बुधवार, 21 मई 2025

बूँद !


एक बूँद ऊपर उठी

 

उठती चली गई  

 

दूसरी बूँद भी उठी और उठती चली गई

 

उठती चली गई

 

इसके बाद...एक के बाद एक

 

ढेरो बूँदें ऊपर उठती चली गई

 

आसमान की गोद में मिली

 

नृत्य करने लगी -

 

हम उड़ रही है

 

एकत्र हो कर दूजे का हाथ थामे

 

आसमान विजित करने  

 

बूंदे मिलती गई

 

एक दूजे में सिमटती गई

 

घनी होती गई

 

और अब ...

 

अपने ही बोझ से

 

नीचे गिरने लगी

 

फिर  बिखरने लगी

 

अपने मूल स्वरुप में आकर

 

पृथ्वी पर बरसने लगी

 

और बन गई तालाब

 

आसमान छूने जा रही बूंदों को

 

अब प्रतीक्षा है

 

सूर्य की तपिश की

 

ताकि बन सके एक  बूँद  . 

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