सोमवार, 8 अक्टूबर 2012

ऊन उलझी

जाड़ों  में
एक औरत
स्वेटर बुनती है ।
फंदा डालना है
फंदा उतारना है
अधूरे सपनों को
इनसे संवारना है
हरेक स्वेटर में
ज़िंदगी गुनती है।
जाड़ा आता है
जाड़ा चला जाता है
जिसने कुछ ओढा हो
उसे यह भाता है।
गुनगुनी धूप से
भूख कहाँ रुकती है।
जिंदगी की स्वेटर में
डिजाइन कहाँ
उलझी हुई ऊन से
सब हैं यहाँ
ऐसी ऊन से माँ
सपने बुनती है ।

स्वेटर

जाड़ों में स्त्रियाँ
स्वेटर बुनती नज़र आती हैं
धूप में बैठी हुई
बात करती
तेज़  गति से सलाई चलाती
एक फंदा सीधा, एक उल्टा
या कुछ फंदे सीधे और कुछ उल्टे
या फिर ऐसे ही गणित के साथ
डिजाइन बनाती हैं।
स्वेटर लड़की के लिए भी बन रही है
और लड़के के लिए भी
लेकिन लड़का पहले है
कुल का चिराग है
कहीं ठंड न लग जाये
लड़के की स्वेटर की ऊन भी नयी है
लड़की के लिए मिक्स है।
लड़के की स्वेटर के डिजाइन में
खूबसूरत फूल हैं
हाथी घोड़े और चढ़ता सूरज है
लड़की के स्वेटर में
एक दुबली सी लड़की की डिजाइन है
डिजाइन वाली लड़की
न जाने हंस रही है या रो रही है
मगर स्वेटर पूरी होने को है।
 निश्चित रूप से
पूरी स्वेटर देख कर
पुलक उठेगी मुनिया
पिछले जाड़ों में तो
छेद वाली ही स्वेटर नसीब हुई थी न!

रविवार, 7 अक्टूबर 2012

दरख्त जैसे मकान


मेरे शहर में
ऊंचे ऊंचे दरख्तों जैसे
एक के ऊपर एक चढ़े
मकान होते हैं 
जिनके सामने
ऊंचे दरख्त भी
बहुत छोटे लगते हैं
कभी
कबीर ने कहा था -
बड़ा भया तो क्या भया/
जैसे पेड़ खजूर /
पंथी को छाया नहीं /
फल लागे अति दूर ।
मेरे शहर के
इन गगनचुंबी दरख्तों पर
फल तो लगते ही नहीं 
छाया क्या खाक देंगे
दरख्तों को काट कर बने मकान।

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

सबक

मरे जानवर की खाल से बना
जूता काटता है
पहनने वाले को /परेशान करने की
अपनी क्षमता का पता बताता है
अगर ज़िंदा आदमी
ऐसा कर सकता है
तो मरे का काम ही किया ना!
यही जूता
अगर उल्टे पाँव में पहनो तो
तत्काल/एहसास करा देता है
कि उल्टा पहन लिया
तब आदमी
जूते से सबक लेते हुए
सीधा काम क्यों नहीं करता!

 

सोमवार, 24 सितंबर 2012

कौव्वा

कभी
हमारे घर की मुंडेर पर
कौव्वा आ बैठता था।
जब वह कांव कांव करता
तो आ आ का आभास होता 
हम बच्चे
उसे उड़ाने लगते
पत्थर फेंक कर/तब
माँ कहती-
बेटा, ऐसा न कर
मेहमान घर आने वाला है
कौव्वा उनके आने का संदेश दे रहा है
आज
घर है
मुंडेर नहीं
कौव्वा बैठे भी तो कहाँ
क्या/शायद इसीलिए
हमारे घर
कोई मेहमान नहीं आता?

शनिवार, 22 सितंबर 2012

डरा बच्चा

बच्चा
बिछुड़ गया है/अपनी माँ से
कैसे/
कैसे छूट गया हाथ
बच्चे का/ माँ से
कैसे/
कैसे हो सकती है /असावधान
माँ
सोच रहा है बच्चा
डर रहा है बच्चा
डरा रहा है
परिचित चौराहा
चिरपरिचित राह
भयभीत है
कहाँ गयी माँ
मुझे छोड़ गयी माँ
या लौट कर आएगी माँ
हा माँ! आ माँ!!
कहाँ छोड़ गयी माँ!!!
चार राहों के बीच
असुरक्षित, भयभीत और असहाय
बच्चा
रो रहा है! रो रहा है!! रो रहा है!!!

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

विदाई

एक रोती लड़की से
मैंने कहा-
तू पैदा हुई
तब रो रही थी।
जब विदा हो रही थी
तब भी रो रही थी।
फिर पूछा-
आज जब माँ बनने वाली है
तब भी तू रो रही है?
लड़की रोती रही/बोली-
पैदा होते समय
तू भी रोया होगा
पर मेरे भाग्य में तो
पग पग रोना लिखा है
पिता पढ़ाने में रोया
शादी के समय
दहेज देने में रोया
सही है कि मैं
विदा के समय भी रोयी
और आज भी रो रही हूँ
क्योंकि
मुझे आज भी रोना है
और कल भी।
कल बेटी विदा होगी
तब  रोटी
लेकिन
मुझे आज ही रोना होगा
डॉक्टर के यहाँ जाना है
क्योंकि मेरे पति
बेटी को आज ही
विदा करना चाहते हैं।

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...