बुधवार, 28 सितंबर 2011

हे राम


                    हे राम !!!
हे राम,
तुम वन गए
सीता को साथ लेकर.
सीता ने चौदह बरस तक
मिलन और विछोह झेला
लेकिन
जब तुम अयोध्या वापस आये,
तो सीता को
फिर से वन क्यूँ भेज दिया.
क्या पुरुषोत्तम का
उत्तम पौरुष यही है कि
वह अपनी स्त्री की
इच्छा न जाने?

अहिल्या सति थीं,
इसलिए
राम के चरण का स्पर्श पाकर
फिर से
पत्थर से नारी बन गयीं
लेकिन
रावण के बंदीगृह से छूटी सीता
राम का स्पर्श पाकर भी
पत्नी क्यूँ नहीं बन सकी.


मेरे चार वचन



मेरे चाहने वाले मेरी राहों पर कांटे बिखेरते  है
मैं बटोरते चलता हूँ कि कहीं उन्हे चुभे नहीं।
२.
अगर लंबाई पैमाना है तो लकीर सबसे लंबी है,
आदमी जितनी चाहे लंबी लकीर खींच सकता है।

३.
मुझे बौना समझ कर हंसों नहीं ऐ दोस्त,
मैं वामन बन कर तीनों लोक नाप सकता हूँ।

४.
उन्होने पिलाने का ठेका नहीं लिया है,
तभी तो लोग पीने को ठेके पर जाते हैं।
 

मंगलवार, 27 सितंबर 2011

मेरा अंदाज़


        मेरा अंदाज़
मेरी चाहत से कुछ नहीं होता,
तुम्हारे चाहने वाले बहुत से हैं।
तुम्हें वफाओं से फर्क नहीं पड़ता,
पर दुनिया में बेवफा बहुत से हैं।
तुम लाख न मानो, मानना पड़ेगा,
मेरे जैसे लोग कहाँ बहुत से हैं।
बेशक मेरे पास वह अंदाज़ नहीं,
पर बेअंदाज राजा यहाँ बहुत से हैं

हाइकु


हँसता सूर्य
राक्षस से पहाड़
हिम्मत मेरी  

२-
नदी की धार
गोरी की कमरिया
मुग्ध देखूं मैं.
३-
बहती हवा
ममता का आँचल
मेरा सुकून

४-
चुभती धूप
भीष्म की शर शैया
मैं हूँ बेचैन

५-
आ गयी रात
रो रहे हैं कुत्ते
बच्चे सो गए.

6-
शीत लहरी
पत्ते पीले हो गए
बुड्ढा मरेगा.

7-  
सूना आकाश
उड़ते चील कौव्वे
मेरी तमन्ना  

८-
काले बादल
विधवा रो रही है  
जल ही जल

९-  
प्रिय  न आये
शाम बीत रही है
आँखों में रात

१०-
रात आ गयी
जुगनू उड़ रहे
दिखती राह
१३.
दुल्हन आई  
आँगन में बौछार
बौराया मन .  

१४.
बौर आ गयी
बारात आ रही है
खुशी की बात .

सोमवार, 26 सितंबर 2011

समानता


                                       समानता
गरीब बच्चे को
अमीर बच्चे की
आधुनिक माँ में
अपनी माँ नज़र आती हैं.
क्यूंकि
उसकी माँ की तरह
अमीर बच्चे की आधुनिक माँ भी
अधनंगी नज़र आती है.

रविवार, 25 सितंबर 2011

बाबा दुल्हन और वह


पतझड़ में
याद आते हैं 
सूखे खड़खडाते पत्तों की तरह
खांसते बाबा .  

मेरी खिड़की से
झांकता सूरज
जैसे
झिझकती शर्माती दुल्हन.

मैंने उन्हें
पहली बार देखा
छत पर खड़े हुए
दूर कुछ देखते हुए
ढलते सूरज की रोशनी में
उनके भूरे बाल
गोरे चेहरे पर
सोना सा बिखेर रहे थे
मैं ललचाई आँखों से
सोना बटोरता रहा
तभी उनकी नज़र
मुझ पर पड़ी
आँखों में शर्म कौंधी
वह ओट में हो गए
इसके साथ ही बिखर गया
सांझ में सोना.


शनिवार, 24 सितंबर 2011

छह बीज


सुना है मेरे पड़ोस में
आंधी बड़ी आई थी.
धुल से अटे पड़े हैं,
मेरे घर के कमरे भी.

         -२-
संध्या
और श्याम का साथ
दोनों अँधेरे में
डूबते हैं साथ.

        -३-
अलसाई हसीना,
सुबह की अंगडाई
दोनों करेंगी तय
गली और फूटपाथ में
दिन भर का सफ़र .

        -४-
मैं
तपते सूरज के नीचे
कंक्रीट के जंगल में
डामर की सड़क के साथ
होता हूँ पसीना पसीना.

         -५-
जब
पीछे चलती परछाई
आगे  आकर
चलने लगती है,
मैं घबराकर
मुड़ कर देखता हूँ
शाम पीछे खडी है.

         -६-
रात की तरह
काली रंगत वाली माँ
पर दोनों ही
थपक कर सुलाती हैं-
ना!  

इकन्नी !

रात काफी  गहरी हो चली थी।  मैं पैदल ही घर की ओर चल  पड़ा।  यद्यपि, मेरी जेब में घर तक जाने  के लिए पर्याप्त पैसा था।  किन्तु, मैं पैदल ही क्य...