शनिवार, 28 मार्च 2020

कोरोना वायरस के बहाने भूखों की अपने प्रदेश वापसी ?

कभी आप मुंबई, दिल्ली या अहमदाबाद में किसी अपने प्रदेश के व्यक्ति से बात कीजिये. वह आपको अपने संघर्ष के दिनों की याद दिलाएगा कि कैसे उसने संघर्ष किया. भूख झेली. इसके बाद यह मुकाम पाया. उसकी यह तकरीर आपको एक नामाकूल व्यक्ति साबित कर देगी, जो बिना संघर्ष किये कुछ बनना चाहता है, पाना चाहता है. लेकिन, उस समय तकरीर करता व्यक्ति यह भूल जाता है कि ऐसा कहते समय वह यह भी बता रहा था कि वह अपने प्रदेश में भूखा मर रहा था, कोई काम नहीं था. या फिर वह अपनी निजी आकांक्षाओं यथा एक्टर, फिल्म राइटर, डायरेक्टर बनने की, पूरी करने के लिये यह संघर्ष कर रहा था. इसमे समाज या देश सेवा की कोई भवना नहीं थी. खालिस निजी स्वार्थ। यह व्यक्ति जब सफल हो जाता है, उसमे वह सब बुराइयां आ जाती है, जो बॉलीवुड में है. काला पैसा, ज्यादा पैदा लेकर कम आय दिखाना, कर बचाने के लिए फर्जी बिलिंग करना, आदि आदि.
ऐसे ही कुछ कथित संघर्षशील लोग,पिछले दो-तीन दिनों से वापस हो रहे हैं अपने प्रदेश कि वह मुंबई, दिल्ली या अहमदाबाद रह कर भूखें मारें क्या ? सरकार को कोस रहे हैं कि वह कुछ नहीं कर रही उनके लिए. चैनल इसका ढिंढोरा पीट रहे हैं.
मैं ऐसे लोगों से यह पूछना चाहूंगा कि तुम अपना प्रदेश छोड़ कर इन राज्यों में क्यों गए, अगर तुम भूखे नहीं मर रहे थे ? बड़े शहर की चकाचौंध का मज़ा लेने न ! अगर नहीं तो भूखा मरने के लिए वापस क्यों जा रहे हो ? वही रहते. इन सरकारों को आइना दिखाते कि ऐ सरकारों तुम निकम्मी हो ! हमारे लिए कुछ नहीं कर रही. लेकिंन, तुम बिलखते हुए वापस आ रहे हो. बहाना भूखों मरने का है. हो सकता है इसी बहाने फसल भी कट जाए.

मंगलवार, 17 मार्च 2020

क्या माँ बाप गलत अपेक्षाएं रखते हैं बच्चों से ?

इक्का दुक्का अपवाद हो सकते हैं. लेकिन, ज्यादातर माँ-पिता बच्चों से गलत अपेक्षाएं नहीं रखते. यहाँ तक कि उनकी अपेक्षाएं भी गलत नहीं होती, जिन्हें हम गलत समझते हैं.
मुझे ऐसा लग रहा है कि आप उन अपेक्षाओं को गलत बता रहे हैं, जिन्हें बच्चे गलत समझते हैं. इसमे कोई शक नहीं कि नई पीढ़ी का एक्स्पोजर ज्यादा है. लेकिन, अनुभव के सामने यह कहीं नहीं टिकती. अच्छा-बुरा की समझ समय करता है, अनुभवों से यह समझ आती है.
एक उदाहरण देना चाहूंगा. इधर लिव-इन रिलेशनशिप का चलन हो गया है. कोर्ट ने इसे मान्यता भी दे दी है. बिना शादी के एक साथ रहना पश्चिम से प्रभावित अपने आप में नया कांसेप्ट है. इसमे थ्रिल भी काफी है. एक लड़की के साथ अकेले रात दिन रहना और सब कुछ करना. लेकिन, क्या इससे यह पता चल जाता है कि लिव-इन का अनुभव कर चुके लड़का लड़की अब अच्छे पति-पत्नी बन सकते हैं. शायद शतप्रतिशत नहीं. ऐसे काफी मामले प्रकाश में आये है, जिनमे लड़की ने शादी करने का झांसा देकर बलात्कार करने का आरोप लगा दिया. सबसे बड़ी बात तो यह है कि कुछ महीने थ्रिल के नशे में गुजारने के बाद यह कैसा पता चल जाता है कि नशा सही चढ़ा है! जब यह नशा उतरता है तो शादी उसी तलाक के ढर्रे पर आ जाती है.
एक बात और. इस समय भी ज्यादा शादियाँ माता-पिता द्वारा तय की हुई ही हो रही हैं. क्या यह असफल हो रही हैं? नहीं ! तब फिर लिव-इन के थ्रिल का क्या मतलब.
आजकल एक्स्पोजर का नतीजा है कि युवा लडके लड़कियाँ विदेश में नौकरी करना पसंद करने लगे हैं. उन्हें लगता है कि इस प्रकार से वह विदेश में नौकरी करने का कारण ज्यादा सम्मानित हो जाते है. उन्हें अच्छी नौकरी और तनख्वाह भी मिल रही है. लेकिन, aआधुनिक युग की अर्थव्यवस्था कई कारणों पर टिकी हुई है. अब देखी न कोरोना वायरस ने भी अमेरिका की शक्तिशाली अर्थव्यवस्था की चूलें हिला दी है. वहाँ मंदी का ख़तरा मंडरा रहा है. सोचिये, ज्यादा कमाने और अच्छी नौकरी के लालच में विदेश गया बच्चा, आर्थिक मंदी के दौरान बिलकुल अकेला हो जाता है. उसे रोने के लिए माँ-पिता का कंधा तक नहीं मिलता

