मंगलवार, 24 नवंबर 2015

कविता

कभी
एकांत में मिलो
मैं तुम्हे छूना नहीं चाहूँगा
तुम्हे देखूँगा
महसूस करूंगा
जो एहसास
देखने और महसूस करने में है
वह छूने में कहा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

तीन किन्तु

 गरमी में  चिलकती धूप में  छाँह बहुत सुखदायक लगती है  किन्तु, छाँह में  कपडे कहाँ सूखते हैं ! २-   गति से बहती वायु  बाल बिखेर देती है  कपडे...