मैंने
पृष्ठ पर पृष्ठ
भर दिये थे यह सोच कर
कि तुम पढ़ोगे
मेरी भावनाएं समझोगे
लेकिन, तुम मेरी
लिखावट में उलझे रहे
ढूंढते रहे व्याकरण की त्रुटियाँ
ठीक करते रहे मात्राएँ
भाँपते रहे,
खोजते रहे,
और लाते रहे
अपने-मेरे बीच
पंक्तियों के बीच के अर्थ ।
All matter in this blog (unless mentioned otherwise) is the sole intellectual property of Mr Rajendra Kandpal and is protected under the international and federal copyright laws. Any form of reproduction of this text (as a whole or in part) without the written consent of Mr Kandpal will amount to legal action under relevant copyright laws. For publication purposes, contact Mr Rajendra Kandpal at: rajendrakandpal@gmail.com with a subject line: Publication of blog
सोमवार, 28 जनवरी 2013
शुक्रवार, 25 जनवरी 2013
राष्ट्रीय ध्वज
गणतंत्र दिवस पर
राष्ट्र ध्वज
आसमान पर लहराता है
फहर फहर कर
हवा में गोते लगाता है
समुद्र की लहरों सा
उन्मुक्त नज़र आता है
यह राष्ट्रीय ध्वज
हम भारत गणतंत्र के गण
हर 26 जनवरी फहराते हैं !
गलत,
हम ध्वज के साथ
फहराये कब !
ध्वज की उन्मुक्तता के साथ
आकाश में लहराये कब
हमने कहाँ अनुभव की
ध्वज की प्रसन्नता
कहाँ महसूस की
स्वतंत्र वायु की प्रफुल्लता
हम तो बस गण है
जन गण मन गाने को
और फिर अगले साल तक
सो जाने को।
राष्ट्र ध्वज
आसमान पर लहराता है
फहर फहर कर
हवा में गोते लगाता है
समुद्र की लहरों सा
उन्मुक्त नज़र आता है
यह राष्ट्रीय ध्वज
हम भारत गणतंत्र के गण
हर 26 जनवरी फहराते हैं !
गलत,
हम ध्वज के साथ
फहराये कब !
ध्वज की उन्मुक्तता के साथ
आकाश में लहराये कब
हमने कहाँ अनुभव की
ध्वज की प्रसन्नता
कहाँ महसूस की
स्वतंत्र वायु की प्रफुल्लता
हम तो बस गण है
जन गण मन गाने को
और फिर अगले साल तक
सो जाने को।
रविवार, 20 जनवरी 2013
बुधिया की दौड़
बुधिया इतनी तेज़
कैसे दौड़ लेता है?
आसान है इसे समझना
दस किलोमीटर दूर स्कूल में
समय पर पहुँचने के लिए
उसे दौड़ना पड़ता था।
पिता को खाना पहुंचाने के बाद ही
बुधिया को खाना मिल सकता था
इसलिए
खेत तक जाने और आने के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ता था।
पिता मर गए
खेत बिक गए
बुधिया आठ के बाद पढ़ नहीं सका
शहर आ गया
सरकारी नौकरी के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ा
सरकारी नौकरी नहीं मिली
सो, नौकरी करने लगा
चाय की दुकान पर
झुग्गी से कई किलोमीटर दूर
दुकान तक पहुँचने के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ता था।
जिसकी ज़िंदगी में इतनी दौड़ हो
सामने भूख हो
वह बुधिया
तेज़ तो दौड़ेगा ही।
कैसे दौड़ लेता है?
आसान है इसे समझना
दस किलोमीटर दूर स्कूल में
समय पर पहुँचने के लिए
उसे दौड़ना पड़ता था।
पिता को खाना पहुंचाने के बाद ही
बुधिया को खाना मिल सकता था
इसलिए
खेत तक जाने और आने के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ता था।
पिता मर गए
खेत बिक गए
बुधिया आठ के बाद पढ़ नहीं सका
शहर आ गया
सरकारी नौकरी के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ा
सरकारी नौकरी नहीं मिली
सो, नौकरी करने लगा
चाय की दुकान पर
झुग्गी से कई किलोमीटर दूर
दुकान तक पहुँचने के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ता था।
जिसकी ज़िंदगी में इतनी दौड़ हो
सामने भूख हो
वह बुधिया
तेज़ तो दौड़ेगा ही।
शनिवार, 19 जनवरी 2013
खालीपन जहर और दोष
पसर जाता है
हम लोगों के बीच
अनायास इतना खालीपन
कि,
सहज जगह पा जाती हैं
कोंक्रीट की दीवारें।
जहर
जीने वालों को बार बार
पीना पड़ता है जहर
मरने वाले क्या खाक
नीलकंठ बन पाते हैं।
दोष
जो
साथ चलना नहीं चाहते
वह
अपनी चप्पलों को दोष देते हैं।
हम लोगों के बीच
अनायास इतना खालीपन
कि,
सहज जगह पा जाती हैं
कोंक्रीट की दीवारें।
जहर
जीने वालों को बार बार
पीना पड़ता है जहर
मरने वाले क्या खाक
नीलकंठ बन पाते हैं।
दोष
जो
साथ चलना नहीं चाहते
वह
अपनी चप्पलों को दोष देते हैं।
बुधवार, 16 जनवरी 2013