बुधवार, 4 मार्च 2020

मुसलमानों को सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ भड़काने में बुरे फंसे हर्ष मंधेर

एक हैं हर्ष मंधेर ! उन्हें जानने के लिए इतना बताना काफी होगा कि फेसबुक/ट्विटर पर आपको कुछ साम्यवादी सोच वाले, पेंट के अन्दर लंगोट पहनने के बावजूद खुद को नंगा दिखाने वाले, पढ़े लिखे आग उगलने वाले ड्रैगन जैसे ढेरों फेसबूकियों/ट्विटरातियो की तरह ही है हर्ष मंदर. विदेशी NGO से इन लोगों को भारी-भरकम मदद मिलती रहती है. कांग्रेस मुख्यालय पर तो इनके लिए खजाना खुला रहता है. उन्होंने एक एंटी CAA रैली में मुसलमानों को भड़काने के लिये धुंआधार भाषण करते हुए ऐलान कर दिया कि हमें सुप्रीम कोर्ट पर विश्वास नहीं है. लेकिन हमें जाना इनके पास ही होगा. ऐसे न जाने कितनी तकरीरे की हैं इन महाशय ने.

यह महाशय अभी एक अपील लेकर सुको पहुँच गए कि बीजेपी वाले दिल्ली में दंगा करवा रहे हैं. इसके नेताओं के खिलाफ कार्यावाही के लिए पुलिस पुलिस को निर्देशित करें. इसे देखते हुए कुछ लोगों ने हर्ष मंधेर की इसी स्पीच का टेप लगाते हुए, उनके खिलाफ सुको की अवमानना की कार्यवाही के लिए रिट दाखिल कर दी. यह सुन कर सुको के तेवर चढ़ गए. CJI ने कहा कि पहले यह तय हो जाए कि आपको सुको पर विश्वास क्यों नहीं है. इस पर मंधेर के वकील ने कहा कि मंधेर के खिलाफ सुनवाई टाल दी जाए. क्योंकि वह इस समय अमेरिका जाने के लिए प्लेन पर सवार है. इस पर कोर्ट ने व्यंग्यात्मक टिपण्णी की- ओह तो वह इस समय छुट्टियों का मजा लेना चाहते हैं.

इतना कह कर कोर्ट ने हर्ष मंधेर के खिलाफ सुनवाई के लिए शुक्रवार का दिन तय कर दिया.

मंगलवार, 3 मार्च 2020

क्या ठीक होगा कि हाईकोर्ट का कोई जस्टिस १४ साल तक अपनी कुर्सी पर जमे रहे ?


जस्टिस मुरलीधर, दिल्ली हाईकोर्ट में पिछले १४ सालों से जमे हुए थे. अमूमन एक सरकारी नौकर को किसी एक जगह पर ५ साल से ज्यादा नहीं रखा जाता. आईएएस/आईपीएस अधिकारियों को भी इस प्रकार के स्थानान्तरणों को झेलना पड़ता है. ऐसे में जस्टिस मुरलीधर में ऎसी क्या खासियत थी कि उन्हें १४ सालों तक दिल्ली हाईकोर्ट में ही बनाए रखा गया, जबकि दूसरे उच्च न्यायालय भी देश में हैं ? यह जांच का विषय बनता है कि जस्टिस के ट्रान्सफर पर दिल्ली के वकील क्यों आंदोलित थे? जैसा कि माहौल बनाया जा रहा है कि उन्हें दिल्ली रायट के मामले में उनके निर्णय पर ट्रान्सफर किया गया, यह जांच का विषय है कि किस व्यक्ति या संस्था को जस्टिस के दिल्ली में भी बने रहने में दिलचस्पी थी. खुद cji को इसकी जांच करानी चाहिए ताकि न्यायालय की गरिमा को इस प्रकार के किसी ट्रान्सफर से आगे आंच न आये.

