सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

शरीर

ईश्वर ने इंसान को दो हाथ और दो पाँव दो छिद्रों वाली एक नाक के ठीक ऊपर दो आँखें बत्तीस दांत और उनके बीच लचीली जीभ इसलिए नहीं दी कि अपने पैरों तले मानवता को रौंद दे हाथों से रक्तपात और अशुभ करे । बुरा सूंघने और देखने के लिए नहीं हैं दो आंखे और एक नाक दूसरों को काटने के लिए नहीं हैं दाँत  क्योंकि बोलने की आज़ादी की रक्षा के लिए हैं दाँत मानवता को बचाने के लिए हैं हाथ अन्यायी के खिलाफ मजबूती से खड़ा होने के लिए हैं पैर नाक के दो छेद और आँखें अच्छा और बुरा समझने बूझने और देखने के लिए हैं । मगर ऐसा क्यों नहीं हो पाता ? क्योंकि, हमारे हृदय में नहीं बहता इंसानियत का खून नियंत्रण में नहीं होता मस्तिष्क बल्कि, नियंत्रित करते हैं दूसरे जो इंसानियत जैसा नहीं सोंचते ।

मुकद्दर

मैंने मुकद्दर से कहा- मेरी मुकद्दर में जो है लिख दो मेरी मुकद्दर में । मुकद्दर ने लिख दिया मुकद्दर को कोसना मेरी मुकद्दर में ।  

तिरंगा

स्वतंत्रता दिवस पर, उससे पहले हर साल गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराया जाता है। तिरंगा, खुद में फूल लपेटे रस्सी से बंधा नेता के द्वारा नीचे से ऊपर को खींचा जाता है। जब चोटी पर पहुँच जाता है तिरंगा लंबे डंडे से जकड़ दिया जाता है तिरंगा तब नेता एक जोरदार झटका देता है तिरंगा नेता पर फूल बरसाते हुए हर्षित मन से प्रफुल्लित तन से लहराने लगता है मानो अभिवादन कर रहा हो नेता का। क्या यह स्वतंत्रता है यह गणतंत्र है जिसमे रस्सी से जकड़ा तिरंगा नेता के द्वारा स्वतंत्र किए जाने पर फूल बरसाता है, प्रफुल्लित लहराता है और बेचारा जन गण मन ही मन तरसता हुआ राष्ट्रगान गाता है।

होरी

होरी को रचते समय प्रेमचंद ने होरी से कहा था- मैं ग़रीबी का ऐसा महाकाव्य रच रहा हूँ जिसे पढ़ कर लाखों करोड़ों लोग डिग्री पा जाएंगे, डॉक्टर बन जाएंगे प्रकाशक पूंजी बटोर लेंगे साम्यवादी मुझे अपनी बिरादरी का बताएंगे किसी गरीब फटेहाल को कर्ज़ से बिंधे नंगे को लोग होरी कहेंगे । इसके बाद तू अजर हो जाएगा किसी गाँव क्या शहर कस्बे में गरीबों की बस्ती में ही नहीं सरकारी ऑफिसों में भी तू पाया जाएगा, साहूकारों से घिरे हुए पास के पैसों को छोड़ देने की गुहार करते हुए और पैसे छिन जाने के बाद सिसकते हुए। निश्चित जानिए उस समय भी होरी रो रहा होगा तभी तो प्रेमचंद को उसका दर्द इतना छू पाया कि वह अमर हो गया।

रात्री

रात के घने अंधेरे में पशु पक्षी तक सहम जाते हैं चुपके से दुबक कर सो जाते हैं अगर किसी आहट से कोई पक्षी अपने पंख फड़फड़ाता है तो मन सिहर उठता है वातावरण की नीरवता मृत्यु की शांति का एहसास कराती है क्यूँ कि, जीवन तो सहम गया हो जैसे दुबक कर सो गया हो जैसे । ऐसे भयावने वातावरण में झींगुरों की आवाज़े ही सन्नाटे का सीना चीरती हैं यह जीवन का द्योतक है कि कल सवेरा हो जाएगा जीवन एक बार फिर चहल पहल करने लगेगा। फिलहाल तो हमे सन्नाटे को घायल करना है जुगनुओं की रोशनी में भटके हुए मनुष्य को उसके गंतव्य तक पहुंचाना है।

राजा हरिश्चंद्र

अगर आज राजा हरिश्चंद्र होते सच की झोली लिए गली गली भटकते रहते कि कोई परीक्षा ले उनके सच की लेकिन यकीन जानिए उन्हे कोई नहीं मिलता परीक्षा लेने वाला जो मिलते वह सारे श्मशान के डोम होते जो उनकी झोली छीन लेते उनके ज़मीर की चिता लगवाने से पहले ।

बेकार

तुमने मुझे बेकार कागज़ की तरह फेंक दिया था ज़मीन पर। गर पलट कर देखते तो पाते कि मैं बड़ी देर तक हवा के साथ उड़ता रहा था तुम्हारे पीछे।   कभी हवाओं से पूछो कि क्यूँ देती है आवाज़ पीछे से बताएगी कि कहीं कुछ रह तो नहीं गया तेरा पीछे।