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संदेश

नियंत्रण

सुबह सुबह घड़ी ने चीखते हुए कहा- उठो उठो, शायद तुम्हें कहीं जाना है। आज उसकी चीख से झल्लाया हुआ मैं बोला- ऐ घड़ी, तू मशीन होकर मुझे निर्देश देगी! घड़ी बोली- तुमने खुद ही तो सौंपा है अपना नियंत्रण मुझे।

भूकंप

इस शहर में जब आता है भूकंप निकल आते हैं लोग अपने अपने घरों से कुछ लोग इधर तो काफी लोग उधर भाग रहे होते हैं मगर भगदड़ नहीं होती यह क्योंकि लोग लूटने जा रहे होते हैं एक टूटी दुकान का सामान और ले जा रहे होते हैं सुरक्षित अपने ठिकाने में। तब कुछ ज़्यादा काँप रही होती है धरती भूकंप के बाद।

रोक न सकूँगा

प्रियतमा! उदास मत हो मेघ कुछ ज़्यादा घुमड़ आते हैं। बहाने लगते हैं भावनाओं के सैलाब नियंत्रण का बांध तोड़ जाते हैं। नहीं रोक सकूँगा तुम्हें बाहों में बह जाऊंगा तुम्हारे साथ गहराई तक तुम्हारी रिमझिम आँखों में। फिर जाऊंगा कैसे तुम्हारे अंतस में तुम्हें यूं उदास छोड़ कर रोक न सकूँगा खुद को तुम्हारे साथ रोने से इस बारिश की तरह।

बारिश में नाव

याद आ गया बचपन भीग गया तन मन बारिश  में। बादलों की तरह घर से निकल आना मेघ गर्जना संग चीखना चिल्लाना नंगे बदन सा मन भीग गया बारिश में। कागज़ की नाव का नाले में इतराना दूर तलक हम सबका बहते चले जाना अब तो बाल्कनी से देखते हैं बारिश में। अपनी नाव के संग दौड़ हम लगाते डूबे किसी की  नाव सभी खुश हो जाते कहाँ दोस्त, नाव कहाँ अकेले खड़े हम बारिश में।

किसान

मिट्टी को गोड़ कर घास को तोड़ कर खेत बनाता है किसान। खाद को मिलाता है खेत को निराता है श्रम का पसीना इसमे बहाता है बीज का रोपण  कर पौंध बनाता है किसान। सुबह उठ जाता है खेतों पर जाता है श्रम उसका फल जाये मन्नत मनाता है पौंधा खिलने के साथ खुश हो जाता है किसान। श्रम का प्रतीक है जीवन का गीत है आस्थाओं से अधिक पौरुष का मीत  है हर कौर के साथ याद हमे आता है किसान।

चुभन

कांटे अगर फूल होते धूप से मुरझा जाते, तेज़ हवा से बिखर जाते ज़मीन पर गिर कर पैरों की ठोकर पाते पर/कांटे- पूरी बहादुरी से धूप और हवा का मुकाबला करते हैं मुरझाते नहीं कभी ज़मीन पर नहीं गिरते/मसले नहीं जाते  लेकिन, इसके बावजूद  बहादूरों की प्रेरणा  कांटे बदनाम हैं क्योंकि, वह चुभते हैं।