सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

ग़ज़ल

मैंने कब भूलना चाहा था तुमको,  तुम थे कि मुझे कभी याद न आये। ...   चाहता था हमेशा  दोस्ती  करना तुमसे , तुम दुश्मनी की रस्म निभा के चले गए।

मॉं-बाप

जब , मॉं-बाप नहीं रहते तब समझ पाता है आदमी । पिता की जिस लाठी से डरता था , पिता को बुरा मानता था आज समझ में आया कि डराने वाली यही लाठी सहारा बनती थी गिरने पर , लड़खड़ाने पर । बीवी के जिस आकर्षण में मॉं के आँचल से दूर हो गया , उसी से मॉं चेहरे पर ठंडी हवा मारती थी , पसीना पोंछ कर सहलाती थी , छॉंव में चैन से सोता था । आज मॉं-बाप नहीं , बच्चे है। और मैं खुद हो गया हूँ- मॉं-बाप ।

गर्मी में बारिश

गर्मी में हवा के थपड़े चेहरे पर पड़ते हैं झन्नाटेदार झापड़ की तरह तपती धरती पर बारिश की बूंदे नथुनों में घुसती हैं माटी की सुगंध की तरह चेहरे पर बारिश की बूंदे लगती है माँ की दुआ की तरह।

निशान

मैं वहाँ जाता हूँ जहाँ तुम पहली बार मिले थे मैं जानता हूँ जहाँ तुम मिले थे वहां होंगे तुम्हारे कदमों के निशान मैं वहाँ जाता हूँ यह देखने के लिए कि तुम होंगे , कदमों के निशानों के आसपास अफ़सोस तुम नहीं मिलते निराश वापस आ जाता हूँ छोड़ आता हूँ तुम्हारे निशानों के साथ अपने कदमों के निशान इस आस में कि  शायद कभी वापस आओ तो जान पाओ कि मैं वहाँ आया था।

आओ करें वादा

आओ करें वादा फिर साथ न चलने का कभी न मिलने का नदी के किनारों की तरह । आओ करे वादा मिल के बिछुड़ने का अकेले भटकने का अमावस मे गुम हुए तारों की तरह । आओ करे वादा गुम हो जाने का याद न आने का पतझड़ के पीले पातों की तरह । आओ करे वादा ।। ,

श्मशान-कब्रिस्तान

वह जगह है श्मशान जहॉं , चार कन्धों और भीड़ के साथ गया आदमी राख   में मिल जाता है। वह जगह है क़ब्रिस्तान जहॉं जनाज़े पर लेटा शख़्स भी ज़मीन की गहराई में दफ़्न होता है । लेकिन , वह शै है मौत ! जो आखिरी तक साथ रहती है आदमी के श्मशान में भी , कब्रिस्तान में भी।