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संदेश

बेटी जैसी खुशी

कभी खोई थी बेटी ढूंढता रहा था बेहाल इधर उधर जब मिली कैसा खिल गया था चेहरा आदमी का ऐसे ही खोजनी पड़ती हैं खुशियां ! 

शेष रास्ता

रास्ता ख़त्म नहीं होता कभी।  दुरूह होता है दुर्गम हो सकता है पर मिलेगा ज़रूर  ढूंढो तो सही ख़त्म होने के लिए नहीं बनते रास्ते लक्ष्य के बाद भी शेष रहते हैं रास्ते आगे जाने वाले मुसाफिर के वास्ते वहीँ ख़त्म होते हैं रास्ते/जहाँ खड़ी कर दी जाती है दीवार। २- पगडण्डी और रास्ते का फर्क पगडण्डी पर नहीं बनायी जा सकती दीवार। 

एब्सॉल्यूट इंडिया, मुंबई में दिनांक २४ अक्टूबर २०१४ को प्रकाशित मेरी रचनाएँ

करुणा

बूँद आसमान से गिरी या आँख से ! दोनों में संभव है करुणा तपती धरती के लिए भूखे बच्चे के रोने पर अंतर है सामर्थ्य का।  आसमान से गिरी बूँद बारिश बन कर धरती तृप्त कर सकती है पर आँखों से गिरी बूँद भूख नहीं मिटा सकती।  

मैं चला

जब रास्ते तुम्हे अज़नबी लगें समझ लो राह भटक गए हो। २. जश्न मनाने में मैं भूल गया कि, आतिशबाजियां जला सकती हैं किसी का घर .  ३.  मैं चलना चाहता था निर्बाध/ चला भी राह के काँटों ने मुझे रोक लिया मैं रुका/थोड़ा झुका कांटे बटोरे एक किनारे कर दिए फिर मैं आगे बढ़ लिया अब पीछे आने वालों के भी रास्ता साफ़ था . 

पांच दीपक और चाँद उदास

१- आस्था का दीपक जलेगा आवश्यकता क्या है तीली सुलगाने  की भावनाओं की २- माँ जब दीपक जला चुकी तब कुलदीपक के नैनों के दीप जल उठे अब फुलझड़ी जलेगी. ३- पूजा की शीघ्रता विघ्नहर्ता गणेश को नहीं लक्ष्मी माता को भी नहीं मूषक राज को चढ़ावा कुतरेंगे। ४- संग संग जलते इठलाते बतियाते दीपक मानों कह रहे हों- अब ठण्ड पड़ने लगी. ५- नन्हा कहीं खो गया क्या ! सबने खोज इधर उधर नन्हा मिला दीपक के पास पूछ रहा था- अकेले उदास तो नहीं।   चाँद उदास चाँद उदास था क्रमशः क्षय को रहा था शरीर तारों ने पूछा- उदास क्यों ! बोला- मैं देख नहीं पाऊंगा पृथ्वी पर टिमटिमाते नन्हे नन्हे दीपों के अंधकार भगाने के कौशल को,  अंधकार के भयभीत चेहरे को जो प्रतीक्षा करता है मेरे क्षय की ताकि, फैला सके पूरी दुनिया में अपना साम्राज्य।  तब तारों ने कहा- हाँ, हम सौभाग्यशाली है देखते हैं नन्हे दीपों का अन्धकार से सफल युद्ध परन्तु, इसे तुम देख सकते हो हमारी विजयी झिलमिलाहट में।