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कर्ज़ से छुटकारा

19 जून 2023। यह वह दिन है, जिस दिन मैं एक कर्ज से उबर गया। यह वह कर्ज था, जो मुझ पर जबरन लादा गया था। इस कर्ज को न मैंने माँगा, न कभी स्वीकार किया। फिर भी यह कर्ज 40 साल तक मुझ पर लदा रहा। इसकी वजह से मैं अपमानित किया गया। मुझे नकारा बताया गया। यह केवल इसलिए किया गया ताकि मेरे परिवार पर एहसान लादा जा सके। मेरी पत्नी को 100 रुपये के स्टाम्प पेपर पर लिख कर दिया गया कि मकान तुम्हारे पति के नाम कर दिया गया है। यह काग़ज़ के टुकड़े से अधिक नहीं था। पर कानूनी दांव पेंच नावाकिफ पत्नी समझती रही कि मकान हमे दे दिया गया। वह बहुत खुश और इत्मीनान से थी। उसने, यदि मुझे काग़ज़ का टुकड़ा दिखा दिया गया होता तो मैं उसे हकीकत बता देता। पर उसे किसी को दिखाना नहीं, ऐसे समझाया गया, जैसे गुप्त दान कर दिया गया हो। सगे रिश्तों का यह छल असहनीय था। इसे नहीं किया जाना चाहिए था। एक मासूम की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए था।  पर अच्छा है कि यह कर्ज 40 साल बाद ही सही, उतर गया। अब मैं आत्मनिर्भर हो कर, सुख से मर सकता हूँ। पर दुःख है कि भाई- बहन का सगा रिश्ता तार तार हो गया। अफ़सोस, यह नहीं ...

बूँद !

एक बूँद ऊपर उठी   उठती चली गई     दूसरी बूँद भी उठी और उठती चली गई   उठती चली गई   इसके बाद...एक के बाद एक   ढेरो बूँदें ऊपर उठती चली गई   आसमान की गोद में मिली   नृत्य करने लगी -   हम उड़ रही है   एकत्र हो कर दूजे का हाथ थामे   आसमान विजित करने     बूंदे मिलती गई   एक दूजे में सिमटती गई   घनी होती गई   और अब ...   अपने ही बोझ से   नीचे गिरने लगी   फिर   बिखरने लगी   अपने मूल स्वरुप में आकर   पृथ्वी पर बरसने लगी   और बन गई तालाब   आसमान छूने जा रही बूंदों को   अब प्रतीक्षा है   सूर्य की तपिश की   ताकि बन सके एक   बूँद  . 

....रोया न था !

आसमान घिरने लगा   बदल एकत्र होने लगे   मिल कर साथ घने होते चले गए   नीचे होते गए...और नीचे   आसमान से दूर   गिरते चले गए   यकायक पृथ्वी से कुछ दूर   बरसने लगे   आसमान साफ होने लगा   आसमान सोचने लगा   मुझसे दूर जा कर   बदल क्यों रोने लगे ?   वह समझ न सका !   वह  कभी  रोया न था !

तीन हाइकू : भाव

 ग्रीष्म की धूप  श्रमिक का पसीना परास्त नहीं  ! २- नभ में सूर्य  यात्री संग श्रमिक विश्राम नहीं।  ३-  नभ में मेघ  गली में खेलें बच्चे  प्रसन्न मन । 

प्रकृति और जीवन : पाँच हाइकु

कक्ष में पक्षी  अतिथि आये है  अद्भुत स्वर । २  मेघ गर्जना  मुन्ना रो पड़ता है  जल वृष्टि ही । ३  सूर्य ऊर्जा से  विचलित पथिक  छाँह कहाँ है ! ४  प्रातः से साँय घर लौटते लोग  यही जीवन । ५ प्राण निकले  रो रहे परिजन अब प्रारंभ ।