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बादशाह

लालकिले की प्राचीर से
एक प्रधानमंत्री
तिरंगा फहराता है और भाषण देता है
लाखों लाख लोग
देखते सुनते हैं टीवी के जरिये
और कुछ हजार कुछ सौ मीटर दूर
नीचे बैठे हुए .
उसके और जनता के बीच
दूरियों की  ही नहीं
बुलेट प्रूफ की बाधा भी होती है
वह जनता का स्पर्श क्या
पसीने की गंध तक महसूस नहीं कर पाता
इसीलिए
विद्युत् तरंगो से होता हुआ उसका सन्देश
जन मानस को मथ नहीं पाता
लेकिन
इसमें प्रधानमंत्री की क्या गलती
गलती पैंसठ साल पहले हुई थी
जब स्वतंत्रता का ध्वज
उस लालकिले की प्राचीर से फहराया गया था
जिसे एक बादशाह ने
हजारों मजदूरों का पसीना सोख कर बनवाया था.
इसके बनाने वाले मजदूर
किसी झोपड़ी में आधे अधूरे सो रहे थे
और बादशाह आराम से था अपने महल में
जनता और बादशाह के बीच की यह दूरी ही तो
आज भी बनी हुई है.

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