घर के छज्जे पर खड़े
देखा है मैंने
वृद्ध दंपति को एक दूसरे का हाथ पकड़े
टहलते हुए
बातचीत करते
खिलखिलाते, मुस्कराते
कभी वह बहस करते
वृद्ध क्रुद्ध होता
दोनों के मुख पर तनाव होता
किन्तु तब भी दोनों
हाथ नहीं छोड़ते.
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घर के छज्जे पर खड़े
देखा है मैंने
वृद्ध दंपति को एक दूसरे का हाथ पकड़े
टहलते हुए
बातचीत करते
खिलखिलाते, मुस्कराते
कभी वह बहस करते
वृद्ध क्रुद्ध होता
दोनों के मुख पर तनाव होता
किन्तु तब भी दोनों
हाथ नहीं छोड़ते.
मैंने अपने परम मित्र से कहा-
तुम मेरे साथी हो
सुख दुख के
संघर्ष और विजय के
हम दोनों शरीर और छाया जैसे है।
पर यह क्या!
अब वह साथ नहीं चलते
पीछा करते है
जैसे छाया !
गरमी में
चिलकती धूप में
छाँह बहुत सुखदायक लगती है
किन्तु, छाँह में
कपडे कहाँ सूखते हैं !
२-
गति से बहती वायु
बाल बिखेर देती है
कपडे उड़ा देती है।
किन्तु,
जब नहीं चलती
चेहरे पर हवाइयां उड़ा देती है।
३
पक्षी और मनुष्य
भटकते रहते है
पक्षी दाना पानी की खोज में
मनुष्य रोजी रोटी की खोज में
कभी कभी दाना पानी रोजी रोटी नहीं मिलती
किन्तु, पक्षी कभी
इंसान की तरह निराश नहीं होते।
घनघोर वर्षा
कड़कती बिजली
गर्जन करते मेघ
सब जल- थल
मैं माँ के पास बैठ जाता
माँ चिन्तित दृष्टि बाहर डालती
मेघ आच्छादित आकाश देखती
मैं समझ नहीं पाता
माँ इतनी चिन्तित क्यों!
हम तो घर में है सुरक्षित
चिन्ता की बात क्या
तभी छत टपकने लगी
टपाक!
एक बूँद मेरे सर पर बजी
अब मैं समझ गया था।
उन्नत पर्वत शिखर पर बैठा वृद्ध गिद्ध
अब, घिस चुकी चोंच को नुकीला करेगा
पर्वत से घिस घिस कर
अपने नख तोड़ देगा
स्वयं को शिखर से लुढ़का देगा
ताकि क्लांत पंखों को नया जन्म दिया जा सके
इसके बाद, उसका पुनर्जन्म होगा
वह पुनः वृद्ध से युवा गिद्ध बन जायेगा
मैं भी गिद्ध हूँ
वृद्ध शिथिल शरीर हूँ
किन्तु, क्लांत नहीं
मैं शिखर पर पहुँच कर
अपने शिथिल शरीर का पुनर्निर्माण करूंगा
नख घिसूंगा
स्वयं को शिखर से लुढ़का कर
नए पंखों को जन्म दूंगा
ऊंची उड़ान भरने के लिए।
जब वर्षा हो रही होती है
पक्षियों का कलरव बंद हो जाता है
वह सहम जाते हैं
दुबक जाते है
जब बादल गरजता हैं
बिजली कड़कती है
बच्चे माँ की गोद मे सिमट जाते है
सभी घोंसले मे छुप हो जाते हैं
अब वृक्ष अछा लेगा
कि तभी
जोरदार बिजली कड़कती है
बादल गर्जना करते है
बिजली गिरती है
सीधा वृक्ष पर
सब कुछ समाप्त ।
जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा। सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील सुब्हानी की बात न मानने के दंडस्वरुप दिवार में चुनवाये जाने का दंड दे दिया।
अब अकबर अनारकली का हाथ पकड़ कर उसे कारागार की ओर लेकर चल पड़ा। तब साथ चलती अनारकली ने अकबर से कहा - हुजूर, आपको मेरा हाथ पकड़ कर बड़ा मजा आ रहा होगा। आप मन ही मन मुझसे सेक्स करना चाहते होंगे। कही आपकी यह आग और न भड़क जाए, इसलिए मैं आपको सलीम से सम्बन्धित कहानी सुनाती हूँ।
जलील सुब्हानी, आपसे अधिक कौन जानता होगा कि मेरा घर कहाँ पर है। मेरी माँ आपके घर चाकरी करती थी। उसकी पहुँच आपकी बेगमों के कमरों तक थी और आपकी उनके कमरों तक।
ऐसे में माँ का और आपका मिलना स्वाभाविक भी था। एक दिन ऐसा ही हुआ। उस दिन माँ, अस्तव्यस्त सी पोछा लगा रही थी कि तभी आप कमरे में घुस आये। वहां आपकी बेगम तो बाथरूम थी, किन्तु,अस्तव्यस्त माँ सामने जरूर थी।
आपकी लम्पट निगाहों ने उनकी जवानी के हर कोण, गोलाई और मोटाई को नाप लिया। आप कामुक हो गए। आप मन ही मन गा रहे थे - सलवार के नीचे क्या है ?
