जन्मदिन पर
खूब सजावट की गयी
दोस्त पड़ोसी बुलाये गए
गुल गपाड़ा मचा
केक काटा गया
खाया कम गया,
चेहरों पर ज़्यादा लिपटाया गया
देर तक नाचते रहे सब
फिर पार्टी के बाद
बचा खाना और केक कौन खाता
बाहर फेंक दिया गया
सोने जा रहे थे सब कि
बाहर तेज़ शोर मचा
झांक कर देखा
सामने फूटपाथ के भिखारी
फेंका हुआ केक और खाना खा रहे थे
हमारी तरह चेहरे पर लगा रहे थे
लेकिन साथ ही पोंछ कर खाये भी जा रहे थे।
माजरा समझ में नहीं आया था
कि तभी ज़ोर का शोर उठा-
हॅप्पी बर्थ डे टु यू !
खूब सजावट की गयी
दोस्त पड़ोसी बुलाये गए
गुल गपाड़ा मचा
केक काटा गया
खाया कम गया,
चेहरों पर ज़्यादा लिपटाया गया
देर तक नाचते रहे सब
फिर पार्टी के बाद
बचा खाना और केक कौन खाता
बाहर फेंक दिया गया
सोने जा रहे थे सब कि
बाहर तेज़ शोर मचा
झांक कर देखा
सामने फूटपाथ के भिखारी
फेंका हुआ केक और खाना खा रहे थे
हमारी तरह चेहरे पर लगा रहे थे
लेकिन साथ ही पोंछ कर खाये भी जा रहे थे।
माजरा समझ में नहीं आया था
कि तभी ज़ोर का शोर उठा-
हॅप्पी बर्थ डे टु यू !
राजेंदर जी,आपकी यह कविता आज भी उस पूंजी वाद और गरीबी की हद पर कटाक्ष है.पर समाज का यह रूप कब बदलेगा .आखिर वो सुबह कब आयगी ?!मालुम नहीं आज आप अपने जन्मदिवस पर इस प्रकार की टिपरी की अपेक्षा न कर रहे हो पर इक यह सच हे की आज आपके जन्मदिवस पर ढेर सी बधाई के साथ यह आशा करू की कोई भी जन इस देश में भूखा न सोये .मंजुल !
जवाब देंहटाएंkitna sunder katakksh hai .aapne bahut sunder tarike se apni baat kahi
जवाब देंहटाएंaapko janmdin ki bhaut bahut shubhkamnayen
saader
rachana