शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल

मेरे देश के कानून इतने मजबूत हैं,
कि बनाने वाले ही इन्हे तोड़ते है.

2.
रास्ते के पत्थर मारने को बटोरता नहीं,
उम्मीद है कि मकान-ए-इंसानियत बना लूँगा।

3.
क़ातिल नहीं कि लफ्जों से मरूँगा तुमको,
इसके लिए तो मेरे लफ्ज ही काफी हैं।

4.
दुश्मनी करो इस तबीयत से
कि दुश्मन भी लोहा मान ले।

5.
आईना इस कदर मेहरबान है मुझ पर
जब भी मिलता है हँसते हुए मिलता है।

सोमवार, 28 जनवरी 2013

ढूंढते रहे अर्थ

मैंने
पृष्ठ पर पृष्ठ
भर दिये थे यह सोच कर
कि तुम पढ़ोगे
मेरी भावनाएं समझोगे
लेकिन, तुम मेरी
लिखावट में उलझे रहे
ढूंढते रहे व्याकरण की त्रुटियाँ
ठीक करते रहे मात्राएँ
भाँपते रहे,
खोजते रहे,
और लाते रहे
अपने-मेरे बीच
पंक्तियों के बीच के अर्थ ।















शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

राष्ट्रीय ध्वज

गणतंत्र दिवस पर
राष्ट्र ध्वज
आसमान पर लहराता है
फहर फहर कर
हवा में गोते लगाता है
समुद्र की लहरों सा
उन्मुक्त नज़र आता है
यह राष्ट्रीय ध्वज
हम भारत गणतंत्र के गण
हर 26 जनवरी फहराते हैं !
गलत,
हम ध्वज के साथ
फहराये कब !
ध्वज की उन्मुक्तता के साथ
आकाश में लहराये कब
हमने कहाँ अनुभव की
ध्वज की प्रसन्नता
कहाँ महसूस की
स्वतंत्र  वायु की प्रफुल्लता
हम तो बस गण है
जन गण मन गाने को
और फिर अगले साल तक
सो जाने को।

रविवार, 20 जनवरी 2013

बुधिया की दौड़

बुधिया इतनी तेज़
कैसे दौड़ लेता है?
आसान है इसे समझना
दस किलोमीटर दूर स्कूल में
समय पर पहुँचने के लिए
उसे दौड़ना पड़ता था।
पिता को खाना पहुंचाने के बाद ही
बुधिया को खाना मिल सकता था
इसलिए
खेत तक जाने और आने के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ता था।
पिता मर गए
खेत बिक गए
बुधिया आठ के बाद पढ़ नहीं सका
शहर आ गया
सरकारी नौकरी के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ा
सरकारी नौकरी नहीं मिली
सो, नौकरी करने लगा
चाय की दुकान पर
झुग्गी से कई किलोमीटर दूर
दुकान तक पहुँचने के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ता था।
जिसकी ज़िंदगी में इतनी दौड़ हो
सामने भूख हो
वह बुधिया
तेज़ तो दौड़ेगा ही।

शनिवार, 19 जनवरी 2013

खालीपन जहर और दोष

पसर जाता है
हम लोगों के बीच
अनायास इतना खालीपन
कि,
सहज जगह पा जाती हैं
कोंक्रीट की दीवारें।


जहर
जीने वालों को बार बार
पीना पड़ता है जहर
मरने वाले क्या खाक
नीलकंठ बन पाते हैं।

दोष
 जो
साथ चलना नहीं चाहते
वह
अपनी चप्पलों को दोष देते हैं।
 
 

बुधवार, 16 जनवरी 2013

बेटी पैदा हुई

उदास थे पिता
सिसक रही माँ
बेटी पैदा हुई।
मिठाई कहाँ
बधाई कहाँ
घर में शोक फैला
यहाँ वहाँ।
औरत के होते हुए
यह क्या बात हुई।
बेटी पैदा हुई।
वंश की चिंता
सब की चिंता
उपेक्षित बेटी को
कौन कहाँ गिनता।
पढे लिखे समाज में
जहालियत की बात हुई ।
बेटी पैदा हुई।
वंश चलाने को
बेटे की आस में
माँ फिर माँ बनी
बेटे के प्रयास में।
भूंखों की फौज खड़ी
नासमझी की बात हुई।
बेटी पैदा हुई।
बेटे की माँ ने
बेटी की माँ ने
भ्रूण हत्या की
बेटी के बहाने।
कैसे होगा बेटा अगर
बेटी की न जात हुई।
 

शनिवार, 12 जनवरी 2013

हवा

तुम यदि
हवा हो तो
मुझे अनुभव करो
मुझे अपना अनुभव कराओ
किन्तु तुम तो
हवा की तरह
गुज़र जाती हो
तुम्हारा एहसास तक
शेष नहीं रहता।

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...