सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सावन ( saawan )

रिमझिम सावन भीगे आँगन तन मन मेरा। । ताल तलैया ता ता थईया गिर कर नाचे बूंद। पात पात पर बात बात पर बच्चे थिरके झूम। मोद मनाए गीत सुनाये तन मन मेरा ।। खेत तर गए डब डब भर गए क्यों भाई साथी। हलधर आओ खेत निराओ सब मिल साथी। लहके बहके चटके मटके तन मन मेरा । । बीज उगेंगे पौंध बनेंगे धरा से झाँके  । फसल उगेगी बरस उठेगी कृषक की आँखें । घिर घिर आवन सिहरत सावन तन मन मेरा।

पिता (pita)

पिता के मायने सबके लिए अलग अलग होते हैं किसी के लिए फादर है किसी के लिए पा या डेड़ी है यह अपनी भाषा में पिता समझने के शब्द है ... पर पिता को समझना है तो पिता की भाषा समझो जो केवल व्यक्त होती है अपने बच्चे को देखती चमकदार आँखों से बच्चे को उठाए हाथों के स्पर्श से बीमार पड़ने पर रात रात जागती आँखों के उनींदेपन से बच्चे की परवरिश करने की तन्मयता से बच्चे के भविष्य में अपना भविष्य खोजती बेचैनी से जिसे आम तौर पर बच्चा देख नहीं पाता इसलिए अपनी भाषा में कहता है- मेरे फादर थे, मेरे पा थे मेरे डैडी थे।

गाय

एक शहर की वीरान और साफ सुथरी गली में एक भूखी गाय घूम रही है दोनों ओर घरों के बावजूद वीरानी है क्यूंकि, घर के पुरुष ऑफिस चले गए हैं और बच्चे स्कूल  कामकाजी महिलायें भी निकल गयी हैं घर में रह गए हैं बूढ़े और निकम्मे बूढ़े  सो गए हैं उन्हे इससे मतलब नहीं कि कोई गाय भूखी घूम रही है निकम्मों के पास देने का कोई अधिकार नहीं होता गाय को चाह है किसी बड़े से टुकड़े की चाहे वह टुकड़ा रोटी का हो, दफ्ती का या कागज़ का पॉलिथीन भी चल जाएगी, अगर कुछ न मिले तो । मगर गाय को नहीं मालूम कि, शहर अब साफ सुथरे रहने लगे हैं, गलियाँ बिल्कुल गंदगी रहित हैं कूड़ा नगर पालिका वाले उठा ले जाते हैं बासी खाना भिखारी या घर में काम करें वाले नौकर गाय सोच रही है- कभी इस शहर में, शहर की इस गंदी गली में बेशक पीठ पर कुछ डंडे पड़ते थे पर मुंह मारने को इतना कुछ मिल जाता था कि पेट भर जाता था पीठ पर पड़े डंडों का दर्द नहीं होता था।

काफिर (qaafir)

जागी हुई आँखों से जैसे कोई ख्वाब देखा है, वीराने रेगिस्तानों में प्यासे ने आब देखा है। बेशक नज़र आती हो जमाने को बेहयाई मैंने उन्ही आंखो में शरमों लिहाज देखा है। नशा ए रम चूर करता होगा तुझे जमाने मैंने तो रम के ही अपना राम देखा है। मजहब के नाम पर लड़ते हैं काफिर से मैंने बुर्ज ए खुदा में अपना भगवान देखा है।

कन्या भ्रूण का विलाप (kanya bhroon ka vilaap)

वह उसे गंदे बदबूदार कूड़े में खून से सनी हुई ज़िंदगी पड़ी थी। दूर खड़े ढेरो लोग नाक से कपड़ा सटाये तमाशा देख रहे थे। कुछ कमेंट्स कर रहे थे खास कर औरते- कौन थी वह निर्मोही! जिसने बहा दिया इस प्रकार अपनी कोख के टुकड़े को नर्क में जाएगी वह दुष्ट ! बोल सकती अगर वह अब निष्प्राण हो चुकी ज़िंदगी तो शायद बोलती- उम्र जीने से पहले मृत्यु दंड पा चुकी हूँ मैं भोग रही हूँ, कोख से निकाल फेंक कर कूड़े का नर्क क्या मुझे हक़ नहीं था माँ की कोख में कुछ दिन रहने का क्यों नहीं मंजूर थी मेरी ज़िंदगी जीवांदायिनी माँ को ! क्या इसलिए कि मैं कन्या थी ? या इसलिए कि मैं उसका पाप थी? लेकिन कबसे पाप हो गया कोई जीवन और कोई कन्या?

पत्नी (patni)

पत्नी मैं तुझसे प्रेम करता हूँ। क्यूंकि, तू भी ढाई अक्षर की है और मेरा प्रेम भी। 2- पत्नी पति का पतन होने से बचाती हैं क्यूंकि, वह हमेशा कहती है- पतन-नी । 3- ढाई अक्षर वाली पत्नी ढाई अक्षर के बच्चों-  पुत्र और पुत्री को ढाई अक्षर का जन्म देती हैं। 4- शादी के मंत्रों में शादी करने वाले पंडित में 'अं' का उच्चार होता है इनके जरिये नारी और पुरुष मिलकर एक होते हैं। लेकिन ज्योही इन दोनों के बीच अहंकार का उच्चार होता है एक से दो हो जाते हैं।  5- मैंने उसे सात  फेरे लेकर पत्नी नहीं बनाया था। बल्कि साथ फेरे लेकर सात जन्मों का साथी बनाया था।

अनुभव (anubhav)

दादा जी समझाते थे अनुभव मिलना ज़िंदगी के लिए बहुत ज़रूरी है हम उससे कुछ सीखते हैं ज़िन्दगी आसान हो जाती है शायद दादाजी को अनुभव नहीं हुआ था या उन्होंने मिले अनुभवों से कुछ सीखा न था एक दिन पिताजी उन्हें छोड़ कर चले गए दादाजी अकेले रह गए मैंने देखे थे हमें जाते देख रहे दादाजी के आंसू मुझे याद आ रही है दादाजी की सीख लेकिन समझ नहीं पा रहा हूँ पिताजी से मिले इस अनुभव से मैं क्या सीख लूं?