गंगा- कुछ क्षणिकाएँ
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बुधवार, 25 सितंबर 2013
अनुभूति 17 june 2013
शनिवार, 7 सितंबर 2013
खामोशी
जहां लोग
आपस में नहीं बोलते
वहाँ,
खामोशी बोलती है
चीखती हुई
इतनी, कि
कान बहरे हो जाते हैं
कुछ सुनाई नहीं पड़ता।
आपस में नहीं बोलते
वहाँ,
खामोशी बोलती है
चीखती हुई
इतनी, कि
कान बहरे हो जाते हैं
कुछ सुनाई नहीं पड़ता।
मंगलवार, 27 अगस्त 2013
जन्म लो कृष्ण !!!
हे कृष्ण !
जब तुम जन्म लेना
तब
मथुरा वृन्दावन तक न रहना
बाल रूप में
गरीबों की झोपड़ी में जाना
गंदी बस्ती में रहना और खाना
जहाँ
बच्चे माखन खाना तो दूर
उसका नाम तक नहीं जानते
रंग कैसा होता होगा
नहीं पहचानते
बड़े होकर
कंस का वध करने
केवल मथुरा न जाना
महंगाई, भ्रष्टाचार
अन्याय और अनाचार के कंस
सड़क से संसद तक हैं
नाश करने के लिए उनका
धर्म की हानि की
प्रतीक्षा मत करना
धर्म शेष ही कहाँ है !
तुमने
शिक्षा देने के लिए
नग्न नहाती गोपिकाओं के वस्त्र हरे थे
पर द्रौपदी की लाज भी बचाई थी
आज नकली कृष्ण बने लोग
वस्त्र हरण कर रहे हैं
और शकुनि बने द्रौपदी का
चीर हरण कर रहे हैं
तुमने बजाई होगी
सुख और शांति के लिए बांसुरी
मगर आज
जनता परेशां, बदहाल और भूखी है
राजा बजा रहे हैं
चैन की बांसुरी
क्या इस बार तुम आओगे
इस भारत को
कुरुक्षेत्र बनाओगे !
आ जाओ कृष्ण
जन्म लो कृष्ण
जन्म लो गीता के कृष्ण !!!!
रच दो एक और महाभारत
बना दो देश को
मेरा भारत महान !
जब तुम जन्म लेना
तब
मथुरा वृन्दावन तक न रहना
बाल रूप में
गरीबों की झोपड़ी में जाना
गंदी बस्ती में रहना और खाना
जहाँ
बच्चे माखन खाना तो दूर
उसका नाम तक नहीं जानते
रंग कैसा होता होगा
नहीं पहचानते
बड़े होकर
कंस का वध करने
केवल मथुरा न जाना
महंगाई, भ्रष्टाचार
अन्याय और अनाचार के कंस
सड़क से संसद तक हैं
नाश करने के लिए उनका
धर्म की हानि की
प्रतीक्षा मत करना
धर्म शेष ही कहाँ है !
तुमने
शिक्षा देने के लिए
नग्न नहाती गोपिकाओं के वस्त्र हरे थे
पर द्रौपदी की लाज भी बचाई थी
आज नकली कृष्ण बने लोग
वस्त्र हरण कर रहे हैं
और शकुनि बने द्रौपदी का
चीर हरण कर रहे हैं
तुमने बजाई होगी
सुख और शांति के लिए बांसुरी
मगर आज
जनता परेशां, बदहाल और भूखी है
राजा बजा रहे हैं
चैन की बांसुरी
क्या इस बार तुम आओगे
इस भारत को
कुरुक्षेत्र बनाओगे !
आ जाओ कृष्ण
जन्म लो कृष्ण
जन्म लो गीता के कृष्ण !!!!
रच दो एक और महाभारत
बना दो देश को
मेरा भारत महान !
रविवार, 18 अगस्त 2013
हाथ - पांच क्षण
किसी के मरने पर लोग
चाकू को दोष देते हैं
उसकी धार कुंद कर देते हैं
लेकिन, हाथ !
वह सदा हमारे साथ.
२ )
बनाने के लिए
घरौंदा
जुटते हैं दोनों हाथ
गिराने के लिए
घरौंदा
काफी है एक ही हाथ .
३)
चढते सूरज को
जोड़ते हैं दोनों हाथ
जलने से
कौन नहीं डरता
४)
माता पिता
दामाद को
थमा देते हैं
बेटी का हाथ
फिर नहीं देते
बेटी का साथ।
५)
पौंधा रोपने के लिए
हाथ सहेजते हैं
पौंधे को
पेड़ काटने के लिए
हाथ पकड़ते हैं
कुल्हाड़ी को !
चाकू को दोष देते हैं
उसकी धार कुंद कर देते हैं
लेकिन, हाथ !
वह सदा हमारे साथ.
२ )
बनाने के लिए
घरौंदा
जुटते हैं दोनों हाथ
गिराने के लिए
घरौंदा
काफी है एक ही हाथ .