रविवार, 1 मार्च 2020

अंडर ट्रान्सफर जस्टिस मुरलीधरन का अंडर ट्रायल जस्टिस



जस्टिस मुरलीधरन अंडर ट्रांसफ़र थे। उन्होंने क्यों इतने महत्वपूर्ण मामले को सुना। उन्होंने इतना ही नहीं किया, पुलिस व्यवस्था को हतोत्साहित करने की कोशिश भी की । आप कैसे अदालत मे वीडियो चला कर आरोप लगा सकते हो और फैसला सुना सकते हैं? आरोप लगाना जजों का काम नही है। अच्छा होता कि आप अदालत में सिनेमाघर लगाने के बजाय पुलिस कमिश्नर से कहते कि निष्पक्ष जॉंच की जाये। मान लेते हैं कि आप दिल्ली की हिंसा से बहुत आहत थे तो आपने यह क्यों नही कहा कि सुको को दो महीना पहले शाहीनबाग पर निर्णय सुना देना चाहिये था? क्यों नही कहा कि सुप्रीम कोर्ट सीएए की वैधानिकता पर तुरंत निर्णय लेने में असफल रहा? क्यों नही कहा कि कॉंग्रेस की नेता सोनिया गॉंधी ने मुसलमानों को सड़क पर उतर कर हिंसा करने के लिये उकसाया? क्यों नही कहा कि राहुल गॉंधी और प्रियंकावाड्रा भी समान रूप से दोषी है? क्यों नही इनकी स्पीच के वीडियो चलवाये? क्यों नहीं कहा कि सलमान ख़ुर्शीद और मणिशंकर अय्यर के जामिया और शाहीनबाग के भाषण मुसलमानों को उकसाने के लिये थे, जिनमें प्रधान मंत्री को गालियाँ दी गयी? क्यों नही कहा कि अकबरुद्दीन ओवैसी और वारिस पठान के भाषण मुसलमानों को दंगा करने के लिये उकसाने के लिये काफी थे? क्यों नहीं कह कि आम आदमी पार्टी के विधायक और पार्षद दंगा कराने के लिये एसिड की बोतलें और बम-पत्थर इकट्ठा कर रहे थे? क्यों नही कहा कि जाफराबाद में मुस्लिम औरतों के सड़क बन्द कर देने के कारण दिल्ली की जनता के सब्र का बाँध टूट गया? सवाल बहुत ले हैं मी लार्ड! अदालत में बैठ कर प्रवचन देने से बाज़ आईये। आप क्यों कार में बैठे होने के बावजूद, बिना गनर के उतरते तक नहीं?

पश्चिम बंगाल में ममतादी का सॉफ्ट हिंदुत्व वाया फरहद हाकिम



पश्चिम बंगाल में एक फरहाद हाकिम नाम का एक शख्स है. वह तृणमूल कांग्रेस का सब कुछ है. वह वर्तमान में कलकत्ता का मेयर है. इस पार्टी में उसकी स्थिति ममता बनर्जी और उनके भतीजे के बाद तीसरे नंबर की है.वह कभी, बांग्लादेश की सीमा से सटी मुस्लिम बस्तियों को घमंड से दिखाते हुए कहता था- यह है मिनी पाकिस्तान. मैंने ऐसे बहुत से पाकिस्तान बना दिए हैं.

ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति ने बंगाल को आंदोलित करना शुरू कर दिया. ममता बनर्जी की हिन्दू विरोधी और मुस्लिम समर्थक नीति ने हिन्दुओं को तृणमूल कांग्रेस से दूर करना शुरू कर दिया. इसके नतीजे में बंगालमें भाजपा मज़बूत हुई. लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस से १८ सीटें झटक ली. इस घटना ने लोमड़ी ममता बनर्जी के कान खड़े कर दिए. उन्होंने अपने दाहिने हाथ फरहाद हाकिम को सक्रिय किया. फरहाद हाकिम ने राम- नामी ओढ़ ली. इस शिवरात्रि हाकिम शिव मंदिर में पूजा करता दिखाई दिया. इससे पहले, ममता बनर्जी की पार्टी की अभिनेत्री से एमपी बनी नुसरत जहाँ ने लोकसभा में हिन्दू सिंगार कर शपथ ली और दुर्गा पूजा मे जम कर हिस्सा लिया.

