गुरुवार, 15 मार्च 2012

आँखों की बदसूरती

कुछ चेहरों के साथ
ऐसा क्यूँ होता है
कि वे बेहद बदसूरत होते हैं
इतने कि लोग
उन्हें देखना तक नहीं चाहते
उन संवेदनाओं को भी नहीं
जो उस चहरे पर जड़ी दो आँखों में है
जिनसे
उस बदसूरत चेहरे के अन्दर
झाँका जा सकता है,
उस दिल में छिपी
निश्छलता को भांपा जा सकता है.
ऐसा क्यूँ होता है
हमारी दो आँखों से
बदसूरती से मुंह मोड़ लेतीं हैं
आँखों से शरीर के अंदर झांक कर
बेहद करुणा, दया, ममता और मैत्री
से भरा हृदय नहीं देख पातीं हैं.
काश ऑंखें केवल देख नहीं
महसूस भी कर पाती
तब देख पाती असली सुन्दरता.

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