क्या
केंद्र की बीजेपी सरकार दबाव में आ जाती है. यदि ऐसा है तो यह कैसा दबाव?
विनेश
फोगाट साफ़ साफ़ तौर पर ५० किलोग्राम वर्ग में फाइनल के लिए ओवर वेट थी. निस्संदेह
यह ओवर वेट १०० ग्राम ही थी. तो इससे क्या?
इस
बार स्वर्ण जीतने वाला पहलवान जापान का पहलवान विगत टोक्यो ओलंपिक्स में केवल ५०
ग्राम के कारण डिसक्वालिफाई कर दिया गया था. उसने तो रोना धोना नहीं मचाया.
यह
बात तो भारत का कुश्ती महासंघ भी जानता होगा. तो फिर फोगाट के १०० ग्राम को कई
क्विंटल वजनी क्यों बना दिया गया?
क्या
आवश्यकता थी, अपील में लाखो रुपये फिजूल खर्च करने
की, जबकि परिणाम मालूम था? क्या
विनेश फोगाट और हरियाणा के जाटों को चुनाव को ध्यान में रख कर खुश करने के लिए? किन्तु, यह
तो तुष्टिकरण हुआ. चाहे वह मुस्लमान का हो या जाट का.
कुश्ती
महासंघ और केंद्र सरकार को इस प्रकार के
दबाव से हट कर काम करना होगा. अन्यथा तुष्टिकरण के नुकसान इस ओलंपिक्स में हो गए
और आगे भी होते रहेंगे.
देश
के खेल प्रेमियों को याद रखना होगा कि भारत को कुश्ती का पहला पदक दिलाने वाले के
डी जाधव हरियाणा के नहीं सतारा महाराष्ट्र के थे. कुश्ती किसी राज्य या जाति की
बपौती नहीं.
उम्मीद बहुत कम है कि कुश्ती महासंघ और केंद्र सरकार तुष्टिकरण से उबरेंगी.
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