जस्टिस मुरलीधरन अंडर ट्रांसफ़र थे। उन्होंने क्यों इतने महत्वपूर्ण मामले
को सुना। उन्होंने इतना ही नहीं किया, पुलिस
व्यवस्था को हतोत्साहित करने की कोशिश भी की । आप कैसे अदालत मे वीडियो चला कर
आरोप लगा सकते हो और फैसला सुना सकते हैं? आरोप लगाना
जजों का काम नही है। अच्छा होता कि आप अदालत में सिनेमाघर लगाने के बजाय पुलिस
कमिश्नर से कहते कि निष्पक्ष जॉंच की जाये। मान लेते हैं कि आप दिल्ली की हिंसा से
बहुत आहत थे तो आपने यह क्यों नही कहा कि सुको को दो महीना पहले शाहीनबाग पर
निर्णय सुना देना चाहिये था? क्यों नही
कहा कि सुप्रीम कोर्ट सीएए की वैधानिकता पर तुरंत निर्णय लेने में असफल रहा?
क्यों नही कहा कि कॉंग्रेस की नेता सोनिया गॉंधी ने मुसलमानों को सड़क पर
उतर कर हिंसा करने के लिये उकसाया? क्यों नही
कहा कि राहुल गॉंधी और प्रियंकावाड्रा भी समान रूप से दोषी है?
क्यों नही इनकी स्पीच के वीडियो चलवाये? क्यों नहीं
कहा कि सलमान ख़ुर्शीद और मणिशंकर अय्यर के जामिया और शाहीनबाग के भाषण मुसलमानों
को उकसाने के लिये थे, जिनमें प्रधान मंत्री को गालियाँ दी गयी?
क्यों नही कहा कि अकबरुद्दीन ओवैसी और वारिस पठान के भाषण मुसलमानों को
दंगा करने के लिये उकसाने के लिये काफी थे? क्यों नहीं
कह कि आम आदमी पार्टी के विधायक और पार्षद दंगा कराने के लिये एसिड की बोतलें और
बम-पत्थर इकट्ठा कर रहे थे? क्यों नही कहा कि जाफराबाद में मुस्लिम
औरतों के सड़क बन्द कर देने के कारण दिल्ली की जनता के सब्र का बाँध टूट गया?
सवाल बहुत ले हैं मी लार्ड! अदालत में बैठ कर प्रवचन देने से बाज़ आईये।
आप क्यों कार में बैठे होने के बावजूद, बिना गनर के
उतरते तक नहीं?
जब तनाव अधिक होता है न तब गाता हूँ रोता नहीं पड़ोसी बोलते हैं- गा रहा है मस्ती में है तनाव उनको होता है मुझे तनाव नहीं होता।
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