मेरे शहर में
ऊंचे ऊंचे दरख्तों जैसे
एक के ऊपर एक चढ़े
मकान होते हैं
ऊंचे ऊंचे दरख्तों जैसे
एक के ऊपर एक चढ़े
मकान होते हैं
जिनके सामने
ऊंचे दरख्त भी
बहुत छोटे लगते हैं
कभी
कबीर ने कहा था -
बड़ा भया तो क्या भया/
जैसे पेड़ खजूर /
पंथी को छाया नहीं /
फल लागे अति दूर ।
मेरे शहर के
इन गगनचुंबी दरख्तों पर
फल तो लगते ही नहीं
छाया क्या खाक देंगे
दरख्तों को काट कर बने मकान।
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