मैं अपने ढेरों मित्रों की तरह अति विद्वान नहीं. बहुत मामूली बुद्धि वाला
हूँ. लेकिन प्रधान मंत्री के आज के सन्देश से मैंने यह अर्थ निकाला है कि उन्होंने
लॉक डाउन की वजह से १० दिनों से घरों में बंद, अपने
ईष्ट-मित्रों से न मिल पाने के लिए मज़बूर, करोड़ों
लोगों के एकाकीपन को महसूस करते हुए; उन गरीबों
को, जो दुर्भाग्य के अँधेरे में डूबे हुए है, संबल देने
के लिए अन्धकार में दिया जलाने का सन्देश दिया है. यानि अगर आपके आसपास के घरों की
बालकनी में ऐसा कोई दृश्य नज़र आएगा तो आप महसूस कर सकेंगे कि हम अकेले नहीं. आसपास
कुछ दूसरे लोग भी हैं. जैसा प्रधान मंत्री के २१ मार्च के संबोधन के बाद महसूस
किया गया था .इससे स्वाभाविक अकेलापन दूर होगा. कोरोना वायरस की बीमारी के भय से
दो चार हो रहा देश इस सन्देश से आशा की किरण देख सकता है. देश एक है का सन्देश भी
है इसमे.
बेशक आपको ऐसा नहीं लग रहा होगा. मैंने कहा न,
आप अतिरिक्त जीनियस हैं. मैं कम बुद्धि हूँ. मैंने जो समझा उसे लिखा. आपको
बताने के लिए नहीं. आप तो काफी खेले खाए और समझे है. मैंने यह अपने जैसे कम बुद्धि
मित्रों के लिये लिखा है. इसलिए हाथ जोड़ कर प्रार्थना है कि आप मेरी बात से बिलकुल
सहमत मत होइए (GO TO HELL नहीं कहना चाहूंगा) बेशक अन्धकार में डूबे
रहिए, पर मुझे डुबोने की कोशिश मत करियेगा. मैं हर
मुश्किल और खराब वक़्त के बीच आगे दूर आता अच्छा वक़्त देखता हूँ. आपको आपकी
नकारात्मकता मुबारक. आप डूबे रहें अँधेरे में.
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