रविवार, 1 जुलाई 2012

हॅप्पी बर्थड़े

जन्मदिन पर
खूब सजावट की गयी
दोस्त पड़ोसी बुलाये गए
गुल गपाड़ा मचा
केक काटा गया
खाया कम गया,
चेहरों पर ज़्यादा लिपटाया गया
देर तक नाचते रहे सब
फिर पार्टी के बाद
बचा खाना और केक कौन खाता
बाहर फेंक दिया गया
सोने जा रहे थे सब कि
बाहर तेज़ शोर मचा
झांक कर देखा
सामने फूटपाथ के भिखारी
फेंका हुआ केक और खाना खा रहे थे
हमारी तरह चेहरे पर लगा रहे थे
लेकिन साथ ही पोंछ कर खाये भी जा रहे थे।
माजरा समझ में नहीं आया था
कि तभी ज़ोर का शोर उठा-
हॅप्पी बर्थ डे टु यू !

2 टिप्‍पणियां:

  1. राजेंदर जी,आपकी यह कविता आज भी उस पूंजी वाद और गरीबी की हद पर कटाक्ष है.पर समाज का यह रूप कब बदलेगा .आखिर वो सुबह कब आयगी ?!मालुम नहीं आज आप अपने जन्मदिवस पर इस प्रकार की टिपरी की अपेक्षा न कर रहे हो पर इक यह सच हे की आज आपके जन्मदिवस पर ढेर सी बधाई के साथ यह आशा करू की कोई भी जन इस देश में भूखा न सोये .मंजुल !

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  2. kitna sunder katakksh hai .aapne bahut sunder tarike se apni baat kahi
    aapko janmdin ki bhaut bahut shubhkamnayen
    saader
    rachana

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