किन्तु, हरम में अम्मीजान की सलवार के नीचे झांकना संभव नहीं था। कोई भी बेगम ख़ास तौर पर रुकैया या जोधा आ गई तो बड़ा ग़दर खडा हो सकता था।
अनारकली का इस प्रकार से उनका कच्चा चिटठा खोलना, अकबर को नागवार गुजरा। इससे उनकी कामुकता में थोड़ी कमी आई। अनारकली की कलाई से पकड़ ढीली हुई।
अनारकली ने आगे सुनाया - आप मौका ढूढने के लिए मेरी अम्मी का पीछा करने लगे। आप मौके की तलाश में रोज उनके पीछे आने लगे।
एक दिन माँ ने आपको पीछा करते देख लिया। वह आपके इरादे भांप गई थे। आप उनके साथ मुताह करते तो कोई बात नहीं थी। क्योंकि, दासियाँ इसी लिए होती है। किन्तु, दासी पुत्री नहीं।
इसलिए माँ ने मुझे समझाया कि लम्पट सुब्हानी मेरा पीछा करता है। कभी वह मुझे घर के अंदर दबोच सकता है। इसलिए, जैसे ही वह नामुराद मेरे पीछे आता दिखे तो तुम कमरे में छुप जाना। सामने न पड़ना। मैं ऐसा ही करती।
हालाँकि, इस तरकीब से मैं तो बचती रही। किन्तु, अपनी इस आदत से आप बुरी तरह फंस गए। आपका चिश्ती दरगाह की कृपा से जन्मा लौंडा सलीम आपसे कम लम्पट नहीं था। वह आपकी नीयत भांप गया था। इसलिए वह आपका पीछा करने लगा।
वह समझ नहीं पा रहा था कि जब दासी रोज घर आती है, तो आप उसका पीछा क्यों करते है। इसलिए एक दिन जब आप बीमार पड़ने के कारण माँ के पीछे नहीं आये, उस दिन भी वह माँ का पीछा करता रहा।
एक दिन उसने मुझे देख लिया। मेरे हुस्न और जवानी ने उसे मोमबत्ती की तरह पिघला दिया। वह तुरंत मेरे घर आ घुसा। उसने मुझ से कहा- मेरे अब्बू लम्पट है। वह हू ला ला और मुता के शौक़ीन है। वह कभी बीच तुम्हारे साथ मुता कर सकते है। इसलिए तुम मुझे अपना शरीर सौंप दो। मैं अकबर से इसकी रखवाली करूँगा।
मैं मरती क्या करती! सलीम ने मुझे बिस्तर पर गिरा दिया और खूब हू ला ला किया।
इतना सुनते ही अकबर का पारा आस्मान छूने लगा। अनारकली का हाथ उसकी गिरफ्त से छूट गया। वह जोर से खींचा - मरदूद सलीम तू कहाँ है?
सलीम सामने से दौड़ता आ रहा था। अनारकली ने सलीम को देखा। वह सरपट उसकी ओर भाग ली। सलीम अनारकली को लेकर एक बार फिर घोड़े पर सवार हो गया।
सुनो, मौन का स्वर मौन सहमति है. मौन सहनशीलता है मौन व्यक्ति का निरीक्षण है मौन में सब समाहित इसे निर्बल न समझो मौन मेघों का नाद है म...