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संदेश

नपुंसक

मैं जन्मना न ब्राह्मण हूँ न क्षत्रिय हूँ, न वैश्य न ही ठाकुर हूँ। मैं जन्मना नपुंसक हूँ क्यूंकि मेरे पैदा होने के बाद नाल काटने से पहले दाई ने पैसे धरवा लिए थे यानि मेरी ईमानदारी की नाल तो सबसे पहले काट दी गयी थी।

हॅप्पी बर्थड़े

जन्मदिन पर खूब सजावट की गयी दोस्त पड़ोसी बुलाये गए गुल गपाड़ा मचा केक काटा गया खाया कम गया, चेहरों पर ज़्यादा लिपटाया गया देर तक नाचते रहे सब फिर पार्टी के बाद बचा खाना और केक कौन खाता बाहर फेंक दिया गया सोने जा रहे थे सब कि बाहर तेज़ शोर मचा झांक कर देखा सामने फूटपाथ के भिखारी फेंका हुआ केक और खाना खा रहे थे हमारी तरह चेहरे पर लगा रहे थे लेकिन साथ ही पोंछ कर खाये भी जा रहे थे। माजरा समझ में नहीं आया था कि तभी ज़ोर का शोर उठा- हॅप्पी बर्थ डे टु यू !

ओ प्रधानमंत्री

ऐ प्रधानमंत्री तुम मुस्कराते नहीं तुम हिन्दी नहीं बोल पाते तुम अपने एसी दफ्तर से निकल कर कभी गाँव शहर नहीं घूमे तुम कार से उतर कर पैदल नहीं चले तुमने कभी किसी बनिए की दुकान से सामान नहीं खरीदा कभी किसी सब्जी वाले से मोलतोल नहीं किया तुमने कभी कीरोसिन के लिए लाइन नहीं लगाई तुम कैसे प्रधानमंत्री हो ! जो अपने आम जन की भाषा नहीं जानता वह उसके दुख दर्द किस भाषा में समझेगा जिसने ज़मीन पर पाँव नहीं रखा वह चटकती धूप की तपन टूटी सड़कों में भरे गंदे पानी की छींट बजबजाते नाले की दुर्गंध  कैसे महसूस कर सकेगा तुम बनिए की दुकान गए नहीं तो महंगाई का मर्म क्या समझोगे तुमने सब्जी वाले से मोलभाव नहीं किया तो कैसे जानोगे कि अब शहर के आस पास सब्जी उगाने के लिए ज़मीन ही नहीं सारी जमीने  सेज़ (एसईज़ेड) की सेज चढ़ गईं तुम कैसे जानोगे कि राशन की दुकान पर अब कीरोसिन बिकता नहीं ब्लैक  होता है ओह प्रधानमंत्री !! शायद अपनी इसी गैर जानकारी के दुख से तुम मुसकुराते नहीं।

क्यूँ नहीं बदलती हमारी मानसिकता ?

यह छोटी खबर लखनऊ से है। लखनऊ के जिलाधिकारी के आवास के सामने मर्सिडीज स्पोर्ट्स कार  पर सवार  एक रईसजादे ने एक मोटर साइकल सवार को इसलिए गोली मार दी कि उसने कार को पास नहीं दिया था।  उस रईसजादे की गिरफ्तारी के बाद पता चला कि वह रईसज़ादा उस दिन अपने महिला मित्र के साथ एक रेस्तरां में गया था। वहाँ एक मोटर साइकल से आए लड़के ने लड़की से छेड़खानी की। जब लड़का लड़की बाहर आकर अपनी कार से जा रहे थे तो मोटर साइकल सवार युवक ने कार का पीछ किया और फिर लड़की पर भद्दे कमेंट्स किए। इस पर नाराज़ रईसजादे ने मोटर साइकल को ओवरटेक कर पहले सवार की पिटाई की फिर फायर झोंक दिया। इस खबर से एक्शन थ्रिलर फिल्म निर्माताओं को सीन क्रिएट करने की खाद मिल सकती है। चाहे तो वह इसका उपयोग कर लें। इस खबर का दूसरा पहलू भी है। यह आधुनिक होते और पाश्चात्य सभ्यता तेज़ी से अपनाते लखनऊ की त्रासदी भी है। अब लखनऊ के माल्स में जवान लड़के लड़कियां हाथों और कमर में हाथ डाले घूमने लगे है, होटलों और रेस्तरोन में खाने लगे हैं। लेकिन ब्रांडेड कपड़े पहने लखनऊ के युवाओं...

सावन ( saawan )

रिमझिम सावन भीगे आँगन तन मन मेरा। । ताल तलैया ता ता थईया गिर कर नाचे बूंद। पात पात पर बात बात पर बच्चे थिरके झूम। मोद मनाए गीत सुनाये तन मन मेरा ।। खेत तर गए डब डब भर गए क्यों भाई साथी। हलधर आओ खेत निराओ सब मिल साथी। लहके बहके चटके मटके तन मन मेरा । । बीज उगेंगे पौंध बनेंगे धरा से झाँके  । फसल उगेगी बरस उठेगी कृषक की आँखें । घिर घिर आवन सिहरत सावन तन मन मेरा।

पिता (pita)

पिता के मायने सबके लिए अलग अलग होते हैं किसी के लिए फादर है किसी के लिए पा या डेड़ी है यह अपनी भाषा में पिता समझने के शब्द है ... पर पिता को समझना है तो पिता की भाषा समझो जो केवल व्यक्त होती है अपने बच्चे को देखती चमकदार आँखों से बच्चे को उठाए हाथों के स्पर्श से बीमार पड़ने पर रात रात जागती आँखों के उनींदेपन से बच्चे की परवरिश करने की तन्मयता से बच्चे के भविष्य में अपना भविष्य खोजती बेचैनी से जिसे आम तौर पर बच्चा देख नहीं पाता इसलिए अपनी भाषा में कहता है- मेरे फादर थे, मेरे पा थे मेरे डैडी थे।

गाय

एक शहर की वीरान और साफ सुथरी गली में एक भूखी गाय घूम रही है दोनों ओर घरों के बावजूद वीरानी है क्यूंकि, घर के पुरुष ऑफिस चले गए हैं और बच्चे स्कूल  कामकाजी महिलायें भी निकल गयी हैं घर में रह गए हैं बूढ़े और निकम्मे बूढ़े  सो गए हैं उन्हे इससे मतलब नहीं कि कोई गाय भूखी घूम रही है निकम्मों के पास देने का कोई अधिकार नहीं होता गाय को चाह है किसी बड़े से टुकड़े की चाहे वह टुकड़ा रोटी का हो, दफ्ती का या कागज़ का पॉलिथीन भी चल जाएगी, अगर कुछ न मिले तो । मगर गाय को नहीं मालूम कि, शहर अब साफ सुथरे रहने लगे हैं, गलियाँ बिल्कुल गंदगी रहित हैं कूड़ा नगर पालिका वाले उठा ले जाते हैं बासी खाना भिखारी या घर में काम करें वाले नौकर गाय सोच रही है- कभी इस शहर में, शहर की इस गंदी गली में बेशक पीठ पर कुछ डंडे पड़ते थे पर मुंह मारने को इतना कुछ मिल जाता था कि पेट भर जाता था पीठ पर पड़े डंडों का दर्द नहीं होता था।