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आशीर्वाद

मुनिया की शादी हो गयी
विदाई के समय उसने
जितने बुजुर्गों के पैर छुए
सबने आशीवार्द दिया-
सदा सुहागन रहो.
ससुराल आयी, स्वागत हुआ
मुह दिखाई हुई
उसने जितने  बड़ों के पैर छुए
सबने आशीर्वाद दिया-
सदा सुहागन रहो.
एक दिन मुनिया सोच रही थी
बचपन में मैंने माँ का दूध
अधिक उम्र तक पिया था
माँ कुढ़ कर कोसती थीं
इतनी बड़ी हो गयी
अभी तक दूध पीती है
तू मर क्यूँ नहीं जाती.
पढ़ने जाने लगी
कक्षा में फेल हो गई
अध्यापिका ने कहा-
तुम इतने ख़राब नंबर लाई हो
तुम्हे डूब मरना चाहिए.
बाली उम्र थी
एक सजीले लडके से प्रेम करने लगी
पिता भाई को मालूम हुआ
बहुत पिटाई हुई
सभी कोसने लगे-
यह दिन दिखाने से पहले
तू मर क्यूँ नहीं गयी.
मुनिया की आँखों में आंसू आ गए
मुझे किसी ने कभी
लम्बी उम्र का
आशीर्वाद क्यूँ नहीं दिया?
एक दिन मुनिया सचमुच मर गई
श्मशान घाट ले जाने के लिए
उसका शव सजाया जाने लगा.
सहसा मुनिया की आत्मा वापस आयी
उसने देखा
उसके सास ससुर क्या उसके माता पिता भी
उसके पति को कोस नहीं रहे थे.
क्यूंकि उनका आशीर्वाद जो फल गया था.

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