सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

चौराहे पर

हर चौराहे पर खडी कर दी हैं दीवारें यह दीवारे रोकती नहीं रोकना प्रतिरोध को जन्म देता है क्रांति की ओर  पहला कदम है यह दीवारे आदमी को भटकाती हैं क्योंकि, भटका हुआ आदमी कभी वापस नहीं आ पाता 

लगते हो अच्छे !

सच में कहूं  बताऊ कैसे, तुम मुझको  लगते हो अच्छे ! बीता बचपन जवां हुई यादें दिन का हंसना रात की बातें हंसते मुख पर दांत चमकते जैसे मोती हों सच्चे ! तुम आते थे फिर जाने को, कह जाते थे फिर आने को कब तक होगी आवाजाही बता भी देते नहीं थे बच्चे ! बीता बचपन आई जवानी भूली बिसरी वही कहानी बिदा हुए तुम उन यादों से जिसमे आते थे  सज के. 

कविता

कभी एकांत में मिलो मैं तुम्हे छूना नहीं चाहूँगा तुम्हे देखूँगा महसूस करूंगा जो एहसास देखने और महसूस करने में है वह छूने में कहा

दीपक और उजाला

छोड़ दो उस जगह को जहाँ उजाला हो उठाओ एक दीपक चल दो जहाँ अँधेरा हो। २. बाती की ज़रुरत अँधेरा जगमगाने के लिए ३. ढेरों बड़े दीपों के बीच एक छोटा दीपक उदास- सा बड़े दीपों की रोशनी मद्धम कर रही थी नन्हे दीप की रोशनी शाम बढ़ी लोग आये दीप उठा कर चले गए अकेला रह गया नन्हा दीप इधर उधर देखा एक नन्हा बच्चा चला आ रहा था उसके पास नन्हे दीपक को नन्हीं हथेलियों में उठाया ले गया उस अँधेरे कोने में जहाँ बड़े नहीं पहुंचे थे दीपक मुस्कुरा रहा था। ४. बाती जल कर काली रह जाती है रोशनी फैलाने के बाद तेल उड़ जाता है हवा में बाती की मदद करने के बाद रह जाती है दियाली अपने में समेटे जले तेल और बाती की कुरूपता । ५. जला तेल और रुई की बाती लौ को घमंड क्यों अपनी रोशनी पर ! राजेंद्र प्रसाद कांडपाल