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संदेश

गंगा, मेरी माँ!

माँ और गंगा जल समाता है जिनकी गोद में आदमी। 2 गंगा और माँ एक पवित्र दूसरी पतिव्रता। 3 गंगा माँ और माँ सब याद करें दुख में। 4 माँ कहाँ गंगा में प्रदूषण सबने कहा गंगा मर गयी। 5 गंगा और माँ जीवनदायनी। 6 हिमालय से निकली गंगा शिव ने समेटा घर से विदा हुई माँ पति ने स्वीकारा फिर दोनों ने छोड़ दिया बच्चों के पालन के लिए। 7 गंगा है माँ की माँ तभी तो समा जाती है गंगा की गोद में एक दिन माँ भी। 8 गंगा और माँ में अंतर एक में फेंकते हैं कचरा दूसरी को समझते हैं कचरा । 9 गंगा सूख रही है माँ मर गयी है हम कह रहे हैं कहाँ हो माँ! 10 जहां गंगा बहती है जहां माँ रहती है वहीं बसता है जीवन।

उन्हे टूटना होता है

जो फसलें हरी होती हैं उन्हे पकना होता है जो पक जाती हैं उन्हे कटना होता है बिना फलों का पेड़ तना होता है फलदार पेड़ों को झुकना होता है। खासियत इसमे नहीं कि आप हरे हैं या तने हैं जो दूसरों के काम आए उसे मिटना होता है। जो खामोश रहते हैं वह बुत होते हैं वक़्त बीतते ही उन्हे टूटना होता है।

बरसना

मेघों ने चाहा था धरती पर बरसना पर पानी बन कर बह गए। 2 बचपन में जब मैं गिरता था माँ की आँखों में करुणा बरसती थी जबसे /बड़े होकर /मैंने गिरना शुरू किया है माँ की आँखों से आंसुओं की गंगा बहती है। 3 ज़रूरी नहीं कि झुंड में भेड़िये ही मिले झुंड में लुटेरे भी चलते  हैं । लूट एक जशन  है नेताओं का टशन है खरीदारों की बस्ती में बाज़ार ए हुस्न है। 4  

बाबू जी की सांस

बाप मर गया था शायद बेटे ने निकट आकर पहले धीमे से पुकारा फिर ज़ोर से आवाज़ दी- बाबू जी...बाबू जी। बाबू जी की बंद पलकें नहीं काँपी कृशकाय शरीर में कोई थरथराहट नहीं हुई फिर बेटे ने बाबूजी की नाक के आगे हाथ रख दिया हाथ को साँसों की गर्मी महसूस नहीं हुई फिर भी हाथ नहीं हटाया मानो विश्वास कर लेना चाहता हो कि, सांस चल रही/या बंद हो गयी जब विश्वास हो गया तब बेटे ने पत्नी के पास जाकर कहा- सांस बंद हो गयी है सुन कर पत्नी ने भी पति की तरह चैन की सांस ली।

हवा

हवा बहती है हवा कुछ कहती है हवा, किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती तब भी नहीं, जब वह/बहुत तेज़ बहती है केवल बालों से खेलती है कपड़ों को अस्त व्यस्त कर देती है फिर भी, नुकसान नहीं पहुंचाती उस समय  भी नहीं जब वह आँधी होती है तब वह उखाड़ फेंकती है उन कमजोर पेड़ों और वस्तुओं को जो/नाहक अपने अहंकार में उसका रास्ता रोकने की कोशिश करते हैं ऐसे ही कमजोर और अपनी जड़ से उखड़े हुए दूसरे कमज़ोरों को नुकसान पहुंचाते हैं हवा मंद मंद हो या तीव्र एक ही संदेश देती है फुसफुसाते हुए या गरजते हुए- रास्ता मत रोको खुद भी आगे बढ़ो दूसरों को भी बढ़ने दो बाधाओं को जड़ से उखड़ना ही है।  

नीम

मैंने नीम से पूछा- तू इतनी कड़वी क्यों है? जबकि, तू सेहत के लिए फायदेमंद है। नीम झूमते हुए बोली- अगर मैं कड़वी न होती तो, तुझे कैसे मालूम पड़ता कि कड़वेपन के कारण सेहतमंद नीम की भी कैसे थू थू होती है।

मैं

मैं पंडित हूँ, लेकिन लिखता नहीं, मैं मूर्ख हूँ, लेकिन दिखता नहीं। ताकत को मेरी तौलना मत यारो, महंगा पड़ूँगा कि मैं बिकता नहीं। 2 तुम जो साथ होते हो, साल लम्हों में गुज़र जाता है। जब पास नहीं होते लम्हा भी साल बन जाता है। 3 लम्हों की खता में उलझा रहा मैं सालों तक, होश तब आया जब बात आ गयी बालों तक। 4 ज़रूरी नहीं कि हम सफर ही साथ चले, कभी राह चलते भी साथ हो जाते हैं। अजनबी तबीयत से उबरिए मेरे दोस्त, कुछ दोस्त ऐसे भी  बनाए जाते। 5 मैं पगडंडियों को हमसफर समझता रहा, जो हर कदम मेरा साथ छोड़ती रहीं। 6. इस भागते शहर में रुकता नहीं कोई केवल थमी रहती है राह सांस की तरह ।