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संदेश

मालती

मेरे हाथों में मालती का ख़त है. उसने लिखा है- तुम हमेशा मेरे दिल में ही थे राजेश!         #        #          #         #        #      # हम दोनों कॉलेज के दिनों में मिले थे. को-एजुकेशन वाला कॉलेज था. मालती मेरे ही क्लास में ही पढ़ती थी. बेहद खूबसूरत थी और उतनी ही चंचल भी. अपनी सहेलियों के साथ दिन भर हंसी मज़ाक करना उसका शगल था. लेकिन, थी वह पढ़ने में तेज़. क्लास टेस्ट में भी वह हम लड़कों से अव्वल आती। . वह मेरी और कब आकृष्ट हुई पता नहीं. पर मैं पहले ही दिन से उस पर फ़िदा हो गया था।  यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि कॉलेज का हर लड़का उस पर फ़िदा था. कुछ कम फ़िदा थे तो कुछ ज्यादा और कुछ तो बहुत ज्यादा. जान देने वाले भी थे एक दो. ऐसे विरल जीवों में से एक मैं भी था. लेकिन वक़्त आने पर यह स्पीसीज जान देने में पीछे हट जाती है. हाँ तो मैं बता रहा था ...

हिमखंड

तुम मुझे कितना जानते हो? हिमखंड जितना! मुझे जानना हो तो तुम्हें समुद्र की गहराइयाँ नापनी होंगी। क्यूंकि मैं हिमखंड जैसा हूँ जितना बाहर से दिखता हूँ। उससे कई गुना बड़ा समुद्र के अंदर होता हूँ। चूंकि तुम में समुद्र नापने का माद्दा नहीं इसलिए तुम मुझे समुद्र की सतह से देख कर मान लेते हो कि तुमने मुझे जान लिया और फिर अपनी कमी को मेरी कमी बता कर कहते हो कि मैं सतही हूँ। 

सपना

सपना श्रीमती थीं या कुमारी कोई नहीं जानता था।  सरनेम तक पता नहीं था किसी को।  कॉलोनियों की खासियत होती है कि वहां एक दूसरे को कोई अच्छी तरह से जानता नहीं या जानने की कोशिश भी नहीं करता। ऎसी जगहों में परपंच को जगह मिलती है।  यह परपंच किसी बाई या नौकर के जरिये एक कान से दूसरे कान तक फैलते हैं। कुछ सजग निगाहें भी ऎसी मुआयनेबाज़ी करती रहती हैं।  सपना की भी होती होगी। तभी तो यह बात फैली कि वह सजी तो ऐसे रहतीं जैसे मिसेज हों। लेकिन कोई स्थायी आदमी उसके घर में रहता नहीं दिखता था। हाँ, रोज कोई न कोई नया आदमी या फिर पुराना ही आता और देर रात तक जाता दीखता था। अमूमन, सपना  इनमे से किसी के साथ सजी धजी निकल जाती, कभी किसी कार में या टेक्सी में। कब लौटती ! कोई नहीं जानता था। लेकिन सुबह उसे दूध उठाते, बालकनी में टहलते या अखबार पढ़ते ज़रूर देखा जाता था।  उसके रोज के चलन को देखते हुए लोगों ने यह तय कर लिया था कि वह बदचलन हैं। या साफ़ साफ़ यह कि वह कॉल गर्ल या वेश्या थी।  लेकिन मुंह के सामने कहने की किसी में हिम्मत नहीं थी। ...

महाकवि

मैंने लिखी कुछ पंक्तियाँ उन्हें नाम दिया कविता उन्हें छपने भेजा वह छपीं प्रशंसा मिली मैं कवि बन गया था। मैंने और कविताएँ लिखीं वह भी छपीं इस बार प्रशंसा और पुरस्कार भी मिले मैं खुशी और एहसास से फूल उठा मैं बड़ा कवि बन गया था अब मैं कविता नहीं लिखता अब मैं लिखी कविताओं की आलोचना करता हूँ कवि सम्मेलनों में कवि पाठ करता हूँ। क्यूंकि मैं अब कवि नहीं रहा अब मैं महाकवि बन गया हूँ।

आँखों की बदसूरती

कुछ चेहरों के साथ ऐसा क्यूँ होता है कि वे बेहद बदसूरत होते हैं इतने कि लोग उन्हें देखना तक नहीं चाहते उन संवेदनाओं को भी नहीं जो उस चहरे पर जड़ी दो आँखों में है जिनसे उस बदसूरत चेहरे के अन्दर झाँका जा सकता है, उस दिल में छिपी निश्छलता को भांपा जा सकता है. ऐसा क्यूँ होता है हमारी दो आँखों से बदसूरती से मुंह मोड़ लेतीं हैं आँखों से शरीर के अंदर झांक कर बेहद करुणा, दया, ममता और मैत्री से भरा हृदय नहीं देख पातीं हैं. काश ऑंखें केवल देख नहीं महसूस भी कर पाती तब देख पाती असली सुन्दरता.

साँवली

मोलहू की बेटी सांवली का रंग सांवला था. शायद इसी रंग के कारण मोलहू ने उसका नाम सांवली रखा था. वैसे सांवली के रंग को सांवला नहीं कहा जा सकता. काफी पका हुआ था उसका रंग. बिलकुल दहकते तांबे के बर्तन  जैसा. नाक नक्श तीखे थे. आँखों के लिहाज़ से उसे मृगनयनी कहा जा सकता था. कुल मिला कर बेहद आकर्षक लगती थी सांवली. एक दिन कुछ दिलफेंक लड़कों ने कह भी दिया था , '' आये हाय ! बिपाशा बासु. '' सांवली फ़िल्में नहीं देख पाती थी. कभी गाँव के किसी अमीर के घर जहां माँ काम करने जाती थी , देख लिया तो बात दूसरी है. यह इत्तेफाक ही था की सांवली ने बिपाशा बासु की एक फिल्म इसी प्रकार से  देखी भी थी. उसे अच्छी तरह से याद है बिपाशा बासु को देख गाँव के लौंडे तो काबू में रहे थे , लेकिन काफी बुड्ढों को सुरसुरी जैसी लग रही थी. अजीब आवाजें निकल रही थी. इनका मतलब न समझ पाने के बावजूद सांवली को शर्म लगी थी. लेकिन जब गाँव के लड़के उसे सेक्सी और बिपाशा कह कर पुकारते तो उसे महसूस होता कि वह बहुत ज्यादा खूबसूरत है. सेक्सी का इससे बड़ा अर्थ जानने की ज़रुरत उसने महसूस भी नहीं की थी. उसे अच्छा लगता जब गाँव के ज...

धूप उदास

धूप का एक छोटा टुकड़ा घर की दीवार चढ़ कर झांकता है और फिर धीमे से उतर आता है आँगन में दिन भर पसरा रहता है माँ के गठिया वाले घुटनों को सहलाता कभी बच्चों के बालों से खेलता  और गालों को थपकाता पीठ पर चढ़ जाता है बच्चे पकड़ने की कोशिश करते वह हाथ से फिसल जाता गेंहू पछोरती पत्नी को देखता सूप पर उछलते गिरते दानों को छूता रस्सी पर फैले गीले कपड़ों को नम करता, सुखाता घर में आते जाते लोगों को चुपचाप देखता बिन बुलाये मेहमान की तरह. तभी तो शाम को बच्चे बिना उसे कुछ कहे घर के अन्दर चले जाते उसका चेहरा पीला पड़ जाता वह उदास सा घर से निकल जाता कल फिर से आने को.