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जून, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गर्मी में बारिश

गर्मी में हवा के थपड़े चेहरे पर पड़ते हैं झन्नाटेदार झापड़ की तरह तपती धरती पर बारिश की बूंदे नथुनों में घुसती हैं माटी की सुगंध की तरह चेहरे पर बारिश की बूंदे लगती है माँ की दुआ की तरह।

निशान

मैं वहाँ जाता हूँ जहाँ तुम पहली बार मिले थे मैं जानता हूँ जहाँ तुम मिले थे वहां होंगे तुम्हारे कदमों के निशान मैं वहाँ जाता हूँ यह देखने के लिए कि तुम होंगे , कदमों के निशानों के आसपास अफ़सोस तुम नहीं मिलते निराश वापस आ जाता हूँ छोड़ आता हूँ तुम्हारे निशानों के साथ अपने कदमों के निशान इस आस में कि  शायद कभी वापस आओ तो जान पाओ कि मैं वहाँ आया था।

आओ करें वादा

आओ करें वादा फिर साथ न चलने का कभी न मिलने का नदी के किनारों की तरह । आओ करे वादा मिल के बिछुड़ने का अकेले भटकने का अमावस मे गुम हुए तारों की तरह । आओ करे वादा गुम हो जाने का याद न आने का पतझड़ के पीले पातों की तरह । आओ करे वादा ।। ,

श्मशान-कब्रिस्तान

वह जगह है श्मशान जहॉं , चार कन्धों और भीड़ के साथ गया आदमी राख   में मिल जाता है। वह जगह है क़ब्रिस्तान जहॉं जनाज़े पर लेटा शख़्स भी ज़मीन की गहराई में दफ़्न होता है । लेकिन , वह शै है मौत ! जो आखिरी तक साथ रहती है आदमी के श्मशान में भी , कब्रिस्तान में भी।

स्वार्थ !

पिता मर गए थे माँ खूब रोई बहुत दिनों तक दूर शून्य में देखती बैठी रहती बाद में पता चला सोचती रहती थी मेरे बारे में कैसे अच्छा लिखा पढ़ा पाऊंगी अपने लल्ला को ! आज माँ मर गई बीवी  कुछ ही देर में  रसोई सम्हालने में लग गई नन्हे को चुप करने में झल्लाने लगी  मैं बैठा सोचता रहा देर तक उस कुर्सी को देखता रहा देर तक जिस पर बैठा करती थी माँ सम्हाले रखती थी नन्हे को आंसू की बूँद न गिरने देती कैसे होगा अब यह मर गई  है माँ।

रोटी और डबलरोटी

गरीब की बेटी बहुत भूखी थी रोटी नहीं मिली थी दो दिनों से।  सामने के साहब की लड़की खा रही थी डबल रोटी कई दिनों से।  गरीब की बेटी लालच से देख रही साहब की लड़की ने फेंक दी डबल रोटी लपक ली उसके बुलडॉग ने !

मरने से पहले

कभी सोचता है आदमी ! मर जाने के बाद - कहाँ जाएगा ? कैसी जगह होगी ? मेरे पास क्या होगा ? कौन मिलेगा वहाँ ? कौन होगा अपना , कौन पराया ? तब क्यों सोचता है ? मरने से पहले , कहाँ ! कैसे !! क्या और कितना !!! अपना और पराया !