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संदेश

प्यार

माँ/ हमेशा कहती बेटा ! मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ मैं कंधे उचका देता/ध्यान न देता एक दिन माँ ने कहा- बेटा, गला सूना लगता है पतली सोने की चेन ला दे माँ विधवा थी मैंने कह दिया- क्या करोगी पहन कर ! माँ कुछ नहीं बोली गले में हाथ फेर कर चुप बैठ गयी अगले दिन माँ ने फिर कहा- मैं तुझे प्यार करती हूँ. मैंने फिर कंधे उचका दिए कौन नहीं करता अपने बच्चे से प्यार मैंने बहुत दिनों बाद जाना कि माँ  मुझे सचमुच बहुत प्यार करती थी पत्नी ने एक दिन कहा- इस बर्थडे पर मुझे सोने का मंगलसूत्र बनवा दो पत्नी के पास मंगलसूत्र पहले ही थे फिर भी मैंने उसे आश्वस्त किया पर हुआ ऐसा कि तंगी के कारण मैं मंगलसूत्र नहीं बना सका पत्नी नाराज़ हो गयी कई दिन नहीं बोली बात बात पर उलाहने देती रही मैंने किसी प्रकार फण्ड से पैसे उधार ले कर पत्नी को मंगलसूत्र ला दिया पत्नी बेहद खुश हुई मुझसे लिपट कर बोली मैं तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ पत्नी के गले में मंगलसूत्र जगमगा रहा था मुझे माँ का सूना गला याद आ रहा था.

साथ मेरे

अँधेरे में साथ छोड़  जाता था साया भी मेरा चलता था लड़खड़ाता मैं अँधेरे में फिर मैंने थामा साथ एक दीपक का आज साया न सही हज़ारों चलते हैं साथ मेरे।  

मैं भी !

बचपन में जब घुटनों से उठ कर लड़खड़ाते कदमों से चलना शुरू किया था सीढ़ी पर तेज़ चढ़ गए पिता की तरह मैं भी चढ़ना चाहता था पिता को सबसे ऊपर/ सीढ़ी पर खड़ा देख कर मैं हाथ फेंकता हुआ कहता- मैं भी ! पिता हंसते हुए आते मुझे बाँहों में उठा कर तेज़ तेज़ सीढ़ियां चढ़ जाते मैं पुलकित हो उठता खुद के इतनी तेज़ी से ऊपर पहुँच जाने पर अब मैं अकेला ही चढ़ जाता हूँ सीढ़ियां पर  खुश नहीं हो पाता उतना क्योंकि, पिता नहीं हैं मैं खड़ा हूँ अकेला बेटे अब कहाँ कहते हैं पिता से - मैं भी !  

दिल्ली

दिल्ली कभी  न बदली आज भी कहाँ बदली दिल्ली आज भी यहाँ  पांडवों का इंद्रप्रस्थ है मुगलों का शाहजहांबाद है अंग्रेज़ों की जमायी नयी दिल्ली आज  देश की राजधानी है दो सरकार हैं, आप हैं प्राचीन में जीती हैं आज भी दिल्ली तभी तो गजनवी के योद्धा आक्रमण करते रहते है  (नॉर्थ ईस्ट  के छात्रों पर ) और दुस्शासन खींचते रहते हैं चीर द्रोपदी की इज्जत लूटती है आज भी दिल्ली . ( निदो तानियम की  हत्या  पर )

शरीर

आप थकने लगते हैं जब आपके पैरों को लगता है कि  वह आपका शरीर ढो रहे हैं. २- जो जीवन भर किसी को कुछ नहीं देते वह बंद मुट्ठी के साथ चले जाते हैं दुनिया से. ३. आंसू इसलिए नहीं बहते कि आँखों को दर्द होता है आंसू इसलिए बहते हैं कि अब दिल में दर्द नहीं होता। ४. अब लोग दिल से काम नहीं लेते क्यूंकि, दिमाग के काम के लिए टीवी ले लिया है. ५. अगर मेरी मदद जीभ और खाल न करती तो मैं ज़हर खा लेता आग लगा लेता।   ६. बरसात में नज़र आएगा आम आदमी सर पर आम  ढोता हुआ.

गणतंत्र की रस्सी

इस गणतंत्र दिवस पर कभी फहराते झंडे, उसे उठाये डंडे और लिपटी रस्सी को देखो डंडा घमंड से इतराता है कि उसने गणतंत्र का प्रतीक उठा रखा है मगर भूल जाता है अपने से  लिपटी उस रस्सी को जो उसे नियंत्रित करती है तथा उसकी मदद करती है ऊंचा उठाने में गणतंत्र के झंडे को. अगर रस्सी का नियंत्रण न होता तो डंडा ख़ाक फहरा पाता आसमान में झंडा तार तार कर रहा होता गणतंत्र के झंडे को और खुद मुंह तुड़वा लेता अपना।