कभी
हमारे घर की मुंडेर पर
कौव्वा आ बैठता था।
जब वह कांव कांव करता
तो आ आ का आभास होता
हम बच्चे
उसे उड़ाने लगते
पत्थर फेंक कर/तब
माँ कहती-
बेटा, ऐसा न कर
मेहमान घर आने वाला है
कौव्वा उनके आने का संदेश दे रहा है
आज
घर है
मुंडेर नहीं
कौव्वा बैठे भी तो कहाँ
क्या/शायद इसीलिए
हमारे घर
कोई मेहमान नहीं आता?
हमारे घर की मुंडेर पर
कौव्वा आ बैठता था।
जब वह कांव कांव करता
तो आ आ का आभास होता
हम बच्चे
उसे उड़ाने लगते
पत्थर फेंक कर/तब
माँ कहती-
बेटा, ऐसा न कर
मेहमान घर आने वाला है
कौव्वा उनके आने का संदेश दे रहा है
आज
घर है
मुंडेर नहीं
कौव्वा बैठे भी तो कहाँ
क्या/शायद इसीलिए
हमारे घर
कोई मेहमान नहीं आता?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें