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संदेश

सुख

जानते हो दुःख की लम्बाई कितनी होती? तुम्हारे जितनी तुम्हारे दिल दिमाग में सिमटी हुई लेकिन सुख उसे नापना मुश्किल है वह तुमसे तुम्हारे परिवार तक घर बाहर तक बहुत दूर दूर तक पहुँच जाता है तुम अपना सुख उछालो फिर देखो कितनी दूर दूर तक फ़ैल जाता है तुम्हारा सुख तुम नाप नहीं सकते.

गौरैया

एक एक कर बच्चे चले गए थे अपने अपने काम पर अपनी अपनी गृहस्थी में रमने तब मैं अकेला रह गया था. नितांत अकेला छोड़ कर पत्नी पहले ही चली गयी थी शायद वह मुझसे पहले इस यातना को सहना नहीं चाहती थी. सूना घर काटने को दौड़ता मुझे याद आता- बचपन में मैंने चिड़िया का एक घोसला तोड़ दिया था. अंडे निकाल कर जमीन पर पटक दिए थे. माँ ने बहुत डांटा था- बेटा यह क्या कर दिया किसी का घर उजाड़ दिया चिड़िया अब अकेली रह गयी उस दिन मुझे चिड़िया की चहचाहट दुःख भरी लगी इधर उधर देख रही थी मानो अपने अंडे खोज रही थी. चिड़िया के बच्चे नहीं हो पाए थे मेरे तो बच्चों के बच्चे हो गए उनके पैदा होने की खबरें आती ज़रूर थीं लेकिन बुलावा नहीं आया था पत्र केवल सूचनार्थ प्रेषित थे मुझे अचानक बाहर चहचाहट हुई एक चिड़िया इधर उधर कुछ ढूढ़ रही थी मुझे लगा दाना ढूंढ रही थी मैंने चावल के कुछ टूटे दाने दूर दीवाल पर रख दिए साथ में छोटे बर्तन में पानी भी चिड़िया पहले सशंकित हुई संदेह भरी नज़रों से मेरी ओर गर्दन घुमाई मुझे याद आ गया बचपन में घोसला तोड़ना दुबक गया परदे के पीछे. चिड़िया आश्वस्त हुई चावल के कुछ...

बादशाह

लालकिले की प्राचीर से एक प्रधानमंत्री तिरंगा फहराता है और भाषण देता है लाखों लाख लोग देखते सुनते हैं टीवी के जरिये और कुछ हजार कुछ सौ मीटर दूर नीचे बैठे हुए . उसके और जनता के बीच दूरियों की  ही नहीं बुलेट प्रूफ की बाधा भी होती है वह जनता का स्पर्श क्या पसीने की गंध तक महसूस नहीं कर पाता इसीलिए विद्युत् तरंगो से होता हुआ उसका सन्देश जन मानस को मथ नहीं पाता लेकिन इसमें प्रधानमंत्री की क्या गलती गलती पैंसठ साल पहले हुई थी जब स्वतंत्रता का ध्वज उस लालकिले की प्राचीर से फहराया गया था जिसे एक बादशाह ने हजारों मजदूरों का पसीना सोख कर बनवाया था. इसके बनाने वाले मजदूर किसी झोपड़ी में आधे अधूरे सो रहे थे और बादशाह आराम से था अपने महल में जनता और बादशाह के बीच की यह दूरी ही तो आज भी बनी हुई है.

द्रौपदी

महाभारत में पढ़ा था दुश्शासन ने खींची थी द्रौपदी की चीर लाज बचने के लिए चीखती रही थी द्रौपदी मूक बैठे रहे थे पितामह और पांडव ध्रतराष्ट्र तो वैसे ही अंधे थे गांधारी ने नेत्रों पर कपड़ा बाँध लिया था. तब कृष्ण ने किया था चमत्कार बढ़ती चली गयी थी द्रौपदी की चीर नींची होती गयी थी कौरव पांडवों की निगाहें दुश्शासन थक कर चूर हो गया था. मगर आज के भारत में न जाने कितनी द्रौपदियों की चीर खींची जाती है अब कृष्ण चमत्कार नहीं करते द्रौपदी की लाज बचाने को . आजकल वह अपने सुदर्शन चक्र की जंग उतार रहे हैं। आधुनिक द्रौपदी की छः गज से भी कम की फटी साड़ी पल में ज़मीन पर बिखर जाती है पार्श्व में शीला की जवानी गीत बजता रहता है कौरवों के साथ पांडव भी कनखियों से देखते आनंदित होते हैं कोई खुल के कुछ नहीं बोलता क्यूंकि हम्माम में सभी नंगे हैं इसीलिए दुश्शासन भी कभी थकता नहीं आज के महान भारत का.

लाल रंग

नन्हा मचल रहा था- माँ कल होली है मैं भी रंग खेलूंगा मुझे रंग ला दे माँ कहाँ से लाती रंग बड़े जतन के बाद दो रोटियां जुड़ पाती थी एक नन्हे को देती आधी खुद खाती आधी नन्हे के सुबह के नाश्ते के लिए रख देती. मना कर दिया माँ ने नन्हा मचलने लगा मांग न पूरी होने पर फूट फूट कर रोने लगा इतना रोया इतना रोया कि पूरा चेहरा लाल पड़ गया फिर रोते सुबकते, थक कर चुप हो गया माँ पास आई, बोली- चल बेटे रोटी खा ले कि तभी नन्हे के मुंह पर नज़र पड़ी नन्हे का गाल थपकते हुए बोली- अरे तूने कब रंग खेल लिया देख तेरे गाल लाल हो गए हैं. नन्हे ने शीशा देखा माँ की बात सच थी चेहरा सचमुच लाल था खुश हो कर माँ को देखा अरे हाँ माँ, सच ! पर तुम्हारी आँखों में तो काफी रंग चला गया है कितनी लाल हो रही हैं तुम्हारी आँखें.

सिंहासन

देखो दोस्त, जनपथ पर राजा बैठा है, उसका एक गद्दियों वाला बड़ा सिंहासन है जो बहुत मज़बूत है राजा बहुत ताक़तवर है उसके पास दंड और क्षमा का राजदंड होता हैं उसके दोनों और विद्या और बुद्धी का प्रकाश उसे निर्णय लेने की राह दिखाता रहता है लेकिन वह इन शक्तियों का उचित प्रयोग नहीं करता वह इन शक्तियों को वैयक्तिक मानता है, इनका दुरूपयोग करता है वह प्रजा को, नियम और कानूनों को अपनी पायदान बना लेता है. उसे घमंड है अपने बड़े से मज़बूत सिंहासन पर इसलिए वह प्रजा हित के बजाय अपने और अपने ईष्ट मित्रों पर ज्यादा ध्यान देता है लेकिन वह नहीं जानता कि सिंहासन कितना भी मज़बूत क्यूँ न हो गद्दी मज़बूत नहीं होती वह टिकी होती है चार पायों पर इसलिए महत्वपूर्ण उसके पाये होते है यह पाये संवेदनशील होते है भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद उन्हें विचलित कर देता है तुम इन्हें राजा की गद्दी के नीचे से सरका सकते हो पर ध्यान रहे इन पायों को हिंसक हो कर मत तोड़ना क्यूंकि, इन्हें ही फिर सहारा देना है जनपथ के राजा को.

आशीर्वाद

मुनिया की शादी हो गयी विदाई के समय उसने जितने बुजुर्गों के पैर छुए सबने आशीवार्द दिया- सदा सुहागन रहो. ससुराल आयी, स्वागत हुआ मुह दिखाई हुई उसने जितने  बड़ों के पैर छुए सबने आशीर्वाद दिया- सदा सुहागन रहो. एक दिन मुनिया सोच रही थी बचपन में मैंने माँ का दूध अधिक उम्र तक पिया था माँ कुढ़ कर कोसती थीं इतनी बड़ी हो गयी अभी तक दूध पीती है तू मर क्यूँ नहीं जाती. पढ़ने जाने लगी कक्षा में फेल हो गई अध्यापिका ने कहा- तुम इतने ख़राब नंबर लाई हो तुम्हे डूब मरना चाहिए. बाली उम्र थी एक सजीले लडके से प्रेम करने लगी पिता भाई को मालूम हुआ बहुत पिटाई हुई सभी कोसने लगे- यह दिन दिखाने से पहले तू मर क्यूँ नहीं गयी. मुनिया की आँखों में आंसू आ गए मुझे किसी ने कभी लम्बी उम्र का आशीर्वाद क्यूँ नहीं दिया? एक दिन मुनिया सचमुच मर गई श्मशान घाट ले जाने के लिए उसका शव सजाया जाने लगा. सहसा मुनिया की आत्मा वापस आयी उसने देखा उसके सास ससुर क्या उसके माता पिता भी उसके पति को कोस नहीं रहे थे. क्यूंकि उनका आशीर्वाद जो फल गया था.