बेटी पैदा हुई
उदास थे पिता
सिसक रही माँ
बेटी पैदा हुई।
मिठाई कहाँ
बधाई कहाँ
घर में शोक फैला
यहाँ वहाँ।
औरत के होते हुए
यह क्या बात हुई।
बेटी पैदा हुई।
वंश की चिंता
सब की चिंता
उपेक्षित बेटी को
कौन कहाँ गिनता।
पढे लिखे समाज में
जहालियत की बात हुई ।
बेटी पैदा हुई।
वंश चलाने को
बेटे की आस में
माँ फिर माँ बनी
बेटे के प्रयास में।
भूंखों की फौज खड़ी
नासमझी की बात हुई।
बेटी पैदा हुई।
बेटे की माँ ने
बेटी की माँ ने
भ्रूण हत्या की
बेटी के बहाने।
कैसे होगा बेटा अगर
बेटी की न जात हुई।
सिसक रही माँ
बेटी पैदा हुई।
मिठाई कहाँ
बधाई कहाँ
घर में शोक फैला
यहाँ वहाँ।
औरत के होते हुए
यह क्या बात हुई।
बेटी पैदा हुई।
वंश की चिंता
सब की चिंता
उपेक्षित बेटी को
कौन कहाँ गिनता।
पढे लिखे समाज में
जहालियत की बात हुई ।
बेटी पैदा हुई।
वंश चलाने को
बेटे की आस में
माँ फिर माँ बनी
बेटे के प्रयास में।
भूंखों की फौज खड़ी
नासमझी की बात हुई।
बेटी पैदा हुई।
बेटे की माँ ने
बेटी की माँ ने
भ्रूण हत्या की
बेटी के बहाने।
कैसे होगा बेटा अगर
बेटी की न जात हुई।
शनिवार, 12 जनवरी 2013
हवा
तुम यदि
हवा हो तो
मुझे अनुभव करो
मुझे अपना अनुभव कराओ
किन्तु तुम तो
हवा की तरह
गुज़र जाती हो
तुम्हारा एहसास तक
शेष नहीं रहता।
हवा हो तो
मुझे अनुभव करो
मुझे अपना अनुभव कराओ
किन्तु तुम तो
हवा की तरह
गुज़र जाती हो
तुम्हारा एहसास तक
शेष नहीं रहता।
बुधवार, 9 जनवरी 2013
खिचड़ी
मकर संक्रांति के दिन जब,
मुन्ना खिचड़ी खा रहा होगा
चुन्ना की माँ भी खिचड़ी बनाएगी ।
लेकिन खिचड़ी खिचड़ी में फर्क होगा
मुन्ना की खिचड़ी में घी होगा
चुन्ना की खिचड़ी सूखी होगी,
थोड़ी कच्ची भी।
मुन्ना की खिचड़ी से खुशबू निकल रही होगी
चुन्ना की खिचड़ी से गरम भाप तक नदारद होगी ।
खुशबू, वह भी देशी घी की खुशबू
गरीबी और अमीरी के भेद के बावजूद
गरीब बच्चे और अमीर बच्चे में
फर्क नहीं करती
वह समान रूप से जाती है दोनों के नथुनों में
अलबत्ता लालच की मात्र ज़्यादा और कम ज़रूर होती है
चुन्ना ज़्यादा ललचा रहा है
क्योंकि,
मुन्ना की थाली में जो घी है
वह चुन्ना की थाली में नहीं
वह उसे
खाने की बात दूर छू तक नहीं सकता ।
पर एक चीज़ होती है भूख
जो अमीर बच्चे और गरीब बच्चे में
समान होती है, समान रूप से सताती है
वह जब लगेगी, तब
मुन्ना घी के साथ
और चुन्ना घी की खुशबू के साथ
ज़रूर खाएगा खिचड़ी।
मुन्ना खिचड़ी खा रहा होगा
चुन्ना की माँ भी खिचड़ी बनाएगी ।
लेकिन खिचड़ी खिचड़ी में फर्क होगा
मुन्ना की खिचड़ी में घी होगा
चुन्ना की खिचड़ी सूखी होगी,
थोड़ी कच्ची भी।
मुन्ना की खिचड़ी से खुशबू निकल रही होगी
चुन्ना की खिचड़ी से गरम भाप तक नदारद होगी ।
खुशबू, वह भी देशी घी की खुशबू
गरीबी और अमीरी के भेद के बावजूद
गरीब बच्चे और अमीर बच्चे में
फर्क नहीं करती
वह समान रूप से जाती है दोनों के नथुनों में
अलबत्ता लालच की मात्र ज़्यादा और कम ज़रूर होती है
चुन्ना ज़्यादा ललचा रहा है
क्योंकि,
मुन्ना की थाली में जो घी है
वह चुन्ना की थाली में नहीं
वह उसे
खाने की बात दूर छू तक नहीं सकता ।
पर एक चीज़ होती है भूख
जो अमीर बच्चे और गरीब बच्चे में
समान होती है, समान रूप से सताती है
वह जब लगेगी, तब
मुन्ना घी के साथ
और चुन्ना घी की खुशबू के साथ
ज़रूर खाएगा खिचड़ी।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !
जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा। सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...

-
१ जुलाई १९५३। भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न सन्दर्भ। किसी के लिए यह मात्र एक तिथि माह या सन। संभव है कि कई लोग इस तिथि की महत्वपूर्ण घटनाक्र...
-
जब तनाव अधिक होता है न तब गाता हूँ रोता नहीं पड़ोसी बोलते हैं- गा रहा है मस्ती में है तनाव उनको होता है मुझे तनाव नहीं होता।
-
19 जून 2023। यह वह दिन है, जिस दिन मैं एक कर्ज से उबर गया। यह वह कर्ज था, जो मुझ पर जबरन लादा गया था। इस कर्ज को न मैंने माँगा, न कभी स्व...