कभी आप मुंबई, दिल्ली या अहमदाबाद में किसी अपने प्रदेश के व्यक्ति से बात कीजिये. वह आपको अपने संघर्ष के दिनों की याद दिलाएगा कि कैसे उसने संघर्ष किया. भूख झेली. इसके बाद यह मुकाम पाया. उसकी यह तकरीर आपको एक नामाकूल व्यक्ति साबित कर देगी, जो बिना संघर्ष किये कुछ बनना चाहता है, पाना चाहता है. लेकिन, उस समय तकरीर करता व्यक्ति यह भूल जाता है कि ऐसा कहते समय वह यह भी बता रहा था कि वह अपने प्रदेश में भूखा मर रहा था, कोई काम
नहीं था. या फिर वह अपनी निजी आकांक्षाओं यथा एक्टर, फिल्म राइटर, डायरेक्टर बनने की, पूरी करने के लिये यह संघर्ष कर रहा था. इसमे समाज या देश सेवा की कोई भवना नहीं थी. खालिस निजी स्वार्थ। यह व्यक्ति जब सफल हो जाता है, उसमे वह सब बुराइयां आ जाती है, जो बॉलीवुड में है. काला पैसा, ज्यादा पैदा लेकर कम आय दिखाना, कर बचाने के लिए फर्जी बिलिंग करना, आदि आदि.
ऐसे ही कुछ कथित संघर्षशील लोग,पिछले दो-तीन दिनों से वापस हो रहे हैं अपने प्रदेश कि वह मुंबई, दिल्ली या अहमदाबाद रह कर भूखें मारें क्या ? सरकार को कोस रहे हैं कि वह कुछ नहीं कर रही उनके लिए. चैनल इसका ढिंढोरा पीट रहे हैं.
मैं ऐसे लोगों से यह पूछना चाहूंगा कि तुम अपना प्रदेश छोड़ कर इन राज्यों में क्यों गए, अगर तुम भूखे नहीं मर रहे थे ? बड़े शहर की चकाचौंध का मज़ा लेने न ! अगर नहीं तो भूखा मरने के लिए वापस क्यों जा रहे हो ? वही रहते. इन सरकारों को आइना दिखाते कि ऐ सरकारों तुम निकम्मी हो ! हमारे लिए कुछ नहीं कर रही. लेकिंन, तुम बिलखते हुए वापस आ रहे हो. बहाना भूखों मरने का है. हो सकता है इसी बहाने फसल भी कट जाए.
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