सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सत्यकाम

आकाश से अवतार नहीं लेता सत्य जीवन में अनियंत्रित अश्व की तरह होता है सत्य निरंतर परिश्रम, साधना और संयम से साधन पड़ता है सत्य तब नियंत्रण में आता है सत्य और मनुष्य बन जाता है सत्यकाम। 

तभी

मन उल्टा न सोच हो जायेगा  नम ! २- जान निकल जाती है तभी हम कहते हैं- न जा ! ३- रोते हैं नयन ख़ुशी में भी और दुःख में भी क्योंकि, किसी भी दशा में वह है नयन ! ४- हम लाख कहें झुक ना हमें कभी पड़ता है झुकना।

झुकना

कभी चढ़ाई पर  चढ़ते हुए ख्याल  किया है ! आगे झुक जाते है लोग पार कर ले जाते हैं पूरी चढ़ाई बिना ऊंचाई नापे हुए क्या ही अच्छा हो  अगर समतल रास्तों पर भी ऐसे ही चलो आराम से ।   

प्यार

माँ/ हमेशा कहती बेटा ! मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ मैं कंधे उचका देता/ध्यान न देता एक दिन माँ ने कहा- बेटा, गला सूना लगता है पतली सोने की चेन ला दे माँ विधवा थी मैंने कह दिया- क्या करोगी पहन कर ! माँ कुछ नहीं बोली गले में हाथ फेर कर चुप बैठ गयी अगले दिन माँ ने फिर कहा- मैं तुझे प्यार करती हूँ. मैंने फिर कंधे उचका दिए कौन नहीं करता अपने बच्चे से प्यार मैंने बहुत दिनों बाद जाना कि माँ  मुझे सचमुच बहुत प्यार करती थी पत्नी ने एक दिन कहा- इस बर्थडे पर मुझे सोने का मंगलसूत्र बनवा दो पत्नी के पास मंगलसूत्र पहले ही थे फिर भी मैंने उसे आश्वस्त किया पर हुआ ऐसा कि तंगी के कारण मैं मंगलसूत्र नहीं बना सका पत्नी नाराज़ हो गयी कई दिन नहीं बोली बात बात पर उलाहने देती रही मैंने किसी प्रकार फण्ड से पैसे उधार ले कर पत्नी को मंगलसूत्र ला दिया पत्नी बेहद खुश हुई मुझसे लिपट कर बोली मैं तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ पत्नी के गले में मंगलसूत्र जगमगा रहा था मुझे माँ का सूना गला याद आ रहा था.

साथ मेरे

अँधेरे में साथ छोड़  जाता था साया भी मेरा चलता था लड़खड़ाता मैं अँधेरे में फिर मैंने थामा साथ एक दीपक का आज साया न सही हज़ारों चलते हैं साथ मेरे।  

मैं भी !

बचपन में जब घुटनों से उठ कर लड़खड़ाते कदमों से चलना शुरू किया था सीढ़ी पर तेज़ चढ़ गए पिता की तरह मैं भी चढ़ना चाहता था पिता को सबसे ऊपर/ सीढ़ी पर खड़ा देख कर मैं हाथ फेंकता हुआ कहता- मैं भी ! पिता हंसते हुए आते मुझे बाँहों में उठा कर तेज़ तेज़ सीढ़ियां चढ़ जाते मैं पुलकित हो उठता खुद के इतनी तेज़ी से ऊपर पहुँच जाने पर अब मैं अकेला ही चढ़ जाता हूँ सीढ़ियां पर  खुश नहीं हो पाता उतना क्योंकि, पिता नहीं हैं मैं खड़ा हूँ अकेला बेटे अब कहाँ कहते हैं पिता से - मैं भी !