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संदेश

तुम्हारा पन्ना फिर भी

          तुम्हारा पन्ना उस दिन मैं यादों की किताब के पन्ने पलट रहा था. उसमे एक पृष्ठ तुम्हारा भी था. बेहद घिसा हुआ अक्षर धुंधले पड़ गए थे. पन्ना लगभग फटने को था. मगर इससे तुम यह मत समझना कि मैंने तुम्हारे पृष्ठ की उपेक्षा की. नहीं भाई, बल्कि मैंने तुम्हे बार बार खोला है और पढ़ा है.       फिर भी मैंने पाया कि जीवन के केवल दो सत्य हैं- जीना और मरना. मैंने यह भी पाया कि लोग मरना नहीं चाहते,   जीना चाहते हैं . पर जीते हैं मर मर के.

माँ की याद

                                                           माँ की याद कल मुझे यकायक अपनी माँ की याद आ गयी. मुझे ही नहीं घर में सभी को यानि पत्नी और बेटी को भी याद आई. वजह कुछ खास नहीं. हम लोग घूमने निकल रहे थे. .. ठहरिये, आप यह मत सोचना कि हम उन्हें अपने साथ ले जाना चाहते थे. नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं था. क्यूंकि वह अब इस दुनिया में नहीं रहीं. अगर होती भी तो भी हम साथ नहीं ले जाते. कभी ले भी नहीं गए थे. बड़ी चिढ पैदा करने वाली माँ थी वह. दिन भर बोलती रहती. यह ना करो, वह न करो. बेटी को रोकती कि अकेली मत जा, ज़माना बड़ा ख़राब है. बेटी चिढ जाती. नए जमाने की आधुनिक, ग्रेजुएट लड़की थी वह.  उसे टोका  टाकी बिलकुल पसंद नहीं थी. चिढ जाती. भुनभुनाते हुए उनके सामने से हट जाती. माँ खाने में भी मीन मेख नि...

पीठ

वह मुझे जानते थे, अच्छी तरह पहचानते  थे उस दिन उन्होने मुझे देखा पहचाना भी, फिर मुंह फेर कर दूसरों से बात करने लगे। फिर भी मैं खुश था। क्यूंकि, मतलबी यारों की पीठ ही अच्छी लगती है।

दस्तक

देखो, सामने वाला दरवाज़ा बंद है. तुम उसे खटखटाओ. आम तौर पर लोग बंद दरवाज़े नहीं खटखटाते क्यूंकि, अजनबी दरवाज़े नहीं खटखटाए जाते. इसलिए कि पता नहीं कैसे लोग हों बुरा मान जाएँ. लेकिन इस वज़ह से कहीं ज्यादा कि, हम अजनबियों से बात करना पसंद नहीं करते. लेकिन मैं, बंद दरवाज़े खटखटाता हूँ, पता नहीं, बंद दरवाज़े के पीछे के लोगों को मेरी ज़रुरत हो. मगर इससे कहीं ज्यादा, मैं नए लोगों को जान जाता हूँ. मैं उन्हें जितना दे सकता हूँ. उससे कहीं ज्यादा पाता हूँ. इसी लिए, बंद दरवाज़े खटखटाता हूँ.

काश

आसमान पर  ऊंचे, ऊंचे और बहुत  ऊंचे उड़ते हुए पंछियों को कोई कुछ नहीं कहता. मगर लोग मुझसे कहते हैं-  बहुत उड़ रहे हो, इतना ऊंचा न उड़ो  नहीं तो गिर जाओगे. जंगल में स्वछन्द विचरते कूदते फांदते पशुओं को कोई मना नहीं करता  पर लोग मुझसे क्यूँ कहते हैं इतना स्वछन्द क्यूँ विचरते हो अपनी ज़िम्मेदारी समझो, इतनी लापरवाही ठीक नहीं . ऐसे में  मैं सोचता हूँ- काश मैं खुले आसमान के नीचे जंगल में होता.

यह बड़े

               एक पार्क में छोटे बच्चे पार्क में खेलते हैं. उनके बड़े उनसे दूर बैठ कर, गपियाया करते हैं .  कभी कभी चिल्ला देते हैं- यह न करो, लड़ों नहीं, यह गन्दी बात है, मिटटी में क्यूँ लोट रहे हो ? आदि आदि, न जाने क्या क्या .  मुझे समझ में नहीं आता, यह बड़े दूर बैठ कर बच्चो को उपदेश क्यूँ देते हैं? उनकी तरह लड़ते हुए, मिटटी में लोटते और सब कुछ करते हुए खेलते क्यूँ नहीं ?