३)
चढते सूरज को
जोड़ते हैं दोनों हाथ
जलने से
कौन नहीं डरता
४)
माता पिता
दामाद को
थमा देते हैं
बेटी का हाथ
फिर नहीं देते
बेटी का साथ।
५)
पौंधा रोपने के लिए
हाथ सहेजते हैं
पौंधे को
पेड़ काटने के लिए
हाथ पकड़ते हैं
कुल्हाड़ी को !
शुक्रवार, 16 अगस्त 2013
सान
कातिलों के बाजुओं की फिक्र नहीं मुझे,
हथियारों में उनके इतनी सान नहीं होती है।
डर लगता है उन बददुआओं के नश्तरों से मुझे
जिन बेबसों की कोई जुबान नहीं होती है।
हथियारों में उनके इतनी सान नहीं होती है।
डर लगता है उन बददुआओं के नश्तरों से मुझे
जिन बेबसों की कोई जुबान नहीं होती है।
पांच क्षणिकाएं
किसी ने देखा नहीं
कोई देखता भी नहीं
लेकिन देखो तो
तुम्हारी चौपाल में
कैसे कैसे लोग
कैसे कैसे फैसले लेते हैं
लोकतंत्र हत्यारे
अपराधियों को बचाते हैं
खुद को लोक सभा कहते हैं.
(२)
सेनाएं
कभी नहीं हारतीं
हारते हैं वह लोग
जो डरते हैं
मौत से।
(३)
प्रधानमंत्री ने
आज़ाद कर दिया
रस्सी खींच कर
हवा में
झंडे को।
(४)
मांसाहारी होते हैं
वो
जो लोगों को
समझते हैं
भेड़ बकरी।
(5)
आम तौर पर
मरते हुए लोग
आँख खोल कर
इसलिए नहीं मरते, कि,
उन्हे मोह है रहता है
इस दुनिया का !
बल्कि,
खुली रहती है उनकी आँखें
इस आश्चर्य में कि
इतने सारे लोग
फिर भी ज़िंदा रहेंगे।
जो शाम निकले थे सुबह की किरण ढूँढने
रात सो कर सुबह के उजाले में खो गए।
जिन्होंने जलाये रात जाग जाग कर सूरज
हजारों ख्वाबों हो गये.
कोई देखता भी नहीं
लेकिन देखो तो
तुम्हारी चौपाल में
कैसे कैसे लोग
कैसे कैसे फैसले लेते हैं
लोकतंत्र हत्यारे
अपराधियों को बचाते हैं
खुद को लोक सभा कहते हैं.
(२)
सेनाएं
कभी नहीं हारतीं
हारते हैं वह लोग
जो डरते हैं
मौत से।
(३)
प्रधानमंत्री ने
आज़ाद कर दिया
रस्सी खींच कर
हवा में
झंडे को।
(४)
मांसाहारी होते हैं
वो
जो लोगों को
समझते हैं
भेड़ बकरी।
(5)
आम तौर पर
मरते हुए लोग
आँख खोल कर
इसलिए नहीं मरते, कि,
उन्हे मोह है रहता है
इस दुनिया का !
बल्कि,
खुली रहती है उनकी आँखें
इस आश्चर्य में कि
इतने सारे लोग
फिर भी ज़िंदा रहेंगे।
जो शाम निकले थे सुबह की किरण ढूँढने
रात सो कर सुबह के उजाले में खो गए।
जिन्होंने जलाये रात जाग जाग कर सूरज
हजारों ख्वाबों हो गये.
सोमवार, 29 जुलाई 2013
मूंछ नहीं पूंछ
अफसोस !
मेरे एक पूंछ नहीं
मूंछ है
पूंछ होती तो हिला लेता
भ्रष्टाचार के महाकुंभ में
कुछ कमा लेता
मूंछ मूंछ होती है
आज के जमाने में
पूछ नहीं होती है
तभी तो
तमाम मूंछ वाले
मूंछे कटा कर
दुम बना कर
सत्ता के आगे पीछे
हिला रहे हैं
भ्रष्टाचार के कुम्भ में जा कर
पाप नाशनी गंगा में नहा कर
हर हर चिल्ला रहे हैं
जनता की कमाई हर कर
खूब कमा रहे हैं।
मेरे एक पूंछ नहीं
मूंछ है
पूंछ होती तो हिला लेता
भ्रष्टाचार के महाकुंभ में
कुछ कमा लेता
मूंछ मूंछ होती है
आज के जमाने में
पूछ नहीं होती है
तभी तो
तमाम मूंछ वाले
मूंछे कटा कर
दुम बना कर
सत्ता के आगे पीछे
हिला रहे हैं
भ्रष्टाचार के कुम्भ में जा कर
पाप नाशनी गंगा में नहा कर
हर हर चिल्ला रहे हैं
जनता की कमाई हर कर
खूब कमा रहे हैं।
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