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क्या माँ बाप गलत अपेक्षाएं रखते हैं बच्चों से ?

इक्का दुक्का अपवाद हो सकते हैं. लेकिन, ज्यादातर माँ-पिता बच्चों से गलत अपेक्षाएं नहीं रखते. यहाँ तक कि उनकी अपेक्षाएं भी गलत नहीं होती, जिन्हें हम गलत समझते हैं.
मुझे ऐसा लग रहा है कि आप उन अपेक्षाओं को गलत बता रहे हैं, जिन्हें बच्चे गलत समझते हैं. इसमे कोई शक नहीं कि नई पीढ़ी का एक्स्पोजर ज्यादा है. लेकिन, अनुभव के सामने यह कहीं नहीं टिकती. अच्छा-बुरा की समझ समय करता है, अनुभवों से यह समझ आती है.
एक उदाहरण देना चाहूंगा. इधर लिव-इन रिलेशनशिप का चलन हो गया है. कोर्ट ने इसे मान्यता भी दे दी है. बिना शादी के एक साथ रहना पश्चिम से प्रभावित अपने आप में नया कांसेप्ट है. इसमे थ्रिल भी काफी है. एक लड़की के साथ अकेले रात दिन रहना और सब कुछ करना. लेकिन, क्या इससे यह पता चल जाता है कि लिव-इन का अनुभव कर चुके लड़का लड़की अब अच्छे पति-पत्नी बन सकते हैं. शायद शतप्रतिशत नहीं. ऐसे काफी मामले प्रकाश में आये है, जिनमे लड़की ने शादी करने का झांसा देकर बलात्कार करने का आरोप लगा दिया. सबसे बड़ी बात तो यह है कि कुछ महीने थ्रिल के नशे में गुजारने के बाद यह कैसा पता चल जाता है कि नशा सही चढ़ा है! जब यह नशा उतरता है तो शादी उसी तलाक के ढर्रे पर आ जाती है.
एक बात और. इस समय भी ज्यादा शादियाँ माता-पिता द्वारा तय की हुई ही हो रही हैं. क्या यह असफल हो रही हैं? नहीं ! तब फिर लिव-इन के थ्रिल का क्या मतलब.
आजकल एक्स्पोजर का नतीजा है कि युवा लडके लड़कियाँ विदेश में नौकरी करना पसंद करने लगे हैं. उन्हें लगता है कि इस प्रकार से वह विदेश में नौकरी करने का कारण ज्यादा सम्मानित हो जाते है. उन्हें अच्छी नौकरी और तनख्वाह भी मिल रही है. लेकिन, aआधुनिक युग की अर्थव्यवस्था कई कारणों पर टिकी हुई है. अब देखी न कोरोना वायरस ने भी अमेरिका की शक्तिशाली अर्थव्यवस्था की चूलें हिला दी है. वहाँ मंदी का ख़तरा मंडरा रहा है. सोचिये, ज्यादा कमाने और अच्छी नौकरी के लालच में विदेश गया बच्चा, आर्थिक मंदी के दौरान बिलकुल अकेला हो जाता है. उसे रोने के लिए माँ-पिता का कंधा तक नहीं मिलता

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