माँ कल होली है
मैं भी रंग खेलूंगा
मुझे रंग ला दे
माँ कहाँ से लाती रंग
बड़े जतन के बाद
दो रोटियां जुड़ पाती थी
एक नन्हे को देती
आधी खुद खाती
आधी नन्हे के सुबह के नाश्ते के लिए रख देती.
मना कर दिया माँ ने
नन्हा मचलने लगा
मांग न पूरी होने पर
फूट फूट कर रोने लगा
इतना रोया इतना रोया
कि पूरा चेहरा लाल पड़ गया
फिर रोते सुबकते, थक कर चुप हो गया
माँ पास आई, बोली-
चल बेटे रोटी खा ले
कि तभी नन्हे के मुंह पर नज़र पड़ी
नन्हे का गाल थपकते हुए बोली-
अरे तूने कब रंग खेल लिया
देख तेरे गाल लाल हो गए हैं.
नन्हे ने शीशा देखा
माँ की बात सच थी
चेहरा सचमुच लाल था
खुश हो कर माँ को देखा
अरे हाँ माँ, सच !
पर तुम्हारी आँखों में तो काफी रंग चला गया है
कितनी लाल हो रही हैं तुम्हारी आँखें.
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