लेकिन, फरहाद हाकिम का हिन्दू संस्करण फायदा देता नज़र नहीं आ रहा है. फिलहाल तो हुआ यह है कि फरहाद को ताकतवर मुस्लिम मौलानाओं ने तनखैया यानि मुसलमान नहीं घोषित कर दिया है. अब देखने के बात होगी कि २०२१ के बंगाल विधान सभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी को कितना फायदा होता है. फिलहाल तो ऐसा लग रहा है कि ममता बनर्जी को पढ़ने गए थे नमाज़, रोजे गले पड़े वाली स्थिति का सामना करना पड़ रहा है.

भारत में भी सेफ नहीं हिन्दू !


अभी फेसबुक पर ही एक पोस्ट सुन रहा था। एक हिन्दू महिला, जिसका घर मुस्लिम दंगाइयों ने जला दिया था, वह बिलखते हुए पूछ रही थी, 'जब हिन्दुस्तान में हिन्दू सेफ़ नहीं तो और कहॉं होगा ?' यह सवाल न मुसलमानों से है, न सेक्यूलर हिन्दुओ से है। यह सवाल देश के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी से है कि जवाब दीजिये, 'हिन्दू आपके रहते भारत में सेफ़ नहीं है तो और कहॉं होगा? आप पर आज भी मुसलमान २००२ के दंगों का कलंक लगाते फिरते हैं। तब इन्हे आपके राज में इतनी हिम्मत कैसे मिल गयी कि मिनटों में दिल्ली आग के हवाले कर दी। हिन्दुओं को भारत में ही शरणार्थी बना दिया। इन लोगों के लिए कौन सा सीएए लायेंगे मोदी जी! जवाब तो देना होगा कि मुसलमानों में २००२ से पैदा हुआ आपका भय यकायक हवा कैसे हो गया कि यह लोग १५ दिसम्बर से दिल्ली में अब्दाली वाला तांडव कर रहे थे?'

हम सेक्युलर हैं



१९५९ में अमरीकी राष्ट्रपति आइजनहोवर भारत आये थे. हमारे सेक्युलर पंडित जवाहरलाल नेहरु ने आनंद भवन की पुरानी टट्टी वाले कमरे में उन्हें सुलाया था. खुद फटी हुई शेरवानी और चूड़ीदार पहन रखी थी. चहरे पर फिटकार बरस रही थी.

फिर १९६९ मे रिचर्ड निक्सन आये. तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अपने पिता वाला कमोड धो पोंछ कर प्रधान मंत्री आवास के नौकरों वाले कमरे में रख दिया और उसमे निक्सन को ठहराया. उस समय इंदिरा गाँधी अपनी बाई की हुई सिली हुई धोती पहने थी. फटे ब्लाउज से झांकती अपनी लाज बचाने का वह भरसक प्रयास कर रही थी.

१९७८ में जिमी कार्टर भारत आये. पूर्व कांग्रेसी मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री थे. नेहरु इंदिरा विरासत को सम्हालते हुए, उन्होंने वही कमोड और वही सर्वेंट रूम जिमी कार्टर को दे दिया.

२००० में बिल क्लिंटन आये. सांप्रदायिक वाजपेयी ने उनका बढ़िया स्वागत किया. डिसगस्टिंग वाजपयी. सेकुलरिज्म को इतनी तो जगह देते की हरे रंग के चिक लगा देते रूम में.

२००६ और २०१० में जॉर्ज डब्ल्यू बुश और बराक ओबामा भारत आते. मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री थे. हमने सांप्रदायिक सरकार के स्वागत का भरपूर बदला लिया. अमेरिका को साफ़ लिख दिया कि हम टुटपूंजिये है. हमारे पास ओढ़ने और बिछाने को चादर नहीं है. सेकुलरिज्म के प्रतीक कुछ हरे चाँदतारे वाले परदे दे सकते हैं. बाकी का इंतज़ाम आप खुद कीजिये. मौनी बाबा ने घंटा कुछ नहीं किया. बस मैडम और कुमार साहेब और बेटी दामाद के साथ अमेरिकी डिनर और लंच जम कर खींचा. बुश और ओबामा छींक मार गए कि हिन्दुस्तानियों जैसा नंगा कोई नहीं.

पर इस मोदी ने हमारा अब तक का किया धरा सब मटियामेट कर दिया है. इसने गलीचपने की हमारी कोशिशो को पलीता लगा दीया. अमेरिकी समझने लगे हैं कि हम अमीर हो गये है. हमें विकासशील देशों से निकाल दिया है . अब भीख और छूट नहीं मिलेगी. यह मोदी है कि १०० करोड़ बिछा दिए स्वागत में?

हाय हाय कैपिटलिज्म.