता बनर्जी की हिन्दू विरोधी और मुस्लिम समर्थक नीति ने हिन्दुओं को तृणमूल कांग्रेस से दूर करना शुरू कर दिया. इसके नतीजे में बंगालमें भाजपा मज़बूत हुई. लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस से १८ सीटें झटक ली. इस घटना ने लोमड़ी ममता बनर्जी के कान खड़े कर दिए. उन्होंने अपने दाहिने हाथ फरहाद हाकिम को सक्रिय किया. फरहाद हाकिम ने राम- नामी ओढ़ ली. इस शिवरात्रि हाकिम शिव मंदिर में पूजा करता दिखाई दिया. इससे पहले , ममता बनर्जी की पार्टी की अभिनेत्री से एमपी बनी नुसरत जहाँ ने लोकसभा में हिन्दू सिंगार कर शपथ ली और दुर्गा पूजा मे जम कर हिस्सा लिया. लेक...

भारत में भी सेफ नहीं हिन्दू !

अभी फेसबुक पर ही एक पोस्ट सुन रहा था। एक हिन्दू महिला , जिसका घर मुस्लिम दंगाइयों ने जला दिया था , वह बिलखते हुए पूछ रही थी , ' जब हिन्दुस्तान में हिन्दू सेफ़ नहीं तो और कहॉं होगा ?' यह सवाल न मुसलमानों से है , न सेक्यूलर हिन्दुओ से है। यह सवाल देश के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी से है कि जवाब दीजिये , ' हिन्दू आपके रहते भारत में सेफ़ नहीं है तो और कहॉं होगा ? आप पर आज भी मुसलमान २००२ के दंगों का कलंक लगाते फिरते हैं। तब इन्हे आपके राज में इतनी हिम्मत कैसे मिल गयी कि मिनटों में दिल्ली आग के हवाले कर दी। हिन्दुओं को भारत में ही शरणार्थी बना दिया। इन लोगों के लिए कौन सा सीएए लायेंगे मोदी जी! जवाब तो देना होगा कि मुसलमानों में २००२ से पैदा हुआ आपका भय यकायक हवा कैसे हो गया कि यह लोग १५ दिसम्बर से दिल्ली में अब्दाली वाला तांडव कर रहे थे ?'

हम सेक्युलर हैं

१९५९ में अमरीकी राष्ट्रपति आइजनहोवर भारत आये थे. हमारे सेक्युलर पंडित जवाहरलाल नेहरु ने आनंद भवन की पुरानी टट्टी वाले कमरे में उन्हें सुलाया था. खुद फटी हुई शेरवानी और चूड़ीदार पहन रखी थी. चहरे पर फिटकार बरस रही थी. फिर १९६९ मे रिचर्ड निक्सन आये. तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अपने पिता वाला कमोड धो पोंछ कर प्रधान मंत्री आवास के नौकरों वाले कमरे में रख दिया और उसमे निक्सन को ठहराया. उस समय इंदिरा गाँधी अपनी बाई की हुई सिली हुई धोती पहने थी. फटे ब्लाउज से झांकती अपनी लाज बचाने का वह भरसक प्रयास कर रही थी. १९७८ में जिमी कार्टर भारत आये. पूर्व कांग्रेसी मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री थे. नेहरु इंदिरा विरासत को सम्हालते हुए , उन्होंने वही कमोड और वही सर्वेंट रूम जिमी कार्टर को दे दिया. २००० में बिल क्लिंटन आये. सांप्रदायिक वाजपेयी ने उनका बढ़िया स्वागत किया. डिसगस्टिंग वाजपयी. सेकुलरिज्म को इतनी तो जगह देते की हरे रंग के चिक लगा देते रूम में. २००६ और २०१० में जॉर्ज डब्ल्यू बुश और बराक ओबामा भारत आते. मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री थे. हमने सांप्रदायिक सरकार के स्व...